अहोई अष्टमी (Ahoi Ashtami) का व्रत माँ अपने पुत्र के लंबी आयु के लिए रखती हैं। इस साल यह व्रत 8 नवंबर को रखा जाएगा। कई जगहों पर इस व्रत को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन माताएं सुबह से लेकर शाम तक यानि गोधूलि बेला तक उपवास रखती हैं, फिर शाम को आसमान के तारों को देख अपना व्रत खोलती हैं। इसके अलावा कुछ महिलाएं चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद भी व्रत खोलती हैं।
यह व्रत बेहद ही कठिन मन जाता है। इस दिन चन्द्रमा बेहद देर से निकलते हैं। साथ ही इस व्रत का पूरी तरह पालन करना भी मुश्किल माना जाता है। यह व्रत करवा चौथ के चार दिन बाद और दीवाली पूजा से आठ दिन आता है। यह व्रत उत्तर भारत में ज़्यादा प्रसिद्ध है। अहोई अष्टमी का व्रत हर साल कृष्णपक्ष की अष्टमी को रखा जाता है।
अहोई अष्टमी तिथि-
इस साल यह व्रत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 08 नवंबर को सुबह 07 बजकर 29 मिनट से शुरू हो रहा है। यह तिथि 09 नवंबर को सुबह 06 बजकर 50 मिनट पर समाप्त होगा। इस व्रत की ऐसी मान्यता है कि माताएं के अहोई अष्टमी की पूजा करने से उनकी संतान की सभी परेशानियां दूर होती है और वह दीर्घायु होते हैं।
मुहूर्त-
- अहोई अष्टमी की पूजा का समय 8 नवंबर को शाम 5 बजकर 40 मिनट से शुरू होकर शाम 6 बजकर 58 मिनट तक रहेगा।
- वहीं चांद निकलने का समय 9 नवंबर रात 12 बजकर 12 मिनट है।
पूजा विधि-
- अहोई अष्टमी के दिन महिलाएं सूर्योदय से पहले ही पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें।
- उसके बाद अहोई माता की पूजा के लिए दीवार पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनाएं। इसके साथ साथ ही सेह और उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।
- फिर शाम के समय पूजन के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखें। उस पर जल से भरा कलश रखें और रोली-चावल से माता की पूजा करें।
- भोग के लिए मीठे पुए या आटे का हलवा बनाएं।
- कलश पर स्वास्तिक बना लें और हाथ में गेंहू के सात दाने लेकर अहोई माता की कथा सुनें।
- इसके बाद तारों को अर्घ्य देकर अपने से बड़ों के चरण स्पर्श करें और उनका आशीर्वाद लें।