जानें क्यों कहते हैं गोवर्धन पूजा को अन्नकूट उत्सव

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दिवाली के ठीक दूसरे दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। इसे अन्नकूट उत्सव भी कहा जाता है। इस साल यह पूजा 15 नवंबर को की जाएगी। हिन्दू पंचांग के मुताबिक, कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण, गोवर्धन पर्वत और गाय की पूजा का विशेष महत्व होता है। वहीं अन्नकूट/गोवर्धन पूजा भगवान श्रीकृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से प्रारंभ हुई है। 

गोवर्धन पूजा ब्रजवासियों का मुख्य त्यौहार के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन मंदिरों में विविध प्रकार की खाद्य सामग्रियों से भगवान को भोग लगाया जाता है। साथ ही बलि पूजा और मार्गपाली उत्सव मनाए जाते हैं।इस दिन गाय-बैल जैसे पशुओं को स्नान कराके धूप-चंदन तथा फूल माला पहनाकर उनका पूजन किया जाता है। इस दिन गोबर से गोवर्धन की आकृति बनाकर उसके समीप विराजमान कृष्ण के सम्मुख गाय तथा ग्वाल-बालों की रोली, चावल, फूल, जल, मौली, दही तथा तेल का दीपक जलाकर पूजा और परिक्रमा की जाती है। 

अन्नकूट पर्व-
गोवर्धन पूजा के दिन भगवान के निमित्त भोग और नैवेद्य बनाया जाता है। जो ’56 भोग’ के नाम से मशहूर है। वहीं अन्नकूट पर्व मनाने से मनुष्य को लंबी आयु और आरोग्य की प्राप्ति होती है। इसके अलावा मनुष्य के जीवन से दरिद्रता का नाश होता है और समृद्ध की प्राप्ति होती है। मान्यता के अनुसार यदि इस दिन कोई मनुष्य दुखी रहता है तो वह वर्षभर दुखी ही रहेगा इसलिए हर मनुष्य को इस दिन प्रसन्न रहकर भगवान श्रीकृष्‍ण को प्रिय अन्नकूट उत्सव को भक्तिपूर्वक मानना चाहिए।