After the end of the farmers' Protest, the government's utter disobedience

यह वादा अभी तक पूरा नहीं होने को लेकर किसान संगठनों में आक्रोश बढ़ने लगा है.

    Loading

    देश का हर नागरिक सरकार से उम्मीद करता है कि वह वचनबद्ध, ईमानदार तथा वादे की पक्की हो. ऐसा करने पर जनता के बीच सरकार की साख और विश्वसनीयता कायम रह सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 नवंबर को 3 कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करते समय फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर समिति गठित करने का वादा किया था. यह वादा अभी तक पूरा नहीं होने को लेकर किसान संगठनों में आक्रोश बढ़ने लगा है.

    किसान महसूस करते हैं कि उनके साथ सरकार वादाखिलाफी कर रही है और उसके इरादे साफ नहीं हैं. किसान आंदोलन का यूपी विधानसभा चुनाव में बीजेपी की संभावनाओं पर विपरीत प्रभाव न पड़ने पाए, इसलिए कूटनीतिक पैंतरा अपनाते हुए प्रधानमंत्री ने अचानक भावुकतापूर्ण बयान देकर कृषि बिल वापस लेने की घोषणा की थी. जिन कानूनों को लेकर सरकार 15 महीनों से टस से मस नहीं हो रही थी, उनकी वापसी का एलान करना पीएम की मजबूरी थी.

    पीएम ने कहा था कि हमारी तपस्या कहीं अधूरी रह गई और हम किसानों को समझा पाने में विफल रहे. प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद संसद में बिना किसी चर्चा के सिर्फ 4 मिनट में तीनों कृषि कानून वापस ले लिए गए. पहले बिलों को आपाधापी में पास करना और फिर उसी तरह झटके से वापस लेना ऐसा करिश्मा है जो सिर्फ मोदी सरकार ही कर सकती है.

    सरकार का ढीला रवैया देखते हुए 15 जनवरी को दिल्ली में 400 किसान संगठनों की प्रतिनिधि सभा ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ (एसकेएम) की बैठक होने जा रही है जिसमें केंद्र सरकार द्वारा अभी तक एमएसपी समिति गठित नहीं करने और किसान नेताओं को उसमें शामिल करने के लिए आमंत्रित न किए जाने पर चर्चा होगी. बीकेयू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि किसान संगठनों द्वारा दिल्ली के विभिन्न धरना स्थलों को खाली किए लगभग 3 सप्ताह हो रहे हैं और प्रधानमंत्री द्वारा एमएसपी पर समिति गठित करने की घोषणा को भी डेढ़ माह बीत चुका है लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने संयुक्त किसान मोर्चा नेताओं को समिति के गठन और किसानों को उसमें शामिल करने के लिए कोई बुलावा नहीं भेजा.

    नीयत पर उठाए सवाल

    राकेश टिकैत ने आरोप लगाया कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है. अभी पूरी तरह से किसानों पर से मुकदमे भी वापस नहीं हुए हैं. सरकार चुप्पी साध कर बैठ गई है और सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल रखा है. उन्होंने कहा कि 15 जनवरी की बैठक में किसान संगठनों की एक संचालक समिति बनाने और राष्ट्रीय स्तर पर सांगठनिक ढांचा तैयार करने पर भी चर्चा होगी. टिकैत ने चेतावनी देते हुए कहा कि किसानों का आंदोलन अभी समाप्त नहीं हुआ है. संयुक्त किसान मोर्चा की बैठक में एमएसपी को लेकर नए सिरे से आंदोलन शुरू करने पर चर्चा की जाएगी.

    अनमनेपन से कानून वापस लिए

    यह बात तो साफ है कि इच्छा न होते हुए भी राजनीतिक बाध्यता के चलते प्रधानमंत्री को कृषि कानून वापसी की घोषणा करनी पड़ी. हालत यह हो गई थी कि बीजेपी के विधायकों और सांसदों को यूपी व हरियाणा में उनके गांव व चुनाव क्षेत्र में घुसने से रोका जा रहा था. ऐसे आसार नजर आने लगे थे कि यदि कृषि कानून वापस नहीं लिए गए तो बीजेपी को इसका बहुत बड़ा खामियाजा यूपी विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ेगा. सरकार ने आधे-अधूरे मन से काम किया. किसानों पर विभिन्न धाराओं में लगे मुकदमे वापस नहीं लिए गए और एमएसपी समिति का वादा भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. किसानों को तो यह भी संदेह है कि विधानसभा चुनाव निपट जाने के बाद कहीं केंद्र सरकार बदले हुए कलेवर में फिर कृषि बिल वापस न ले आए.