Vishwakarma Puja
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-सीमा कुमारी 

भारत में मनाएं जाने वाले सभी त्यौहारों का निर्धारण चंद्र कैलेंडर के मुताबिक किया जाता है. इस संबंध में ऐसी मान्यता है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था. यद्यपि उनके जन्म दिन को लेकर कुछ भ्रांतियां भी हैं. विश्‍वकर्मा जयंती के दिन निर्माण से जुड़ी मशीनों, औजारों, दुकानों आदि की पूजा विधि विधान से की जाती है. मान्यता है कि विश्वकर्मा भगवान की पूजा करने से दुर्घटनाओं, आर्थिक परेशानी आदि का सामना नहीं करना पड़ता है.

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप: भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूपों का उल्लेख पुराणों में मिलता हैं. दो बाहु वाले, चार बाहु और दस बाहु वाले विश्‍वकर्मा. इसके अलावा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले विश्‍वकर्मा. पुराणों में विश्वकर्मा के पांच स्वरूपों का वर्णन मिलता है- 1.विराट विश्वकर्मा- सृष्टि के रचयिता, 2.धर्मवंशी विश्वकर्मा- महान् शिल्प विज्ञान विधाता और प्रभात पुत्र, 3.अंगिरावंशी विश्वकर्मा- आदि विज्ञान विधाता वसु पुत्र, 4.सुधन्वा विश्वकर्म- महान् शिल्पाचार्य विज्ञान जन्मदाता अथवी ऋषि के पौत्र और 5.भृंगुवंशी विश्वकर्मा- उत्कृष्ट शिल्प विज्ञानाचार्य (शुक्राचार्य के पौत्र).

कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति: कथाओं में माना जाता है की विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए. कहते हैं कि धर्म की ‘वस्तु’ नामक स्त्री से उत्पन ‘वास्तु’ के सातवें पुत्र थें, जो शिल्पशास्त्र के प्रवर्तक थे. वास्तुदेव की ‘अंगिरसी’ नामक पत्नी से विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, अपने पिता की तरह विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने.

विश्वकर्मा का कुल: विश्‍वकर्मा के पुत्र से उत्पन्न हुआ महान कुल: राजा प्रियव्रत ने विश्वकर्मा की पुत्री बहिर्ष्मती से विवाह किया था. जिनसे आग्नीध्र, यज्ञबाहु, मेधातिथि आदि 10 पुत्र उत्पन्न हुए. प्रियव्रत की दूसरी पत्नी से उत्तम, तामस और रैवत ये 3 पुत्र उत्पन्न हुए, जो अपने नाम वाले मन्वंतरों के अधिपति हुए. महाराज प्रियव्रत के 10 पुत्रों में से कवि, महावीर तथा सवन ये 3 नैष्ठिक ब्रह्मचारी थे और उन्होंने संन्यास धर्म ग्रहण किया था.

विश्वकर्मा के पांच महान पुत्र: विश्वकर्मा के उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र थे. ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे. मनु को लोहे में, मय को लकड़ी में, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे में, शिल्पी को ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी में महारात हासिल थी.

विश्वकर्मा जयंती: हिंदू धर्म में ब्रह्मांड के दिव्य वास्तुकार भगवान विश्वकर्मा को समर्पित है. विश्वकर्मा भाद्र के बंगाली महीने के अंतिम दिन, विशेष रूप से भद्रा संक्रांति पर निर्धारित की जाती है. यही कारण है कि जब सूर्य सिंह से कन्या पर हस्ताक्षर करता है इसे कन्या सक्रांति के रूप में भी जाना जाता है.