-सीमा कुमारी
आज नवरात्र का पांचवा दिन है. इस दिन माता स्कंद की पूजा की जाती है. जो भक्त माता की पूजा पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ करते है, उसकी सारी मनोकामना पूरी होती है. इसलिए तो स्कंद माता को भक्तों के मोक्ष का द्वार खोलने वाली माता कहा गया है. लेकिन शारीरिक कष्टों के निवारण के लिए माता का भोग केले का लगाएं. स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम दिया गया है. भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं. मां की चार भुजाएं हैं जिसमें दोनों हाथों में कमल के पुष्प हैं. देवी स्कंदमाता ने अपने एक हाथ से कार्तिकेय को अपनी गोद में बैठा रखा है और दूसरे हाथ से वह अपने भक्तों को आशीर्वाद प्रदान कर रही हैं.
स्कंदमाता की पूजा विधि:
- सुबह स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करें.
- मां की मूर्ति एक चौकी पर स्थापित करके कलश की भी स्थापना करें. उसी चौकी पर श्रीगणेश, वरुण, नवग्रह, षोडश मातृका, सप्त घृत मातृका भी स्थापित करें.
- आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, हल्दी, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, आभूषण, पुष्प-हार, सुगंधित द्रव्य, धूप-दीप, नैवेद्य, फल, पान, दक्षिणा, आरती, प्रदक्षिणा, मंत्र पुष्पांजलि आदि करें.
- हाथ में फूल लेकर सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी.. इस मंत्र का जाप करते हुए फूल चढ़ा दें.
- मां की विधिवत पूजा करें, मां की कथा सुने और मां की धूप और दीप से आरती उतारें. उसके बाद मां को केले का भोग लगाएं और प्रसाद के रूप में केसर की खीर का भोग लगाकर प्रसाद बांटें.
माता स्कंद की कथा:
भगवान स्कंद को ‘कुमार कार्तिकेय’ के नाम से भी जाना जाता है. प्राचीन काल में जब देवासुर संग्राम हुआ तो वीरता के कारण इन्हें देवताओं का सेनापति बनाया गया था. पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा के बारे में बताया गया है. मां दुर्गा स्कंद की माता हैं. इसकी कारण दुर्गाजी को स्कंदमाता भी कहा जाता है. इनकी महिमा के कारण नवरात्र के पांचवें दिन देवी स्कंदमाता की पूजा की जाती है.