आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा को आषाढ़ पूर्णिमा माना जाता है। हर साल अलग-अलग तिथि पर यह पूर्णिमा मनाई जाती है। इस साल आषाढ़ पूर्णिमा 23 जुलाई को मनाई जाएगी। आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहा जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन भगवान माधव प्रसन्न रहते है और हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, जिन पर भगवान माधव प्रसन्न होते है उन्हें सुख-सौभाग्य, धन-संतान और मोक्ष प्रदान करते हैं। इस तिथि को भगवान महिर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। इसलिए इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। महिर्षि वेदव्यास ने मानव जाति को चार वेदो का ज्ञान दिया था। उन्होंने सभी पुराणों की रचना की थी। वह प्रथम गुरु माने जाते है। महर्षि वेदव्यास के योगदान को देखते हुए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत रखने के साथ ही भक्त भगवान विष्णु की अराधना करते हैं और सत्यनारायण कथा का पाठ या श्रवण करते हैं।
आषाढ़ पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास की पूर्णिमा 23 जुलाई (शुक्रवार) को सुबह 10 बजकर 43 मिनट से शुरू होगी, जो कि 24 जुलाई की सुबह 08 बजकर 06 मिनट तक रहेगी। उदया तिथि में पूर्णिमा मनाए जाने के कारण यह 24 जुलाई, शनिवार को मनाई जाएगी। गुरु पूर्णिमा या आषाढ़ पूर्णिमा के दिन सर्वार्थ सिद्धि और प्रीति योग का शुभ संयोग बन रहा है। 24 जुलाई को सुबह 6 बजकर 12 मिनट से प्रीति योग लगेगा, जो कि 25 जुलाई की सुबह 03 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इस दिन दोपहर 12 बजकर 40 मिनट से अगले दिन 25 जुलाई को सुबह 05 बजकर 39 मिनट तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा। ये दोनों योग शुभ कार्यों की सिद्धि के लिए उत्तम माने जाते हैं।
आषाढ़ पूर्णिमा व्रत विधि (Ashadha Purnima Vrat Vidhi)
इस पूर्णिमा पर सुबह उठ जाना चाहिए। इस दिन सुबह उठने का महत्व है। स्नान करना चाहिए। पवित्र नदी में स्नान नहीं कर सकते तो घर में नहाने के पानी में गंगाजल डालकर स्नान करना चाहिए। स्नान के बाद सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए अर्घ्य देना चाहिए। स्नान के बाद व्रत का संकल्प लें। भगवान कृष्ण या विष्णु की पूजा करें। इस व्रत में काले तिल का विशेष रूप से दान किया जाता है।