त्याग और तपस्या की देवी हैं मां ब्रह्मचारिणी, जानें इनकी महिमा

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-सीमा कुमारी

नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों को पूजा जाता है। आज नवरात्रि का दूसरा दिन हैं। आज के दिन माँ का नो रूपों में से मां ब्रह्मचारिणी की उपासना की जाती हैं। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाली है। यहां ब्रह्मचारिणी का आशय तपस्या और आचरण करने वाली से है। देवी का यह रूप पूर्ण ज्योतिर्मय और अत्यंत भव्य है। मां दुर्गा का यह स्वरूप भक्तों और सिद्धों को अनंत फल देने वाली है। इनकी उपासना से तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।  इस देवी के दाएं हाथ में जप की माला है और बाएं हाथ में यह कमण्डल धारण किए हैं। आइए इस अवसर पर मां ब्रह्मचारिणी से जुड़ी बातों को जानते हैं। जैसे कौन हैं मां ब्रह्मचारिणी और मां से जुड़ी पौराणिक कथा क्या है।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा:

 ऐसा कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी अपने पूर्व जन्म में पर्वतराज हिमालय के घर जन्मी थीं। मां ब्रह्मचारिणी ने नारदमुनि के कहने पर भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए घोर तप की थी। इस कठिन तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात्‌ ब्रह्मचारिणी नाम से अभिहित की  एक हजार वर्ष तक इन्होंने केवल फल-फूल खाकर बितायी, और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया।

कुछ दिनों तक कठिन उपवास रखी और खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के घोर कष्ट सहे। तीन हजार वर्षों तक टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। इसके बाद उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिया। कई हजार वर्षों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। पत्तों को खाना छोड़ देने के कारण ही इनका नाम अपर्णा नाम पड़ गया। कठिन तपस्या के कारण देवी का शरीर एकदम क्षीण हो गया। देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अभूतपूर्व पुण्य कृत्य बताया, सराहना की और कहा- हे देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की। यह तुम्हीं से ही संभव थी। तुम्हारी मनोकामना परिपूर्ण होगी और भगवान चंद्रमौलि शिवजी तुम्हें पति रूप में प्राप्त होंगे। अब तपस्या छोड़कर घर लौट जाओ। जल्द ही तुम्हारे पिता तुम्हें बुलाने आ रहे हैं। 

देवी की कथा का सार यह है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी मन विचलित नहीं होना चाहिए। मां ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से सर्व सिद्धि प्राप्त होती है। दुर्गा पूजा के दूसरे दिन देवी के इसी स्वरूप की उपासना की जाती है।

ऐसे पड़ा ब्रह्मचारिणी नाम:

हजारों वर्षों तक अपनी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा। उन्हें त्याग और तपस्या की देवी माना जाता है। अपनी इस तपस्या की अवधि में इन्होंने कई वर्षों तक निराहार रहकर और अत्यन्त कठिन तप से महादेव को प्रसन्न कर लिया। इनके इसी रूप की पूजा और स्तवन दूसरे नवरात्र पर किया जाता है।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि:

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में मां को फूल, अक्षत, रोली, चंदन आदि अर्पण करें। उन्हें दूध, दही, घृत, मधु व शर्करा से स्नान कराएं और इस देवी को पिस्ते से बनी मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद पान, सुपारी,लौंग अर्पित करें। कहा जाता है कि मां पूजा करने वाले भक्त का जीवन में सदा शांत चित्त और प्रसन्न रहते हैं. उन्हें किसी प्रकार का भय नहीं सताता है।

मंत्र:

दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥