जगन्नाथ यात्रा से पहले ‘इस’ झाड़ू से साफ़ की जाती है सड़क

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    -सीमा कुमारी 

    हिन्दू धर्म में चार धामों का ख़ास महत्त्व है। इन्हीं में से एक धाम भगवान जगन्नाथ जी का पवित्र धाम है। यह धाम उड़ीसा  के ऐतिहासिक शहर पुरी में स्थित है। यहां हर साल अषाढ़ महीने  के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ जी रथ यात्रा निकाली जाती है, जो इस साल 12 जुलाई को निकलेगी।  

    भगवान जगन्नाथ की यात्रा सिर्फ अपने देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। इस यात्रा के कई रोचक पहलू हैं, जिनसे अधिकांश लोग वाकिफ नहीं है। आइए जानें कि भगवान जगन्नाथ की यात्रा की शुरुआत कैसे होती है ?

    ऐसे निकाली जाती है श्री जगन्नाथ रथ यात्रा:

    हिंदू धर्म में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष  महत्व है। विश्व प्रसिद्ध भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरू होने से पहले सोने की मूठ वाली झाड़ू से श्री जगन्नाथ के रथ के सामने का रास्ता साफ किया जाता  है। इसके बाद विधिवत पूजा पाठ, मन्त्रों के जाप और ढोल, ताशे, नगाड़े के साथ भक्त भगवान जगन्नाथ के रथ को मोटे मोटे रस्सों के सहारे खींचकर पूरे नगर में भ्रमण करते हैं।  ऐसा माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने में जो लोग एक दूसरे की सहायता करते हैं, वो जन्म-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। यात्रा की शुरुआत सबसे पहले बलभद्र जी के रथ से होती है।  उनका रथ ‘तालध्वज’ निकलता है। इसके बाद सुभद्रा के ‘पद्म रथ’ की यात्रा शुरू होती है।  सबसे अंत में भक्त भगवान जगन्नाथ जी के रथ ‘नंदी घोष’ को बड़े-बड़े रस्सों की सहायता से खींचना शुरू करते हैं।  

    गुंडीचा मां के मंदिर तक जाकर यह रथ यात्रा पूरी मानी जाती है। माना जाता है कि मां गुंडीचा भगवान जगन्नाथ की मौसी हैं। यहीं पर देवताओं के इंजीनियर माने जाने वाले विश्वकर्मा जी ने भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा का निर्माण किया था।