Lord-Vishnu

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    – सीमा कुमारी

    सनातन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को ‘पापमोचनी एकादशी’ कहा जाता है। इस साल ‘पापमोचनी एकादशी’ 7 अप्रैल यानी अगले बुधवार को है।

    सनातन हिन्दू धर्म में ‘पापमोचनी एकादशी’ व्रत का विशेष महत्व है। हर महीने दोनों पक्षों, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को एकादशी का व्रत होता है। इस तरह से पूरे साल में कुल मिलाकर 24 एकादशी पड़ती हैं।

    ‘एकादशी तिथि’ पर भगवान विष्णु के पूजन का विधान है। सनातन हिंदू धर्म में एकादशी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ बताया गया है। लेकिन यह विशेष एकादशी दो प्रमुख त्योहारों होली और नवरात्रि के मध्य के  समय में पड़ती है।

    ‘पापमोचनी एकादशी’ का महत्व, शुभ मुहूर्त  और व्रत-विधि

    शुभ मुहूर्त

    ‘पापमोचनी एकादशी’ व्रत पारण मुहूर्त

    • एकादशी तिथि आरंभ- 07 अप्रैल 2021 रात्रि 02 बजकर 09 मिनट से
    • एकादशी तिथि समाप्त- 08 अप्रैल 2021 रात्रि 02 बजकर 28 मिनट पर

    हरिवासर समाप्ति

    • समय- 08 अप्रैल को सुबह 08 बजकर 40 मिनट पर
    • एकादशी व्रत पारण समय- 08 अप्रैल को दोपहर 01 बजकर 39 मिनट से शाम 04 बजकर 11 मिनट तक

    व्रत विधि 

    ‘पापमोचनी एकादशी’ में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है। व्रती को एक बार दशमी तिथि को सात्विक भोजन करना चाहिए। 

    मन से भोग-विलास की भावना त्याग कर भगवान विष्णु का  स्मरण करना चाहिए। एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए। संकल्प के उपरांत षोडशोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भगवान की प्रतिमा के सामने बैठकर ‘भगवद् कथा’ का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए। झूठ या अप्रिय वचन न बोलें और प्रभु का स्मरण करें।

    महत्व

    सामना धार्मिक मान्यता के अनुसार, ऐसा कहा जाता है कि पापमोचनी एकादशी व्रत करने से व्रती के समस्त प्रकार के पाप और कष्ट दूर हो जाते हैं। इस व्रत को करने से भक्तों को बड़े से बड़े यज्ञों के समान फल की प्राप्ति होती है। ‘पापमोचनी एकादशी’ का व्रत करने से सहस्त्र अर्थात हजार गायों के दान का फल मिलता है। ब्रह्महत्या, सुवर्ण चोरी, सुरापान और गुरुपत्नी गमन जैसे महापाप भी इस व्रत को करने से दूर हो जाते हैं। इस ‘एकादशी तिथि’ का बड़ा ही धार्मिक महत्व है और पौराणिक शास्त्रों में इसका वर्णन मिलता है।

    पौराणिक कथा

    धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुरातन काल में चैत्ररथ नामक एक बहुत सुंदर वन था। इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या किया करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र गंधर्व कन्याओं, अप्सराओं और देवताओं के साथ विचरण करते थे। मेधावी ऋषि शिव भक्त थे लेकिन अप्सराएं शिवद्रोही कामदेव की अनुचरी थी। इसलिए एक समय कामदेव ने मेधावी ऋषि की तपस्या भंग करने के लिए मंजुघोषा नामक अप्सरा को भेजा।

    उसने अपने नृत्य, गायन और सौंदर्य से मेधावी मुनि का ध्यान भंग कर दिया और मुनि मेधावी मंजुघोषा अप्सरा पर मोहित हो गए। इसके बाद अनेक वर्षों तक मुनि ने मंजुघोषा के साथ विलास में समय व्यतीत किया। बहुत समय बीत जाने के पश्चात मंजुघोषा ने वापस जाने के लिए अनुमति मांगी, तब मेधावी ऋषि को अपनी भूल और तपस्या भंग होने का आत्मज्ञान हुआ।