कांग्रेस का 85 वां राष्ट्रीय अधिवेशन, बनेगी आम चुनावों की रूपरेखा

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करीब डेढ़ सौ दिनों तक की गयी राहुल गांधी की सफल ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के बाद देश में कांग्रेस के पक्ष में जो सकारात्मक माहौल बना है, उस माहौल को और ज्यादा मजबूत कैसे बनाया जाय तथा अगले आम चुनावों में पार्टी की रणनीति क्या हो?  इन दो बुनियादी सवालों का जवाब कांग्रेस रायपुर में आज से शुरू हो रहे अपने 85 वें राष्ट्रीय अधिवेशन में तलाशने की कोशिश करेगी. पहली बार छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर हो रहा यह अधिवेशन 24 से 26 फरवरी तक चलेगा. इसमें देशभर से आये 10,000 से ज्यादा नेता और कार्यकर्ता भाग लेंगे.

पार्टी का यह 85वां राष्ट्रीय अधिवेशन देश के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए मील का पत्थर साबित होगा. कांग्रेस नेतृत्व मानता है कि इस समय देश की जनता बहुत हताश है और वह कई ज्वलंत विषयों पर कांग्रेस की राय और नीतियों की तरफ उत्सुकता से देख रही है. कृषि, रोजगार और विदेश नीति विषयों पर इस सम्मेलन में जो प्रस्ताव पास होंगे, जिनसे देश के लोकतांत्रिक भविष्य की स्पष्टता देखने को मिलेगी.इसमें कोई दो राय नहीं है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ों यात्रा न सिर्फ उनके सियासी व्यक्तित्व के लिए मील का पत्थर साबित हुई है बल्कि कांग्रेस के बिगड़े स्वास्थ्य को भी किसी हद तक सुधारा है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा देश 14 राज्यों के 75 जिलों से होकर गुजरी थी और करीब 150 दिनों की इस यात्रा में राहुल गांधी ने 135 दिनों तक हर दिन इस यात्रा में पैदल चले थे .

सात सितंबर 2022 से शुरु हुई यह यात्रा वास्तव में 29 जनवरी 2023 को औपचारिक रूप से समाप्त हुई, जब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने श्रीनगर में भावनात्मक भाषण दिया था. लेकिन इतने भर से देश की इस सबसे पुरानी पार्टी का पुर्नजन्म हो जाए, ऐसी उम्मीदें लगाना जल्दबाजी होगी. निश्चित रूप से यह अधिवेशन उन परेशानियों को साफ करेगा, जो अगले आम चुनावों के लिए बचे महज 370 दिनों में माहौल बनाएंगी.

इस बात को मानने से किसी को गुरेज नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा बिल्कुल चरमरा गया है. यह किसी मरहम से स्वस्थ नहीं होने वाला. इसे एक जोखिमभरी सर्जरी की जरूरत है. अगर पार्टी नेतृत्व इस जोखिमभरी सर्जरी की हिम्मत करता है तो निश्चित रूप से संगठन के स्तर पर कांग्रेस को नया जीवनदान मिल सकता है. 29 जनवरी 2023 को निःसंदेह अपने भावुक भाषण से राहुल गांधी ने लाखों कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को ही नहीं बल्कि लोगों को भी द्रवित कर दिया था. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि राहुल गांधी द्वारा 4000 किलोमीटर से ज्यादा की गई यात्रा के बावजूद देश की विपक्षी पार्टियों के महत्वपूर्ण नेता किसी भी तरह की एकजुटता दिखाने की कोशिशों तक से दूर रहे. लगभग दो दर्जन से ज्यादा महत्वपूर्ण विपक्षी नेताओं को इस अंतिम समारोह में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित किया गया था. लेकिन इस आखिरी समारोह में नीतीश कुमार, अखिलेश यादव, ममता बनर्जी और तेजस्वी यादव नहीं पहुंचे. महाराष्ट्र में इस यात्रा को भरपूर समर्थन देने के बावजूद उद्धव ठाकरे और शरद पावर भी इस यात्रा के आखिरी समारोह में एकजुटता दिखाने के लिए इकट्ठा नहीं हुए.

यह अधिवेशन पार्टी को नई उम्मीदें देगा, लेकिन ये उम्मीदें साल 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए सत्ता के रूप भुनाई जा सकें यह जरूरी नहीं है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा ने उनके व्यक्तित्व को प्रभावशाली और गंभीर बनाया है. कांग्रेस में भी इस यात्रा के बाद एकजुटता दिखी है. लेकिन यह एकजुटता अभी भी इतनी नहीं है कि इसके बल पर पत्थर की तरह मजबूत मौजूदा सत्तारूढ़ गठबंधन को हिलाया जा सके. इसलिए कांग्रेस को वाकई सत्ता पाने की वास्तविक दावेदार बनने के लिए न सिर्फ हाई कमान के स्तर पर सख्त और त्वरित फैसले करने में अपनी कामयाबी जाहिर करनी होगी बल्कि क्षेत्रीय पार्टियों के साथ बराबरी के आधार पर रिश्ते तय करने होंगे. अगर इन पर इस सम्मेलन पर स्पष्टता बनती है तो वास्तव में यह अगले आम चुनावों के पहले एक महत्वपूर्ण रणनीतिक अधिवेशन साबित होगा.

– विजय कपूर