कब है वैशाख महीने का पहला प्रदोष व्रत? जानें महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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    -सीमा कुमारी

    सनातन हिंदू धर्म में ‘प्रदोष व्रत’ का बड़ा महत्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर महीने की त्रयोदशी तिथि को ‘प्रदोष व्रत’ (Pradosh vrat) आता है। ‘प्रदोष व्रत’ महीने में दो बार रखा जाता है। मान्यताएं हैं कि प्रदोष काल में भगवान शिव कैलाश पर्वत पर नृत्य करते हैं और देवतागण उनका गुणगान करते हैं।

    कहा तो ये भी जाता है कि ‘प्रदोष व्रत’ रखने और भगवान शिव की विधि-विधान से पूजा करने से भक्त के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। पंचांग के अनुसार, वैशाख मास वर्ष का दूसरा माह है। इस बार वैशाख माह का पहला प्रदोष व्रत 8 मई 2021 को शनिवार को रखा जाएगा। इस बार यह व्रत शनिवार को पड़ने के कारण शनि प्रदोष कहलाएगा।

    अलग-अलग दिन पड़ने वाले प्रदोष का फल उसी के अनुसार प्राप्त होता है। यह तिथि भगवान शिव को समर्पित है। प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल यानी शाम के समय सूर्यास्त से लगभग 45 मिनट पहले शुरू कर दी जाती है। इस दिन विधि-विधान से व्रत और पूजन करने से भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आईए जानें ‘शनि प्रदोष व्रत’ का महत्व, शुभ मुहूर्त और पूजा विधि…

    शुभ मुहूर्त:

    वैशाख त्रयोदशी तिथि आरंभ- 08 मई 2021 शाम 05 बजकर 20 मिनट से

    वैशाख त्रयोदशी तिथि समाप्त- 09 मई 2021 शाम 07 बजकर 30 मिनट पर

    पूजा समय- 08 मई शाम 07 बजकर रात 09 बजकर 07 मिनट तक

    पूजा की कुल अवधि 02 घंटे 07 मिनट रहेगी।

    प्रदोष व्रत की पूजा प्रदोष काल में की जाती है, इसलिए प्रदोष व्रत 08 मई को किया जाएगा।

    पूजा विधि:

    ‘प्रदोष व्रत’ में प्रातःकाल पूजा तो की ही जाती है, इसके अलावा, शाम के समय पूजन करने का विशेष प्रावधान है। इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करके निवृत्त हो जाएं। ‘प्रदोष-व्रत’ के दिन ब्रह्मचर्य का पालन जरूर करना चाहिए।

    भगवान शिव को प्रणाम करें और धूप दीप जलाएं इसके बाद व्रत का संकल्प करें। भगवान शिव का पंचामृत से अभिषेक करें और फिर गंगाजल से स्नान कराएं। इस बात का जरूर ध्यान रखें कि शिव जी की पूजा में तुलसी का प्रयोग बिल्कुल न करें। पूजा होने के बाद उसी आसन पर बैठकर शिव चालीसा या शिव मंत्रों का जाप करें।

    मान्यताएं हैं कि, इस दिन व्रत करने और भगवान शिव की विधि- विधान से पूजा करने पर सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और घर -परिवार में सुख-समृद्धि आती है।

    महत्व:

    पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आस्था और समर्पण के साथ इस व्रत का पालन करने वाले भक्तों की स्वास्थ्य, धन और संतोष संबंधी इच्छाओं की पूर्ति होती है।

    इस व्रत को बेहद पवित्र माना गया है। यह भक्तों को अनंत आनंद और आध्यात्मिक उत्थान प्रदान करता है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से व्यक्ति के समस्त पाप मिट जाते हैं। कहा जाता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो जाते हैं तथा व्रती को सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति के साथ-साथ संतान प्राप्ति का भी वर देते हैं।