Congress should prepare the agenda after understanding the feelings of other parties, only then the opposition parties will be together.

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गठबंधन तभी साकार ले सकता है जब सहयोगी दलों की भावनाओं और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर उदारता व सामंजस्य की नीति अपनाई जाए यदि समावेशी विचारधारा रखी जाए तो सभी एकजुट हो सकते हैं. देश की राजनीति में गठबंधन पहले भी बनते रहे हैं लेकिन वह तभी तक टिके जब तक आपसी तालमेल बना रहा जब जनता पार्टी बनी थी तो उसमें पूर्व कांग्रेस नेता, समाजवादी और जनसंघी नेता शामिल थे. यह गठबंधन इसलिए टूटा क्योंकि मधु लिमये और राजनारायण जैस समाजवादी नेताओं ने अटलबिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी की दोहरी सदस्यता का मुद्दा उठाया था और कहा था कि जनता पार्टी में रहना है तो ये नेता संघ से अपना नाता तोड़े.

वाजपेयी और आडवाणी ने जनता पार्टी से अलग होकर बीजेपी बना ली थी. बाद में जब वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी तो उसमें छोटी-बड़ी 24 पार्टियां शामिल थीं वाजपेयी सभी को साथ लेकर चले और अपना कार्यकाल पूरा किया लेकिन उसी दारान नानाजी देशमुख और दत्तोपंत ठेंगडी इसलिए नाराज थे क्योंकि गठबंधन की मजबूरी की वजह से वाजपेयी बीजेपी का एजेंडा पूरा नहीं कर पा रहे थे. सहयोगी पार्टियों के रूठने और मनाने का सिलसिला चलता रहा. यद्यपि एनडीए आज भी है लेकिन उसका महत्व नहीं रह गया क्योंकि अकेली बीजेपी 303 लोकसभा सीटों के साथ काफी मजबूत बनी हुई है और सहयोगी पार्टियों पर निर्भर नहीं है. जहां तक विपक्ष का सवाल है, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता छिन जाने के बाद विपक्ष कांग्रेस के सुर में सुर मिलाता नजर आ रहा है कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने डिनर में सोनिया विपक्ष से तालमेल संभालती नजर आईं. इस बैठक में टीएमसी और बीआरएस जैसे दल पहली बार शामिल हुए. स्पष्ट है कि जो दल राहुल गांधी की अगुवाई पसंद नहीं करते थे, वे सोनिया के नेतृत्व पर भरोसा कर सकते हैं.

कांग्रेस की बड़ी रणनीति है सड़क पर होनेवाले सभी धरना-प्रदर्शन का नेतृत्व प्रियंका गांधी को सौंपा जाएगा जबकि विपक्षी दलों से तालमेल के मोर्चे पर कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी कमान संभालेंगी. यूपीए शासन काल के दौरान 10 वर्षों तक सोनिया गठबंधन की नेता थीं उस समय उनका सभी विपक्षी दलों के साथ बेहतर तालमेल था. वास्तव में सोनिया की समझदारी व परिपक्वता की वजह से ही यूपीए 2004 से 2014 तक सत्ता में रहा.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने सार्थक टिप्पणी करते हुए कहा कि लोकसभा की सदस्यता से राहुल गांधी की अयोग्यता की स्थिति में विपक्षी एकता ने एक इमारत खड़ी करने के लिए उपजाऊ जमीन मुहैया कराई है. अगर यह अधिक टिकाऊ सहयोग की शुरूआत है तो इसके लिए कीमत अदा की जा सकती है. इधर एक अच्छी बात यह भी हुई कि खडगे की डिनर पार्टी में राकां अध्यक्ष शरद पवार ने राहुल गांधी को समझा दिया कि सावरकर के मुद्दे पर बयानबाजी न करें क्योंकि इससे महाराष्ट्र में आघाड़ी की एकजुटता पर असर पड़ सकता है. कांग्रेस के लिए जरूरी है कि अन्य पार्टियों की भावनाओं व जरूरतों को समझकर एजेंडा बनाए तभी विपक्षी उसके साथ रहेंगे.