जानें नवरात्रि में कलश स्थापना के नियम, पूजा विधि और मुहूर्त

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-सीमा कुमारी

दुर्गा पूजा साल में दो बार आती है, एक आश्विन माह में दूसरा चैत्र माह में. आश्विन की बात ही कुछ और होती है. क्योंकि इसमें सर्दिया आने वाली होती है, इसलिए इसे शारदीय नवरात्रि भी कहते है. नवरात्रि के नौ दिनों तक देवी मां के अलग-अलग स्वरूपों की उपासना की जाती है. दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है. राक्षस महिषासुर पर विजय के रूप में मनाया जाता है. अतः दुर्गा पूजा का पर्व बुराई पर सच्चाई की विजय के रूप में भी माना जाता है. हिन्दू सामाजिक-सांस्कृतिक रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण उत्सव भी माना जाता है

पहले दिन कलश स्थापना:

हिंदू धर्म में कलश स्थापना के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान शुरू नहीं किए जाते है. हर वर्ष चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है. पूजा-पाठ और किसी धार्मिक अनुष्ठान में कलश स्थापना का अपना महत्व होता है. लगभग हर पूजा में इसी प्रकार पहले कलश स्थापना की परम्परा होती है. शास्त्रों में कलश को सुख-समृद्धि, ऐश्वर्य और मंगल कामनाओं का प्रतीक माना गया है. इसलिए नवरात्रि पर मां दुर्गा की पूजा करते समय माता की प्रतिमा के सामने कलश की स्थापना करनी होती है. दुर्गा माँ की पूजा-अर्चना में प्रयोग होने वाली प्रत्येक पूजा सामग्री का अपना महत्व होता है.

ज्वारे का महत्व:

दुर्गा पूजा में नवरात्रि के दौरान ज्वारे लगाने कि भी परम्परा है. माँ की चौकी के आस-पास ही ज्वार बोएं जाते है. माना जाता है कि नवरात्रि पर जौ बोना बहुत ही शुभ होता है. बहुत जगह में मिट्टी के बर्तन में जौ को बोया जाता हैं और कई जगह जमीन में भी बोते है. अगर जौ तेज़ी से बढ़ते हैं तो घर में सुख-समृद्धि आती है और अगर इनकी उपज में किसी प्रकार की कमी देखी जाती है तो माना जाता है की भविष्य में किसी तरह के अनिष्ट का आगमन होने वाला है.

माँ का अखंड दीपक:

हिन्दू धर्म में कई प्रकार के तेलों के दीप जलाएं जाते हैं. जिनका अपना अलग-अलग महत्व है. किन्तु माँ के लिए देशी धी की अखंड ज्योत ही जलाई जाती है. जो एक बार जल जाने के बाद नो दिन तक जलती रहती हैं. दीपक के बिना कोई भी पूजा पूरी नहीं होती हैं. रोजाना अगर घर में आप दिया जलाते है तो आपके घर से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव नहीं होता. अखंड ज्योत को माँ दुर्गा के पूजा स्थल के आगे रखा जाता है. इसे रखने के लिए दक्षिण-पूर्व दिशा को शुभ माना जाता है क्योंकि यह दिशा अग्नितत्व का प्रतिनिधित्व करती है.

घट स्थापना का शुभ मुहूर्त:

  • सुबह 8:36 से 10:53 तक।
  • सुबह 11:36 से दोपहर 12:24 तक।
  • दोपहर 2:26 से शाम 4:17 तक।