Country's hopes from President of India Droupadi Murmu

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    भारत की नई राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का शपथ ग्रहण के बाद यह कथन अत्यंत उल्लेखनीय है कि मेरा राष्ट्रपति बनना इस बात का सबूत है कि देश का गरीब सपने देख सकता है. उनके यह उद्गार स्पष्ट संकेत देते हैं कि अब सिर्फ धनी व अभिजात्य वर्ग के लोगों का ही उच्चतम पदों पर एकाधिकार नहीं रह सकता. गरीब, पिछड़े, दलित भी इन पदों पर पहुंचकर लोकतंत्र को पूर्णता व सार्थकता प्रदान कर सकते हैं. मुर्मू का राष्ट्रपति बनना दर्शाता है कि भारत का लोकतंत्र सामाजिक आयामों को स्पर्श करने लगा है. एक संवेदनशील महिला और आदिवासी नेता होने के नाते द्रौपदी मुर्मू के पास लोकतंत्र की निचली पायदान वाली बुनियादी संस्थाओं से जुड़ने का विशिष्ट अनुभव रहा है. उन्हें ऐसी जमीनी हकीकत की जानकारी है जो अधिकांश नेताओं को नहीं रहती. उन्होंने ऐसी कठिन परिस्थितियों में संघर्ष किया है जहां सामाजिक ऊंच-नीच तथा आर्थिक असमानता हावी है. मुर्मू उस आदिवासी समुदाय से हैं जो देश की कुल आबादी का 8.6 फीसदी है और समूचे भारत में फैला हुआ है. आजादी के पहले से ही आदिवासी समाज उपेक्षित था और शिक्षा, स्वास्थ्य, आय व जीवनस्तर में अन्य वर्गों की तुलना में पिछड़ा हुआ था. इतने पर भी आजादी की लड़ाई में बिरसा मुंडा के अलावा झारखंड के तिलका माझी और मेघालय के तिरोत सिंह का विशिष्ट योगदान रहा है.

    संविधान की संरक्षक

    राष्ट्रपति संविधान का संरक्षक होता है. संसदीय लोकतंत्र में राष्ट्र के संवैधानिक प्रमुख के रूप में भारत के राष्ट्रपति के अधिकार सीमित होने से वह सत्ता का केंद्र नहीं बन पाता. सरकार का मुखिया प्रधानमंत्री ही रहता है. विशेषज्ञों की राय में भारत का राष्ट्रपति ब्रिटेन की महारानी से अधिक अधिकारसंपन्न लेकिन अमेरिका के प्रेसीडेंट से कम शक्तिशाली होता है. इसके बावजूद संसद द्वारा पारित विधेयकों को कानून का रूप राष्ट्रपति के हस्ताक्षर करने पर ही मिलता है. वह किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए संसद के पास वापस भेज सकता है. राष्ट्रपति सेना के तीनों अंगों का प्रमुख होता है और गणतंत्र दिवस परेड की सलामी लेता है. राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्रिमंडल को शपथ दिलाता है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस से लेकर राजदूतों और सभी उच्च पदों की नियुक्ति राष्ट्रपति की स्वीकृति से ही होती है. प्रोटोकाल में राष्ट्रपति का पद सर्वोच्च होता है. राष्ट्रपति दलीय राजनीति से ऊपर होता है.

    इसी में गणतंत्र की सार्थकता

    मुर्मू का इस पद पर चुनाव जन-जन की सामूहिक भावना की अभिव्यक्ति है जो कि आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली से प्रखरता से सामने आई है. अब देश ने समझ लिया है कि आदिवासी समुदाय न्याय का हकदार है. मुर्मू का राष्ट्रपति बनना सामाजिक लोकतंत्र की प्रगति को दर्शाता है. मोदी शासनकाल में सामाजिक क्रांति पर जोर देते हुए पहले रामनाथ कोविंद और फिर मुर्मू को राष्ट्रपति बनाकर दिखाया गया कि समाज में हाशिये पर रहे वर्ग को भी योग्यतानुसार आगे आने का पूरा हक है. यही सच्चा गणतंत्र है. किसी समुदाय का विकास सिर्फ आर्थिक दृष्टि तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उसे सामाजिक, सांस्कृतिक, लोकतंत्रिक आयामों में भी व्यापक स्वीकृति मिलनी चाहिए.

    महत्वपूर्ण चुनौतियां सामने हैं

    द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति रहते 2024 का आम चुनाव होगा, जिसके बाद वे नई सरकार को शपथ दिलाएंगी. उन्हें जटिल परिस्थितियों में संविधान की कसौटी पर अनेक महत्वपूर्ण फैसले भी करने होंगे. उन्हें संवैधानिक संरक्षक के रूप में जताना होगा कि उनके लिए पक्ष और विपक्ष दोनों का समान महत्व है. उनकी नेतृत्व क्षमता, प्रतिभा और कठिन समय पर निर्णय लेने की सूझबूझ आगे चलकर कसौटी पर होगी.