Learn where the origin of Rudraksha and its importance
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    -सीमा कुमारी

    ‘शिवपुराण’ के अनुसार, रुद्राक्ष का अर्थ है – ‘रुद्र+अक्षि।’ मान्यताएं हैं कि ‘रुद्राक्ष’ की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है। रुद्राक्ष को प्राचीन काल से आभूषण के रूप में, सुरक्षा के लिए, ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इसे महामृत्युंजय महादेव शिव का प्रतीक मानते हैं। उनकी कृपा पाने के लिए भक्तजन इसे धारण करते हैं। इसलिए यह बहुत ही पवित्र और पूजनीय है।

    मान्यता तो ये भी है कि इसे धारण करने से शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। जीवन की समस्याओं से छुटकारा मिलने के साथ शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से लाभ मिलता है। 

    जानिए इसे धारण करने के क्या फायदे हैं ?

    • हिन्दू शास्त्रों में ‘दो मुखी रुद्राक्ष’ को शिव-शक्ति का स्वरूप बताया गया है। कहते हैं, इसे धारण करने से समाज में मान-सम्मान बढ़ता है। इसके अलावा, मन में शांति तथा चित्त में एकाग्रता आने से आध्यात्मिक उन्नति तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है। 
    • ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ‘त्रिमुखी रुद्राक्ष’ त्रिदेव रूप माने जाने वाले इस रुद्राक्ष को धारण करने से विद्या और सिद्धि प्राप्त होती है। इतना ही नहीं इसे पहनने से आत्मविश्वास बढ़ाता है। जीवन के सभी पापों से मुक्ति मिलने के साथ घर में सुख-समद्धि व खुशहाली आती है।  
    • ‘चार मुखी रुद्राक्ष’ को ब्रह्मरूप माना जाता है। मान्यता है कि इसे धारण करने से चतुर्विध फल मिलता है। साथ ही यह रचनात्मकता और बुद्धि बढ़ाने में भी मदद करता है। इसके अलावा इससे स्मरण शक्ति तेज होती है। 
    • ‘पंचमुखी रुद्राक्ष’ को किसी भी साधना में सिद्धि एवं पूर्ण सफलता दायक माना गया है। इसे धारण करने से जहरीले जंतु एवं भूत-प्रेत व जादू-टोने से रक्षा होती है तथा मानसिक शांति और प्रफुल्लता प्रदान करते हुए मनुष्य के समस्त प्रकार के पापों तथा रोगों को नष्ट करने में समर्थ है।
    • ‘शिवपुराण’ के अनुसार, ‘एक मुखी रुद्राक्ष’ धारण करने से हृदय और नेत्र रोग दूर होता है। इसके अलावा सिर दर्द से भी राहत मिलती है। और मन विकार से रहित होता है और भय मुक्त रहता है।  साथ ही लक्ष्मी की कृपा होती है।