Sankashti Chaturthi

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-सीमा कुमारी  

हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व है, जो इस साल 31 जनवरी को है। इस व्रत में विघ्नहर्ता भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दिन माताएं संतान की लंबी उम्र एवं अच्छी सेहत के लिए निर्जला व्रत रखती हैं, मान्यता है कि भगवान गणेश जी का यह व्रत करने से शिक्षा, धन, अच्छी सेहत का वरदान मिलता है। साथ ही इससे संतान निरोगी, दीर्घायु और सभी कष्ट से मुक्त हो जाता है। संकष्टी चतुर्थी का व्रत वैसे तो हर महीने में होता है लेकिन माघ महीने में पड़ने वाली संकष्टी चतुर्थी की महिमा सबसे ज्यादा है। जिसे संकष्टी चतुर्थी, वक्रकुंडी चतुर्थी, तिलकुटा चौथ के नाम से भी जाना जाता है। 

सकट चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त-

  • चतुर्थी तिथि प्रारम्भ- 31 जनवरी को रात 8 बजकर 24 मिनट
  • चतुर्थी तिथि समाप्त- 1 फरवरी को शाम 6  बजकर 24 मिनट तक
  • चंद्रोदय का समय- रात 8 बजकर, 41 मिनट  

पूजा विधि-
इस दिन प्रात:काल उठकर स्नान करने के बाद लाल वस्त्र धारण करें। पूरे विधि विधान से भगवान गणेश की पूजा करें। पूजा के वक्त गणेश भगवान के साथ लक्ष्मी जी की भी मूर्ति रखें। दिनभर निर्जला उपवास रखने के बाद रात में चांद को अर्घ्य दें। इसके बाद गणेश जी की पूजा कर फलाहार करें। फलाहार में सेंधा नमक का भी सेवन न करें।

कथा-
इसी दिन भगवान गणेश अपने जीवन के सबसे बड़े संकट से निकलकर आए थे। इसलिए इसे सकट चौथ कहा जाता है। एक बार मां पार्वती स्नान के लिए गईं तो उन्होंने दरबार पर गणेश को खड़ा कर दिया और किसी को अंदर नहीं आने देने के लिए कहा। जब भगवान शिव आए तो गणपति ने उन्हें अंदर आने से रोक दिया। भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया। पुत्र का यह हाल देख मां पार्वती विलाप करने लगीं और अपने पुत्र को जीवित करने की हठ करने लगीं जब मां पार्वती ने शिव से बहुत अनुरोध किया तो भगवान गणेश को हाथी का सिर लगाकर दूसरा जीवन दिया गया और गणेश गजानन कहलाए जाने लगे। सकट चौथ के दिन ही भगवान गणेश को 33 करोड़ देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। तभी से यह तिथि गणपति पूजन की तिथि बन गई। कहा जाता है कि इस दिन गणपति किसी को खाली हाथ नहीं जाने देते हैं।