सलमान खुर्शीद के बाद अब अय्यर का मानसिक दिवालियापन

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    कांग्रेस की हालत किसी महासागर में भटके जहाज के समान हो गई है जिसका दिशादर्शक यंत्र टूट गया है और वह लहरों के थपेड़े खाने को विवश है. उसकी ऐसी दशा के लिए जिम्मेदार कुछ खुदाई खिदमतदार जैसे नेता हैं जो अपनी बेसिरपैर की बयानबाजी से पार्टी की नींव हिलाने में लगे हैं. उनकी अदूरदर्शिता इसी से जाहिर होती है कि वे अपने से बहुत दूर छिटक चुके मुस्लिम वोटबैंक को वापस खींचने की छटपटाहट दिखा रहे हैं. वह वोट सपा, एमआईएम, राजद, टीएमसी जैसी अन्य पार्टियों को पहले ही ट्रांसफर हो चुका है.

    मुस्लिम तुष्टिकरण के प्रयास में कांग्रेस उन बहुसंख्यक हिंदू वोटों को भी खो देगी जो अब भी इस पुरानी पार्टी पर थोड़ा-बहुत विश्वास रखते हैं. ऐसी स्थिति में दल की हालत यही रह जाएगी कि न इधर के रहे, न उधर के. सेक्यूलरिज्म के नाम पर हिंदुओं की अवहेलना कर मुस्लिमों की खुशामद करने का पार्टी का दांव अब उल्टा पड़ चुका है. 

    स्मरण रहे, डा. मनमोहन सिंह ने प्रधानमंत्री रहते हुए कहा था कि देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है. अब भी अल्पसंख्यकों को झुकता माप देने की इसी विचारधारा को कुछ कांग्रेसी नेता आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं कि वे अल्पसंख्यकों को फिर अपने पाले में ला पाएंगे. अल्पसंख्यक भी जानते हैं कि चुनाव सामने देखकर कांग्रेस को ऐसा मौसमी बुखार चढ़ जाता है.

    अतिरेक वाली भाषा

    सलमान खुर्शीद ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शिक्षित नामी वकील रहे हैं लेकिन उनकी सोच पूर्वाग्रहयुक्त और संकीर्ण है. उन्होंने अपनी किताब ‘सनराइज ओवर अयोध्या : नेशनहुड इन अवर टाइम्स’ में हिंदुत्व की तुलना आईएसआईएस और बोको हरम जैसे कट्टर, हिंसक और खूंखार दरिंदे आतंकी संगठनों से करने का शरारतपूर्ण दुस्साहस किया. ऐसे समय, जबकि यूपी के विधानसभा चुनाव काफी निकट आ गए हैं, सलमान खुर्शीद ने इस पुस्तक के जरिए हिंदुत्व को बदनाम करने और मुस्लिमों को खुश करने का चालाकी भरा खेल खेला है.

    उन्होंने ऐसा करके उन तमाम कोशिशों पर पानी फेर दिया जो राहुल और प्रियंका गांधी ने पार्टी में नई जान डालने के लिए की थीं. किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी जैसे मुद्दों की वजह से बीजेपी अड़चन में आ गई थी जिसका फायदा कांग्रेस उठा सकती थी लेकिन खुर्शीद जैसे नेता अपनी ही पार्टी की मीठी खीर में मुट्ठी भर नमक डालकर उसे बेस्वाद करने पर तुले हुए हैं. आज भारतीय समाज को बांटने का पुराना दांव काम नहीं आता. लोगों की असली समस्या बेरोजगारी और गरीबी है. इसकी बजाय हिंदुत्व की निंदा करना बेहद सस्ते किस्म की अवांछित राजनीति है.

    मुगल प्रेमी मणिशंकर

    मणिशंकर अय्यर को पार्टी ने उसी समय खामोश करवा दिया था जब कुछ वर्ष पूर्व उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के लिए ‘नीच’ शब्द का इस्तेमाल किया था. क्या कांग्रेस नेतृत्व ने फिर उन्हें बोलने की छूट दे दी है? अब अय्यर ने मुगलों की जमकर तारीफ करते हुए बीजेपी पर हमला बोला. 600 साल तक भारत को गुलाम रखने वाले मुगल वंश के प्रति अय्यर का प्रेम उमड़ पड़ा. उन्होंने कहा कि मुगलों ने देश में कभी धर्म के नाम पर अत्याचार नहीं किया. यह इतिहास को झुठलाने जैसी बात है. मुगल शासकों ने, खासतौर पर औरंगजेब ने हिंदुओं से जजिया कर वसूला. 

    जिसने अपने 3 भाइयों दारा शिकोह, शुजा और मुराद की निर्मम हत्या करवाई और अपने पिता शाहजहां को आगरा के किले में कैद कर दिया, वह कितना कट्टर रहा होगा! कश्मीर के हिंदुओं को जबरन मुसलमान बनाने से रोकने के लिए गुरु तेगबहादुर के सर्वोच्च बलिदान की क्या अय्यर को जानकारी है? गुरु गोविंदसिंह, राजा छत्रसाल और छत्रपति शिवाजी महाराज ने संघर्ष न किया होता तो औरंगजेब सारे देशवासियों को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर कर देता. बादशाह अकबर का एक स्याह पक्ष उसकी अय्याशी का था. वह मीनाबाजार भरवाता था जहां से हिंदू ललनाओं का अपहरण कर लिया जाता था. 

    वहां वेश बदलकर गए अकबर को राजपूत हाड़ा रानी ने पहचान लिया और उसे पटककर कटार लेकर उसके सीने पर सवार हो गई. जब अकबर ने गिड़गिड़ाकर माफी मांगी, तब हाड़ा रानी ने उसे छोड़ा. इसके बाद अकबर ने मीनाबाजार भरवाना बंद कर दिया. मेवाड़ के सूर्य महाराणा प्रताप ने कभी अकबर की दासता स्वीकार नहीं की. हल्दीघाटी की लड़ाई में महाराणा ने अदभुत शौर्य दिखाया था. मणिशंकर ने कहा कि हम अकबर को अपना समझते हैं. उनका पूरा बयान लचर दलीलों वाला है और दिमागी खोखलेपन को दर्शाता है. कांग्रेस की लुटिया डुबोने में ऐसे ही लोगों का हाथ है.