जाने स्कन्द या चंपा षष्ठी की पूजा विधि, महत्व और कथा

स्कन्द/ चंपा षष्ठीमहत्व:स्कन्द षष्टी दक्षिणी भारत में मनाये जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है।इस दिन गौरी शंकर भगवान के पुत्र कार्तिकेय की पूजा करि जाती है।भगवान्

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स्कन्द/ चंपा षष्ठी महत्व: स्कन्द षष्टी दक्षिणी भारत में मनाये जाने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण पर्व है। इस दिन गौरी शंकर भगवान के पुत्र कार्तिकेय  की पूजा करि जाती है। भगवान् स्कन्द को मुरुगन,कार्तिकेयन, सुब्रमण्या के नाम से भी जाना जाता है। यह भाद्रपद मॉस के शुक्ल पक्ष की षष्टी तिथि को मनाया जाता है।कार्तिकेय के पूजन से रोग, दुःख और दरिद्रता का निवारण होता है। कथाओं के अनुसार भगवान शिव के तेज से उत्पन्न छह मुख वाले बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा कर रक्षा की थी, इसीलिए कार्तिकेय’ नाम से पुकारा जाने लगा। कार्तिकेय भगवान के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं, इसीलिए इनकी पूजा भारत के तमिलनाडु में विशेष तौर पर होती है। भगवान स्कंद का सबसे प्रसिद्ध मंदिर भी तमिलनाडु में ही है। स्कन्दपुराण में कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे बड़ा माना जाता है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि स्कन्द षष्ठी एवं चम्पा षष्ठी के महायोग का व्रत करने से काम, क्रोध, मद, मोह, अहंकार से मुक्ति मिलती है और सन्मार्ग की प्राप्ति होती है।

स्कन्द षष्टी पूजा विधि: स्कन्द षष्टी के दिन स्नान कर खुद को शुद्ध करलें। एक चौकी पर लाल कपडा बिछाएं और कार्तिकेय की स्थापना करें साथ में शंकर-पार्वती व् गणेश जी की मूर्ति स्थापना करें। भगवान के आगे कलश स्थापना करें। सबसे पहले गणेश वंदना करें। अखंड दीपक जलायें अन्यथा सुबह शाम दीपक जरूर जलाएं अथवा धुप अगरबत्ती भी लगाएं। भगवान् पर जल अर्पित करें तथा नए वस्त्र चढ़ाएं। फूल या फूलों की माला अर्पित कर फल, मिष्ठान का भोग लगायें। विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस दिन कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है।

स्कन्द षष्टी कथा: स्कन्दा पुराण १८ महापुराणों में से एक है। इसके अनुसार सुरपदमा,सिंहमुखा,तारकासुर के राक्षसों ने देव लोक पर कब्ज़ा कर हा हा कार मचा दी, देवताओं और मनुष्यों पर अत्याचार करा। तथा पूरे देव लोक को तेहेस नेहेस करदिया| तब देव भगवान् शिव के पास सहायता के लिए गए, परन्तु भगवान् शिव ध्यान में लीन थे। परन्तु ब्रह्मा जी के सलाह अनुसार, देवो ने कामदेव की सहायता से शिव ध्यान भंग करने के लिए उनके मन में पारवती के प्रति काम भाव जागरूक किया। जिस से क्रोधित हो भगवान् शिव की तीसरी आँख ने कामदेव को भस्म करदिया। शिव के शरीर से निकला वीर्य ६ हिस्सों में बंटा और गंगा के तट पर गिरा। और इसके प्रभाव से ६ बच्चो का जन्म हुआ। यह बच्चे ६ कृतिकाओं के द्वारा जीवित रहे। कुछ समय पश्चात पार्वती ने ६ बच्चों के शरीर एकत्र कर एक करदिया जिससे कार्तिके का नाम दिया गया। जब कार्तिके को देवताओं पर हो रहे अत्याचार का आभास हुआ, तब उन्होंने तारकासुर का वध कर देव लोक को असुरों से मुक्त कराया इस दिन के सन्दर्भ में मनाई जाती है संकष्टी चतुर्थी।