दिवाली जैसा है कार्तिगई दीपम त्यौहार, जाने मुहूर्त और महत्व

तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका में रहने वाले हिन्दू प्रति माह पूर्णिमा के दिन मासिक कार्तिगाई एवं कार्तिगाई दीपम का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन लोग शाम घरों में तेल के दीपक एक पंक्ति में जलाते हैं।

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तमिलनाडु, केरल और श्रीलंका में रहने वाले हिन्दू प्रति माह पूर्णिमा के दिन  मासिक कार्तिगाई एवं कार्तिगाई दीपम का त्यौहार मनाते हैं। इस दिन लोग शाम घरों में तेल के दीपक एक पंक्ति में जलाते हैं। यह त्यौहार भोले बाबा यानी भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए किया जाता हैं। इस दिन भक्त शाम को अपने घरों और आसपास तेल के दीपक जलाकर खुशियां मनाते हैं। मान्यताओं के मुताबिक दीपक का विशेष महत्व है क्योंकि यह अंधकार की नकारात्मकता को दूर करता है। यह त्यौहार भाई बहन के प्रेम का भी प्रतीक है। इस दिन बहनें अपने भाईयों के जीवन में सुख समृद्धि की कामना करती हैं। एक तरह से ये त्योहार रक्षाबंधन और भाई दूज की तरह ही होता है। 

मुहूर्त: दिसम्बर 10, 2019 की सुबह 05:02 बजे से लेकर दिसम्बर 11, 2019 की सुबह 05:58 तक

कथा: धार्मिक मान्यताओं अनुसार एक बार भगवान शिव ने भगवान विष्णु और ब्रह्मा को अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए स्वयं को प्रकाश की अनन्त ज्योत में बदल लिया था। इसीलिए कार्तिगाई दीपम त्योहार भगवान शिव की सर्वोच्च सत्ता के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। भगवान शिव के इस दिन अपने आप को अन्नत ज्योत में बदलने के पीछे एक कहानी है जिसके अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णु जी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण अपने आप को श्रेष्ठ होने की बात कह रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के नाते स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे।

तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा वही श्रेष्ठ माना जाएगा। दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने के लिए निकल गये। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लापस लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए लेकिन उन्होंने आकर विष्णुजी से छोर तक पहुंचने की बात कही। जिसके लिए उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य से स्वयं शिव वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी का एक सिर काटकर उन्हें श्राप दिया कि ब्रह्माजी की पूजा अब नहीं की जायेगी और साथ ही शिव की पूजा में केतकी के फूलों का इस्तेमाल भी नहीं होगा।