शंकर जी का प्रदोष व्रत और दिन के अनुसार महत्व

Loading

सीमा कुमारी

प्रदोष व्रत हम इंसानों के लिए जीवन में आधयात्मिक और मानसिक रूप से शक्तिशाली एवं बुघी का प्रतीक है. प्रदोष व्रत हर महीने के दोनों पक्षों में  मनाया जाता है। इस व्रत में बोला जाता है कि, जो व्यक्ति मर जाते हैं और मर के जब वे यमलोक पहुंच जाते हैं उसे भी जीवन दान मिल जाता है. भगवन शंकर की खास और अनंत दया के लिए यह व्रत उत्तम है हिन्दू  धर्म में इसे बहुत खास माना गया है. इस वर्त को महीने के किसी भी पक्ष में करने से इंसान के सभी कष्ट नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति कष्ट से उभर जाता है.  प्रदोष व्रत दिन के अनुसार पड़ने वाले प्रदोष व्रत का अपना एक अलग महत्व होता है |

दिन के अनुसार प्रदोष व्रत और उनका महत्व :-

  • रविवार के दिन पड़ने वाली प्रदोष का सम्बन्ध देव सूर्य से होता है. इसे ‘भानु प्रदोष या रवि प्रदोष’ कहा जाता है |
  • सोमवार के दिन आने वाली प्रदोष का सम्बन्ध चन्द्रमा से होता है किसी का चन्द्रमा दूषित हो या अशुभ फल दायक हो तो सोम प्रदोष का व्रत अवश्य करना चाहिए |
  • मंगलवार के दिन आने वाली प्रदोष को ‘भौम प्रदोष’ कहते हैं. मंगलवार को आने वाली प्रदोष का सम्बन्ध राम के सबसे प्रिय भक्त हनुमान जी से होता है |
  • बुधवार के दिन पड़ने वाली प्रदोष को ‘सौम्यवारा’ प्रदोष कहा जाता है. इस प्रदोष का सम्बंन्ध भगवन शिव के पुत्र गणेश जी से होता है |
  • गुरुवार के दिन आने वाली प्रदोष को ‘गुरुवार प्रदोष’ कहा जाता है.. गुरुवार के दिन आने वाली प्रदोष का सम्बंन्ध भगवन विष्णु और बृहस्पति जी से होता है |
  • शुक्रवार के दिन पड़ने वाली प्रदोष का सम्बन्ध देव शुक्र से होता है और इसे ‘भृगुवारा प्रदोष’ कहते हैं. यह व्रत अखंड सौभाग्य व् सुखद वैवाहिक जीवन के लिए किया जाना चाहिए |
  • शनिवार को आनेवाली प्रदोष को ‘शनि प्रदोष’ कहा जाता है. शनि प्रदोष भगवान् शिव के भक्त शनि देव से सम्बंन्ध रखती है |

पूजन विधि :-
जो व्यक्ति व्रत रखना चाहते है वो व्‍यक्‍ति को सुबह  सूर्य उदय होने से पहले उठना चाहिये. और स्नान करके भगवान शंकर की जाप करना चाहिए. इस व्रत में सुबह-शाम दोनों वक्त पूजा करनी पड़ती है. एक सूर्य उदय के समय और एक सूर्यास्त के समय प्रदोष काल में. पूजा में आप अन्न का कोई सामग्री नहीं खा सकते है सिवाय फल के व्रत में अन्न का सेवन नहीं करेंगे, फलाहार व्रत करेंगे. सुबह नहाने के बाद साफ और चमकदार सफ़ेद कपड़ा ही  पहनें. फिर उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठे और ‘शंकर-पार्वती’ की  सयुंक्त पूजन करनी चाहिए. उन्हें सफ़ेद व् लाल फूलों की माला अर्पित करें. बेल पत्र अर्पित करें, सफ़ेद मिठाई (पताशे,रसगुल्ले), फल का भोग लगनी चाहिए. दीपक के साथ , धुप अगरबत्ती भी लगाएं.भगवान् शिव को चन्दन की सगंध अर्पित करनी चाहिए. दूर्वा घास अर्पित करें भगवान् गणेश और शिव जी को भगवान् गणेश का पूजन कर अपनी पूजा प्रारम्भ करनी चलिए पूजा में ‘ऊँ नम: शिवाय’ का जाप करें और जल चढ़ाएं |