चारधाम तीर्थयात्रा, गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक

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    भगवान सभी के हैं जिनकी कृपा हर भक्त पर बरसती है, इसीलिए उन्हें विश्वनाथ और जगन्नाथ कहा गया है. वे संपूर्ण सृष्टि के रचयिता और पालनहार हैं. इतने पर भी ध्यान रखना पड़ता है कि कोई श्रद्धाहीन या देवालय को अपवित्र करने या नुकसान पहुंचाने के इरादे से आया व्यक्ति वहां प्रवेश न करने पाए. ऐसे समय जब आतंकवादी और धर्म विरोधी तत्व उपद्रव करने की ताक में हैं, तीर्थस्थलों में अत्यंत सावधानी बरतना आवश्यक है. 

    आगामी 3 मई से यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ की चारधाम यात्रा शुरू होने जा रही है. हजारों हिंदू तीर्थयात्रियों की आस्था उन्हें इन स्थलों में खींच ले जाती है. यद्यपि 2013 में केदारनाथ में भीषण प्राकृतिक त्रासदी हुई लेकिन फिर भी चारधाम तीर्थयात्रियों की तादाद में कोई कमी नहीं आई. यद्यपि केदारनाथ के लिए हेलीकॉप्टर सेवा उपलब्ध है लेकिन फिर भी बड़ी तादाद में तीर्थयात्री खच्चर पर या पैदल ही यह दुर्गम तीर्थयात्रा करते हैं. बुजुर्ग या कमजोर लोगों को पिट्ठू या पीठ पर रखी बास्केट में बिठाकर चढ़ाई पर ले जाया जाता है.

    सतर्कता के लिहाज से उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्करसिंह धामी ने घोषणा की है कि जिन लोगों का ठीक प्रकार से वेरिफिकेशन नहीं है, उन सभी का चारधाम यात्रा के पूर्व वेरिफिकेशन कराया जाएगा. इसके बाद ही उन्हें जाने की अनुमति मिलेगी. सावधानी के लिहाज से इस प्रकार की शिनाख्त बहुत जरूरी है. यह आस्थापूर्ण तीर्थयात्रा है, कोई सामान्य पर्यटन नहीं. इसलिए कोई गलत व्यक्ति वहां न जाने पाए, इसकी सावधानी रखना आवश्यक है. यह धर्म और संस्कृति के लिए जरूरी है.

    शंकराचार्य ने मुद्दा उठाया

    कुछ दिनों पहले शंकराचार्य परिषद के अध्यक्ष व शांभवी पीठाधीश्वर स्वामी आनंद स्वरूप ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को पत्र लिखा था कि हिमालय विश्व के सनातन धर्म के लोगों के लिए आध्यात्मिक राजधानी है. इसलिए चारधाम यात्रा में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगनी चाहिए. उन्होंने आरोप लगाया कि इस इलाके में बड़ी तादाद में गैर हिंदुओं का प्रवेश हो रहा है, जिससे क्षेत्र में अपराध बढ़ रहे हैं. स्वामी आनंद ने लिखा कि काली सेना के साथ मिलकर शंकराचार्य परिषद ने ‘हिमालय हमारा देवालय’ अभियान चलाया है. इसमें चारधाम यात्रा में गैर हिंदुओं के प्रवेश को वर्जित करने के लिए जनता को जागरूक किया गया है. उन्होंने उत्तराखंड में भू कानून में संशोधन की मांग भी की.

    तीर्थ स्थलों की पवित्रता जरूरी

    तीर्थ स्थलों में मांसाहार व मद्यपान वर्जित है. साथ ही शुद्ध आचार-विचार रखते हुए श्रद्धालुओं से वहां पहुंचने की अपेक्षा की जाती है. कितने ही तीर्थयात्री चमड़े के जूते या बेल्ट का इस्तेमाल नहीं करते. तीर्थयात्रा के दौरान सात्विक भोजन करते हैं और प्याज-लहसुन भी नहीं खाते. हरिद्वार और बद्रीनाथ के ब्रह्मकपाल में दिवंगत पूर्वजों का श्राद्ध भी करते हैं. पहले चारधाम यात्रा दुर्गम हुआ करती थी लेकिन अब अच्छी सड़कें व पुल बन गए हैं तथा बस व अन्य वाहन भी काफी दूर तक जाते हैं, फिर भी यमुनोत्री और केदारनाथ की यात्रा में टट्टू पर बैठकर जाना पड़ता है. कितने ही यात्री पैदल भी जाते हैं.

    प्रतिबंध का अधिकार

    जब मक्का-मदीना में किसी हिंदू को नहीं जाने दिया जाता तो हमारे तीर्थ स्थलों में भी किसी गैर हिंदू को क्यों आने दिया जाए? जगन्नाथपुरी के मंदिर में तो इंदिरा गांधी को भी प्रवेश करने नहीं दिया गया था क्योंकि उन्होंने पारसी फिरोज गांधी से शादी की थी. धर्मस्थलों के अपने-अपने नियम होते हैं. अपनी उदारता के बावजूद हिंदू धर्म में आस्था और पवित्रता को विशेष महत्व दिया जाता है.