Learn why the festival of Lohri is celebrated and its importance

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-सीमा कुमारी 
हर साल लोहड़ी का पर्व मकर संक्रांति से एक दिन पहले यानी 13 जनवरी को मनाया जाता है। यह पंजाबियों का मुख्य त्योहार है, इसकी धूम उत्तर भारत खासकर पंजाब, हरियाणा में बहुत ज्यादा होती है। इसके अलावा दिल्ली और अन्य राज्यों में भी लोहड़ी का पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। लोहड़ी की शाम के वक्त लोग एक जगह पर इकट्ठे होकर लकड़ियों व उपलों को इकट्ठा कर छोटा सा ढेर बनाकर आग जलाते हैं। इसके चारों ओर चक्कर काटते हुए लोग नाचते-गाते हैं रेवड़ी, गजक, मूंगफली, खील, मक्के के दानों की आहुति देते हैं।

उसके बाद गले मिलकर एक दूसरे को बधाई दी जाती है और ढोल की थाप पर सब मिलकर भांगड़ा करते हैं। सभी लोगों में लोहड़ी यानी मक्का, गजक तिल गुड़ के पकवान बांटे और खाएं जाते हैं| इस दिन से, दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। यह ऋतु परिवर्तन से जुड़ा हुआ त्योहार है।इस त्योहार को शीत ऋतु के जाने और वसंत ऋतु के आगमन के तौर भी मनाया जाता है। 

पारंपरिक तौर पर लोहड़ी फसल की बुआई और उसकी कटाई से जुड़ा एक विशेष त्योहार है। इस अवसर पर पंजाब में नई फसल की पूजा करने की परंपरा है। इस दिन चौराहों पर लोहड़ी जलाई जाती है। इस दिन लड़के आग के पास भांगड़ा करते हैं, वहीं लड़कियां और महिलाएं गिद्दा करती हैं। सभी रिश्तेदार एक साथ मिलकर नाचते हुए बहुत धूम-धाम से लोहड़ी का जश्न मनाते हैं। इस दिन अलाव जलाकर उसके इर्दगिर्द डांस किया जाता है। इसके साथ ही आग के पास घेरा बनाकर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनी जाती है।

लोहड़ी पर दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने का खास महत्व होता है। मान्यता है कि मुगल काल में अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक शख्स पंजाब में रहता था। उस समय कुछ अमीर व्यापारी सामान की जगह शहर की लड़कियों को बेचा करते थे, तब दुल्ला भट्टी ने उन लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। तब से हर साल लोहड़ी के पर्व पर दुल्ला भट्टी की याद में उनकी कहानी सुनाने की परंपरा चली आ रही है।