जानें नरक-चतुर्दशी का महत्व

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-सीमा कुमारी

कार्तिक मास हिन्दुओं का एक पवित्र महीना है. क्योंकि इस महीने से सारे त्यौहार शुरू हो जाते हैं, जैसे नवरात्री ,दिवाली ,धनतेरस “नरक-चतुर्दशी” आदि. अगर नरक-चतुर्दशी की बात की जाए तो यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाई जाती है. इस दिन सूर्योदय से पहले स्नान करने की परंपरा है. स्नान करने का शुभ मुहूर्त सुबह 05:22:59 से 06:43:18 तक का है. चतुर्दशी तिथि 14 नवंबर को दोपहर 2:20 मिनट तक रहेगी और उसके बाद अमावस्या तिथि शुरू होगी, जो 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 39 मिनट पर समाप्त होगी. यही वजह है कि इस साल 14 नवंबर को एक ही दिन चतुर्दशी और दिवाली दोनों मनाई जाएगी.

मान्यताओं के अनुसार, नरक चतुर्दशी के मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है. कहा जाता है कि, इस दिन यमराज की पूजा करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है. इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस वध किया था, तभी से इस दिन को नरक चतुर्दशी के रूप मनाया जाता है और इस दिन यम का दीपक जलाने की भी परंपरा है. इस दिन रात में यम पूजा के लिए दीपक जलाए जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन मां काली की पूजा करने से जीवन के समस्त दुखों का अंत हो जाता है. इस दिन एक पुराने दीपक में सरसों का तेल और पांच अन्न के दाने डालकर इसे घर के कोने में जलाकर रखा जाता है. इसे यम दीपक भी कहते हैं. इस दिन यम की पूजा करने से अकाल मृत्यु नहीं होती है और एक बात ये पूजा आधी रात में की जाती है. इस दिन हनुमान पूजा करने से सभी तरह का संकट टल जाते हैं, इसलिए कार्तिक मास में हर हिन्दू परिवार में इसकी यानी नरक-चतुर्दशी पूजा करने का विधान है.