जानें प्रदोष व्रत का महत्व और पूजा विधि

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-सीमा कुमारी 

प्रदोष व्रत का महत्व:

प्रदोष व्रत हर मास में दो बार आते हैं और यह हर मास की त्रयोदशी तिथि को पड़ता है. इस बार सितम्बर में यह 15 तारीख को पड़ रहा है. यह मंगलवार को है तो इसे “भौम प्रदोष” कहा जाता हैं. यदि आप भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते हैं, तो यह व्रत सर्वथा उपयुक्त है. इस दिन यदि शाम के समय विधि-विधान से भगवान शिव का पूजन करेंगे तो आरोग्य रहने का आशीर्वाद मिलेगा और भगवान भोलेनाथ भक्तों की सभी मनोकामना भी पूरी करेंगे. प्रदोष-व्रत चन्द्रमौलेश्वर भगवान शिव की प्रसन्नता व आशीर्वाद को प्राप्त करने के लिए किया जाता है.

भगवान शिव को आशुतोष भी कहा गया है, जिसका आशय है-शीघ्र प्रसन्न होकर आशीष देने वाले. प्रदोष-व्रत को श्रद्धा व भक्तिपूर्वक करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है.  हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व है. प्रदोष व्रत पर पास के शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव को जल चढ़ाकर शिव के मंत्र जपें. इसके बाद पूरे दिन निराहार रहते हुए प्रदोषकाल में भगवान शिव को शमी, बेल पत्र, कनेर, धतूरा, चावल, फूल, धूप, दीप, फल, पान, सुपारी आदि अर्पित की जाती है. इसके बाद सूर्य देव को भी जल अर्पित कर उनको प्रणाम करें.

अक्सर यह प्रदोष शत्रु एवं खतरों के विनाश के लिए किया जाता है. यह हर तरह की सफलता के लिए भी रखा जाता है. प्रदोष व्रत रखने से आपका चंद्र ठीक होता है. अर्थात शरीर में चंद्र तत्व में सुधार होता है. माना जाता है कि चंद्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र से सुधरने से बुध भी सुधर जाता है. मानसिक बैचेनी खत्म होती है. प्रदोष-व्रत किसी भी मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी से प्रारंभ किया जा सकता है. श्रावण व कार्तिक मास प्रदोष-व्रत को प्रारंभ करने के लिए अधिक श्रेष्ठ माने गए हैं.

प्रदोष-व्रत का प्रारंभ: विधिवत् पूजन-अर्चन एवं संकल्प लेकर करना श्रेयस्कर रहता है.

  • रविवार : जो प्रदोष रविवार के दिन पड़ता है उसे “भानुप्रदोष या रवि प्रदोष” कहते हैं.
  • सोमवार : सोमवार को त्रयोदशी तिथि आने पर इसे “सोम प्रदोष” कहते हैं.
  • मंगलवार : मंगलवार को आने वाले इस प्रदोष को “भौम प्रदोष” कहते हैं.
  • बुधवार : इस दिन को आने वाले प्रदोष को “सौम्यवारा प्रदोष” भी कहा जाता है.
  • गुरुवार : इस दिन को आने वाले प्रदोष को “गुरुवारा प्रदोष” कहते हैं.
  • शुक्रवार : इस दिन को आने वाले प्रदोष को “भ्रुगुवारा प्रदोष” कहा जाता है.
  • शनिवार : इस दिन को आने वाले “शनि प्रदोष” कहा जाता है और इस व्रत से पुत्र की प्राप्ति होती है.