Campuses of foreign universities can open in India

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    विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा जारी मसौदे के मुताबिक विदेशी विश्वविद्यालय भारत में अपने कैम्पस खोल सकते हैं. इसके अलावा वे अपने प्रवेश के नियम, फीस का ढांचा तय करने के लिए स्वतंत्र होंगे. वे अपने मूल या अभिभावक कैम्पस को फंड भी भेज सकेंगे. यह शिक्षा क्षेत्र में एक क्रांतिकारी बदलाव होगा. ऐसा हुआ तो छात्रों को यूरोप, अमेरिका के विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए विदेश नहीं जाना पड़ेगा. अपने देश में खोले गए कैम्पस में पढ़कर उन्हें वहां की डिग्री मिल जाएगी.

    1990 में जो नई शिक्षा नीति बनी थी उसिका एक भाग यह मसौदा है. इस दिशा में कदम उठाने में पहले ही काफी विलंब हुआ यूपीए सरकार के दौरान 2010 में विदेशी शिक्षा संस्थाओं से संबंधित विधेयक संसद में पास नहीं हो पाया. 2014 में यह विधेयक रद्द हो गया क्योंकि तब विपक्ष में रहते हुए बीजेपी, सपा और लेफ्ट पार्टियों ने इसका विरोध किया था. अब सत्ता में आने पर बीजेपी ने उच्च शिक्षा के पुनर्गठन के महत्व को स्वीकार किया. प्रति वर्ष बड़ी तादाद में होनहार छात्र उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए विदेश चले जाते हैं और कितने ही वहां नौकरी करने लगते हैं.

    पिछले 2 दशकों में विदेशी विश्वविद्यालयों ने अन्य देशों में अपने कैम्पस खोले हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालयों के कैम्पस 70 विदेशी राष्ट्रों में हैं. इनमें से ज्यादातर चीन और खाड़ी देशों में हैं. आलबैनी में स्थित न्यूयार्क स्टेट यूनिवर्सिटी के 200 से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय कैम्पस हैं. अमेरिकी विश्वविद्यालयों को अधिकांश फंड विदेश में स्थित अपने कैम्पस से मिलता है.

    यद्यपि भारत ने विदेशी विश्वविद्यालयों के सामने वित्तीय या ढांचागत मदद का प्रस्ताव नहीं रखा है लेकिन भारतीय युवाओं की विदेश में पढ़ने की ललक देखते हुए विदेशी यूनिवर्सिटी भारत में अपना कैम्पस खोल सकती हैं यूजीसी इन विदेशी विश्वविद्यालयों को काम करने की पर्याप्त आजादी तथा वित्तीय स्वायत्तता देने को तैयार है. एक मुद्दा यह भी है कि हर विदेशी विश्वविद्यालय बहुत प्रसिद्ध नहीं होता. क्या हार्वर्ड, पेल, स्टैनफोर्ड, एमआईटी, वोस्टन, कै्ब्रिरज या आक्सफोर्ड भारत में कैम्पस खोलना चाहेंगे?