द्वापर में एक ही दिन हुआ था देवी और श्रीकृष्ण का जन्म

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सीमा कुमारी

श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था :-
भगवान श्री कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया. आज से लगभग 5125 वर्ष पूर्व द्वापर युग में मथुरा में महाराजा उग्रसेन राज करते थे. राजा बनने के लिए उनके क्रूर बेटे कंस ने अपने पिता को सिंहासन से हटा दिया और खुद राजा बन गया. मथुरा में कंस का अत्याचार प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. कंस की एक बहन थी जिसका नाम देवकी था. जिसका विवाह वासुदेव से हुआ. द्वापर युग में ब्रह्माजी और सभी देवताओं ने भगवान विष्णु से अवतार लेने के लिए प्रार्थना की थी. क्योंकि उस समय धरती पर अधर्म बढ़ गया था. उस समय विष्णुजी ने सभी देवताओं को आश्वस्त किया था कि वे देवकी और वसुदेव के यहां अवतार लेंगे. उनकी माया यशोदा के घर जन्म लेगी. एक दिन कंस अपनी बहन देवकी को उसके ससुराल छोड़ने जा रहा था, तभी रास्ते में एक आकाशवाणी हुई, ‘हे कंस जिस देवकी को तू इतने प्रेम से विदा कर रहा है उसका ही आठवां पुत्र तेरा काल होगा.’ यह सुनते ही कंस ने देवकी और वासुदेव को बंधक बना लिया. कंस ने सोचा कि अगर वह देवकी के हर पुत्र को मारता गया तो वह अपने काल को हराने में कामयाब होगा. इसके बाद  देवकी की  जैसे ही कोई संतान पैदा होती, कंस उसे मार देता. भगवान विष्णु ने अपनी योगमाया से कहा कि, मेरे जन्म के साथ ही आप भी माता यशोदा के यहां गोकुल में जन्म लेना. वासुदेव मुझे छोड़ने यशोदा के यहां आएंगे और आपको अपने साथ लेकर कंस के कारागार में पहुंचेंगे. कारागार में आप कंस के हाथों से निकलकर विंध्याचल पर्वत पर निवास करना. उसके बाद आप जगत में पूजनीय हो जाएंगी. आपको दुर्गा, अंबिका, योगमाया आदि कई नामों से पुकारा जाएगा. आपकी भक्ति से भक्तों के सभी प्रकार के दुखों का आप नाश होगा. सात संतानों के मारे जाने के बाद देवकी के 8वें पुत्र के जन्म की बारी आई, पर इस बार कंस की सारी योजनाएं धरी की धरी रह गईं. अष्टमी के रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जैसे ही जन्म हुआ, उसी समय संयोग से नंदगांव में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ.

एक ही दिन देवी और श्रीकृष्ण का जन्म :-
भगवान विष्णु के कहे अनुसार श्रीकृष्ण और देवी का जन्म एक ही दिन हुआ. देवकी के 8वें पुत्र के जन्म की बारी आई. अष्टमी के रोहिणी नक्षत्र में श्रीकृष्ण का जैसे ही जन्म हुआ, उसी समय संयोग से नंदगांव में यशोदा के गर्भ से एक कन्या का जन्म हुआ. जन्म के बाद वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के यहां छोड़ गए थे और देवी के बालस्वरूप को अपने साथ कारागार में ले आए थे. वहां जब कंस देवकी की आठवीं संतान को मारने पहुंचा तो बालस्वरूप में देवी कंस के हाथ से निकलकर चली गईं. उन्होंने विंध्याचल पर्वत पर निवास किया और आज उसे विंध्याचल या विंध्वसनी धाम के नाम से जाना जाता है.