भाजपा की कठिन परीक्षा लेंगे उत्तर पूर्व के तीन विधानसभा चुनाव

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    – विजय कपूर

    उत्तर पूर्व के 3 राज्यों में विधानसभा चुनाव सन्निकट हैं. त्रिपुरा में 16 फरवरी को और नगालैंड व मेघालय में 27 फरवरी को मतदान कराया जायेगा. इन तीनों राज्यों की विधानसभाओं में 60-60 सीटें हैं और कुल मतदाता 62.8 लाख हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 28.1 लाख त्रिपुरा में हैं और मेघालय व नगालैंड में क्रमश: 21.1 लाख व 13.1 लाख मतदाता हैं. 2018 के चुनाव में भाजपा ने त्रिपुरा में अकेले दम सरकार बनायी थी और नगालैंड व मेघालय में वह अपने क्षेत्रीय सहयोगियों की जूनियर पार्टनर थी. बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने पार्टी का लक्ष्य इस वर्ष 9 राज्यों में होने वाले सभी विधानसभा चुनावों को जीतने का रखा है.

    उत्तरपूर्व की क्षेत्रिय पार्टियों में यह एहसास घर करता जा रहा है कि भाजपा उनकी कीमत पर अपना विस्तार कर रही है. यही वजह है कि भाजपा और एनपीपी नेशनल पीपल्स पार्टी, के संबंधों में खटास उत्पन्न हो गई है. पिछली बार दोनों पार्टियों ने मणिपुर के चुनाव अलग अलग लड़े थे. अब एनपीपी ने मेघालय की 60 सीटों में से 58 के लिए अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. इससे टीएमसी जैसी पार्टी के लिए भाजपा की कीमत पर जगह बन सकती है. पिछले साल उत्तरपूर्व के काफी हिस्सों से एएफएसपीए जैसे काले कानून को हटाया गया, जिसका श्रेय भाजपा को जाना चाहिए. इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं करना चाहिए कि हिंदी पट्टी में भाजपा की हिन्दुत्ववादी भावनाएं उत्तरपूर्व में अक्सर उसके विपरीत राजनीतिक लामबंदी का कारण बनती हैं.

    त्रिपुरा में भाजपा की राज्य इकाई में दरारें आ गई हैं, जिसकी वजह से बिप्लब देब को मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा. भाजपा के अपने आदिवासी सहयोगी आईपीएफटी से भी संबंध खराब हो गये हैं. फिर शाही परिवार के वारिस प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देब बर्मा के नेतृत्व वाली तिप्रा मोथा के निरंतर बढ़ते प्रभाव ने भी उसके लिए कठिनाई उत्पन्न कर दी है. माकपा ने गठबंधन बनाने की घोषणा की है जिसमें कांग्रेस व तिप्रा मोथा के शामिल होने की प्रबल सम्भावनाएं हैं. बंगाल चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद टीएमसी भी त्रिपुरा पर अपनी नजरें गड़ाये हुए है और वह सभी 60 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकर विपक्षी एकता को छिन्न-भिन्न कर सकती है.

    मेघालय में एनपीपी-बीजेपी गठबंधन में भी दरारें आ गई हैं. मुख्यमंत्री कोनराड संगमा ने पिछले साल ही कह दिया था कि उनकी पार्टी अकेले चुनाव लड़ेगी, इसलिए उन्होंने 60 में से 58 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. संगमा इस आदिवासी राज्य में समान नागरिक संहिता के भी विरोध में हैं. फिर पड़ोसी भाजपा-शासित असम से अंतर-राज्य सीमा विवाद भी गहरा होता जा रहा है. पिछले साल नवम्बर में असम पुलिस की फायरिंग में 6 लोग मारे गये थे, जिससे दोनों गठबंधन साथियों में संबंध अधिक ठंडे हो गये हैं.

    भाजपा के उत्तरपूर्व के योजनाकार व असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने दो टूक शब्दों में कहा है कि उनकी पार्टी मेघालय में सरकार बनाना चाहती है. दूसरी ओर ममता बनर्जी भी कोनराड संगमा के गढ़ में सेंध लगाने की इच्छुक हैं. 2018 के चुनाव में कांग्रेस की 21 सीटें आयी थीं, लेकिन पिछले साल पूर्व मुख्यमंत्री मुकुल संगमा उसके आधे से अधिक विधायक टीएमसी में ले गये थे. साल 2018 में कांग्रेस ने नागालैंड व त्रिपुरा में एक भी सीट नहीं जीती थी.

    इसी किस्म के सीमा व भूमि विवाद नागालैंड और असम के बीच भी हैं. इसके अतिरिक्त नागालैंड के सत्तारूढ़ गठबंधन जिसमें एनडीपीपी (नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी), बीजेपी व एनपीएफ (नागा पीपल्स फ्रंट) शामिल हैं, को अलग राज्य फ्रंटियर नागालैंड की मांग का सामना भी करना पड़ रहा है, जिसे ईएनपीओ (ईस्टर्न नागालैंड पीपल्स आर्गेनाइजेशन) कर रही है. यह मांग ऐसे समय में उठी है, जब केंद्र व एनएससीएन-आईएम के बीच नागा शांति वार्ता पर गतिरोध बना हुआ है, क्योंकि एनएससीएन-आईएम नागाओं के लिए अलग झंडे व संविधान की जिद किये हुए है. अनेक नागा गुट चुनावों का बहिष्कार करने की धमकी दिए हुए हैं.

    इन तीनों राज्यों के कुल 62.8 लाख मतदाताओं में महिला वोटर्स बहुसंख्या में हैं और हार-जीत के ताले की चाबी भी उन्हीं के पास है. तीनों राज्यों में 18-19 वर्ष के 1.76 लाख नये मतदाता हैं और 97,100 मतदाता ऐसे हैं जिनकी आयु 80 वर्ष से अधिक है, जिनमें से 2,644 तो आयु का शतक लगा चुके हैं यानी 100 साल से अधिक के हैं. त्रिपुरा में हिंसा की आशंका को देखते हुए पहले व अलग मतदान कराने का निर्णय लिया गया है, जिसके लिए बड़ी संख्या में केन्द्रीय अर्द्ध सैनिक बलों की जरूरत पड़ेगी.

    उत्तरपूर्व के सात में से चार राज्यों में भाजपा के नेतृत्व में सरकारें हैं. वह इनमें कम से कम एक का इजाफा करना चाहती है. उसकी नजर विशेषरूप से मेघालय पर है. दरअसल, उत्तरपूर्व पर भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर अधिक फोकस कर रही है ताकि दिल्ली में उसकी सत्ता बनी रहे. उत्तरपूर्व के सात राज्यों में लोकसभा की कुल 24 सीटें हैं जिनमें से 17 फिलहाल एनडीए के पास हैं. मिजोरम उत्तरपूर्व का एकमात्र राज्य है जहां की सरकार में भाजपा का स्टेक नहीं है, लेकिन वहां की सत्तारूढ़ एमएनएफ केंद्र में एनडीए का हिस्सा है. मिजोरम में अगले वर्ष चुनाव होंगे.