Pic Credit : Twitter
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    आकाश में कभी-कभी एक ओर से दूसरी ओर अत्यंत वेग से जाते हुए अथवा पृथ्वी पर गिरते हुए जो पिंड दिखाई देते हैं उन्हें उल्का (Meteor) और साधारण बोलचाल में ‘टूटते हुए तारे’ अथवा ‘लूका’ कहते हैं। उल्काओं का जो अंश वायुमंडल में जलने से बचकर पृथ्वी तक पहुँचता है उसे उल्कापिंड (Meteorite) कहते हैं। पिछले वर्ष यानी कि नवंबर 2020 में वैज्ञानिकों ने स्वीडन (Sweden) में गिरे उल्कापिंड की जांच की। इसके बाद उन्होंने बताया कि अंतरिक्ष (Space)आए इस पत्थर में लोहा ही लोहा है। स्वीडिश म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री (Swedish Museum Of Natural History) ने इस बात का खुलासा किया कि यह उल्का पिंड स्वीडन के उपासला गांव में मिला. इस उल्कापिंड पत्थर में अधिक मात्रा में लोहा है. साथ ही ये भी बताया कि ये स्वीडन में कैसे गिरा? यह कितने बड़े उल्कापिंड का हिस्सा रहा होगा?  

    31 पाउंड (14 किलोग्राम) का था उल्का पिंड 

    स्वीडिश म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री  (Swedish Museum Of Natural History) के अनुसार इस उल्कापिंड का आकार पाव रोटी जैसा है। इसका वजन लगभग 31 पाउंड (14 किलोग्राम) है और पहले ये  एक बड़े स्पेस रॉक का हिस्सा था। वैज्ञानिकों ने बताया कि ये जिस पत्थर से टूटकर गिरा है, उसका वजन लगभग 9 टन (9 Ton)  था, जिसने 7 नवम्बर (7 November) उपासला के ऊपर आसमानी रोशनी की थी। 

     0.1 इंच (3 मिलीमीटर) लंबे थे उल्का पिंड के टुकड़े 

    उल्का पिंड गिरने के बाद स्वीडिश म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के वैज्ञानिकों ने उस जगह को खोजा जहां उल्का पिंड गिरा था। वहां उल्कापिंड के छोटे-छोटे टुकड़े मिले। म्यूजियम के आदमी ने बताया कि उल्कापिंड के ये छोटे टुकड़े ओडेलन गांव के पास पाए गए। ये टुकड़े 0.1 इंच (3 मिलीमीटर) लंबे थे। 

    230 फीट (70 मीटर) लंबा था उल्का पिंड का टुकड़ा

    स्टॉकहोम के जियोलॉजिस्ट एंड्रियास फोर्सबर्ग और एंडर्स (Stockholm geologists Andreas Forsberg and Anders Zetterqvist) जब साइट पर वापस आए तो उन्हें उल्कापिंड का बहुत बड़ा टुकड़ा मिला। ये टुकड़ा देखने में ऐसा था जैसे कि बोल्डर को तोड़ दिया गया हो। ये टुकड़ा आशिंक रूप से काई में दफन था। 230 फीट (70 मीटर) था, जहां उल्कापिंड के टुकड़े मिले थे। टक्कर होने के कारण इसकी एक साइड चपटी और दरार से भरी हुई थी। इसके चारों और छोटे से छिद्र थे। लोहे के उल्कापिंड में इस तरह की आकृति बनना बहुत सामान्य है। म्यूजियम के अनुसार इस तरह के उल्कापिंड के पत्थर तब बनते है जब स्पेस से आया हुआ पत्थर वायुमंडल से गुजरते हुए पिघल जाते हैं। 

    स्वीडन में पहली बार पाया गया ऐसा उल्का पिंड 

    स्वीडिश म्यूजियम हिस्ट्री के क्यूरेटर डेन (curator Dan Holtstam Of Swedish Museum of Natural History) ने बताया कि ये हमारे देश मे गिरे हुए नए उल्कापिंड का पहला उदाहरण है। ये पहली बार है जब स्वीडन ने 66 वर्षों में फायरबॉल से जुड़े कोई भी उल्कापिंड प्राप्त किए हो। अब हम जानते है कि ये लोहे का उल्कापिंड है तो अब इसके गिरने के सिमुलेशन (Simulation) को ठीक कर सकते हैं। 

    ग्रहों और एस्टेरॉयड्स के केंद्र में पैदा होते हैं लोहे के उल्कापिंड 

    लोहे के उल्कापिंड (Iron Meteorite), पत्थर के उल्कापिंड (Stone Meteorite) के बाद दूसरे सामान्य तरह के पिंड है, जो धरती पर गिरते है। ये ग्रहों (Planet) और एस्टेरॉयड्स (Asteroid) के केंद्र में पैदा होते हैं।