एक साथ क्यों हटाए गए 12 मंत्री?

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    मोदी मंत्रिमंडल से एकसाथ 12 मंत्रियों को दूध से मक्खी की तरह निकाल देना इस बात की स्वीकृति है कि जो होना चाहिए था, वह नहीं हुआ लेकिन गलतियों की सारी जिम्मेदारी मंत्रियों के मत्थे मढ़ दी गई. स्वास्थ्य मंत्री की जवाबदेही तो समझ में आती है, कोविड के कारण शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत भ्रम फैला. श्रम मंत्री को हटाया गया क्योंकि पिछले साल बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिक बहुत कष्ट सहकर पैदल अपने गांव लौटे, जिसे देश आसानी से नहीं भूलने वाला. इसके बावजूद रविशंकर प्रसाद और प्रकाश जावड़ेकर के इस्तीफे सबसे हैरान करने वाले हैं. ये दोनों पार्टी और सरकार का चेहरा बन गए थे तथा पार्टी की सारी नीतियों का बचाव करते थे. इनके इस्तीफे का कारण यही समझ में आ रहा है कि ये अपने विभागों से संबंधित मुद्दों को ठीक से नहीं संभाल पा रहे थे. सभी मंत्रालयों को निर्देश हालांकि पीएमओ से ही मिलते हैं, लेकिन लगता है कि रविशंकर प्रसाद नए आईटी कानून लाने, ट्विटर विवाद आदि को ठीक से नहीं संभाल पाए, जिसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा है.

    अनुभवी लोगों की कमी पड़ी 

    इस फेरबदल के बाद स्थिति यह है कि मंत्रिमंडल में अनुभवी लोगों की कमी पड़ गई है. युवाओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया है, महिलाओं को प्रतिनिधित्व दिया गया है, क्षेत्रीय स्तर पर लोगों को प्रतिनिधित्व दिया गया है, पर वे अनुभवी नहीं हैं. सरकार चलाने के लिए अनुभवी और युवाओं की जरूरत है. इस फेरबदल में यह दिखाया गया है कि हम सभी राज्यों को साथ लेकर चल रहे हैं. जैसे, उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों और बुंदेलखंड से लोगों को सोच-समझकर शामिल किया गया है. उत्तर प्रदेश से 7 नए लोग लिए गए हैं और मंत्रिमंडल में उत्तर प्रदेश के 20 फीसदी मंत्री हैं. जातिगत आधार को भी ध्यान में रखा गया है. दलितों, महिलाओं, आदिवासियों सबका ख्याल रखा गया है, पर खास जोर गैर-यादव अति पिछड़ी जातियों पर है. लगता है कि आगे के चुनाव में भाजपा ओबीसी कार्ड खेलेगी, क्योंकि मंत्रिमंडल में आज एक-तिहाई से ज्यादा लोग ओबीसी हैं.

    सेवानिवृत्त नौकरशाह व टेक्नोक्रेट का समावेश

    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नजर 2022, 2023 और 2024 के चुनावों पर भी है. मोदी चाहते हैं कि सिर्फ पेशेवर राजनेता नहीं, टेक्नोक्रेट, सेवानिवृत्त नौकरशाह और विभिन्न पेशों के लोग भी राजनीति में आएं.  

    यह फेरबदल प्रतीकात्मक रूप से तो बहुत मजबूत है, पर जमीनी स्तर पर इसका क्या असर पड़ेगा, यह देखने वाली बात होगी क्योंकि जमीनी स्तर पर लोग मोदी को ही जानते हैं. अगर नए मंत्रियों को पीएमओ के निर्देश पर ही काम करना होगा, तो वे नए आइडियाज पर काम कैसे कर सकते हैं? मोदी ने गलतियां सुधारी हैं, योग्य व्यक्तियों को जिम्मेदारी सौंपी है और लगता है कि वह अब तक के काम करने के अपने तरीके की भी समीक्षा करेंगे, तभी वांछित सफलता मिल पाएगी. इन मंत्रियों को अपने ढंग से काम करने की छूट मिलेगी या नहीं? देश की जनता तो महंगाई कम होने और रोजगार मिलने पर ही सरकार के बारे में कोई राय बना पाएगी.