– सीमा कुमारी
आज आंवला नवमी है. जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है. कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पड़ने वाले इस व्रत का हिन्दू परंपरा में विशेष स्थान है. इस दिन दान-धर्म का बहुत अधिक महत्व होता है. इस दिन जो दान-पुण्य किया जाता है उसका लाभ वर्तमान में तो मिलता ही है साथ ही अगले जन्म में भी इसका फल मिलता है.
अक्षय नवमी को देव उठनी एकादशी के दो दिन पहले मनाया जाता है. इस दिन हर तरह का दान-पुण्य किया जा सकता है. यह व्रत प्राणियों में आरोग्य शक्ति प्रदान करने वाला होता है. शास्त्रों के अनुसार आंवला, पीपल, वटवृक्ष, शमी, आम और कदम्ब के वृक्षों को चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला कहा गया है. ऐसा माना जाता है कि इनके पास जप-तप पूजा-पाठ अगर किया जाए तो इससे सभी पाप मिट जाते हैं. आइए जानते हैं अक्षय नवमी की पूजा विधि:
आंवला नवमी पूजा विधि:
- आंवला नवमी की पूजा करने के लिए सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। फिर आंवले की पेड़ की पूजा करें।
- इसके बाद आंवले के पेड़ की जड़ में दूध चढ़ाएं और रोली, अक्षत, फूल,धूपअगरबती आदि अर्पित करें।
- फिर विधि-विधान से पूजा करें, इसके बाद आंवले की पेड़ की सात बार परिक्रमा करें और दिया भी जलाएं।
- आंवला नवमी की कथा भी करें।
- अगर किसी भी कारणवश आप इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा नहीं कर पा रहे हैं या उसके नीचे बैठकर भोजन ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं तो इस दिन आंवला जरूर खाएं।
पूजा मुहूर्त:
- आंवला नवमी- 23 नवंबर
- वमी तिथि आंरभ- 22 नवंबर रात 10:52 बजे से 23 नवंबर सोमवार रात 12: 33 बजे तक
- पूजा मुहूर्त- सुबह 06: 45 बजे से 11:54 तक ऐसा नहीं है. आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा सिर्फ सुबह की जाती है. यह दिन में किसी भी समय की जा सकती है.
आंवला नवमी का महत्व:
इस दिन तर्पण, स्नान, न्नादि के दान और पूजन से अक्षय अनंत गुणा फल मिलता है. पद्म पुराण में कार्तिकेय से भगवान शिव से कहा था कि आंवला वृक्ष साक्षात विष्णु का ही स्वरूप है. ऐसे में यह वृक्ष विष्णु प्रिय है. व्रत के स्मरण से गोदान के बराबर का फल प्राप्त होता है. यह भी कहा जाता है कि अगर आंवले के वृक्ष को स्पर्श मात्र से ही दोगुना तथा फल सेवन पर तीन गुणा फल प्राप्त होता हैं.