कानून व टैक्स की समस्याओं के कारण, 8,000 अरबपति देश छोड़कर चले गए

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    किसी भी भारतवासी में देश प्रेम की कमी नहीं है लेकीन जब सख्त कानून और तरह-तरह के टैक्स के बोझ की वजह से उद्योग व्यवसाय चलाना दूभर हो जाए तो ऐसी परिस्थिति में अरबपति कारोबारी भी देश छोड़ने को विवश हो जाते हैं. देश के उद्योगपति दीर्घकाल से व्यवसाय के लिए अनुकूल नियम-कानून बनाने की मंाग करते आ रहे हैं. 

    यद्यपि सरकार ईज ऑफ डूइंग बिजनेस (व्यवसाय करने में सहूलियत) का दावा करती है लेकिन उदार आर्थिक नीति और भूमंडलीकरण के बावजूद देश में उद्योग- व्यवसाय कर पाना आसान नहीं है. जटिल कानूनों की वजह से कारोबार में कदम-कदम पर रुकावटें आती है. निवेश करने के बाद भी लागत नहीं निकलती उद्योग- व्यवसाय को प्रोत्साहित करने वाले पोषक व अनुकूल वातावरण का अभाव देखा जाता है. 

    भारत में उद्योग के लिये जमीन हासिल करने, कर्ज मंजूर कराने, तरह-तरह के परमिट व लाइसेंस लेने के लिये बहुत पापड़ बेलने पड़ते हैं. अफसरशाही कई प्रकार के अड़ंगे लगाती है. सरकारने एक खिड़की या सिंगल विंडो योजना की बात कहीं थी लेकिन भुक्तभोगी जानते हैं कि उन्हें अनुमति पत्र, अनुज्ञतापत्र या अनापत्ति प्रमाणपत्र हासिल करने के लिये एड़ीचोटी का जोर लगाना पड़ता है. नेता से लेकर अफसर तक सभी को खुश किए वगैर फाइल आगे ही नहीं बढती. 

    रिश्वत और कमीशन खोरी इतनी व्याप्त हो गई है कि उद्योगपति का बजट जवाब दे जाता है. इस संबंदा अधिकांश उद्योगपति यह सोचकर चुप्पी बरतते हैं कि पानी में रहकर मगर से बैर कौन करे. इसके बावजूद राहुल बजाज और उद्योगपति ने एक बार व्यवस्था की खामियों को लेकर खरी-खरी सुनाई थी. जो बड़ा कारोबारी हजारों लाखों कर्मियों को अपने उपक्रमों में रोजगार देता है और व्यवसाय की जोखिम को साहसपूर्वक उठाता है, उसकी नीयत पर जब सरकारी जांच एजेंसियां शक करने लगे तो क्या उसका मन नहीं उचटेगा? 

    व्यवसाय को चलाने और फायदे में लाने का ज्ञान कारोबारियों को ही होता है. यही वजह है कि देश में सरकारी उपक्रम भारी घाटे में चल रहे हैं जबकि चुनौतियों के बावजूद निजी उपक्रम अपने को संभाले हुये हैं. नोटबंदी और जीएसटी से कारोबार को फायदा हुआ था नुकसान, यह बस का विषय हो सकता है लेकिन सर्वविदित तथ्य है कि अचानक लागू की गई नोटबंदी की वजह से हजारों मंझोले और छोटे उद्योग बंद हो गए और लाखों लोगों पर बेरोजगारी कहर बनकर टूट पड़ी. 

    सरकार अपनी उद्योग नीति में उद्योग जगत तो शीर्ष और जानेमाने व्यक्तियों की राय नहीं लेती. वह ब्यूरोक्रेट्स की सलाह पर चलती है. माइग्रेशन कन्सल्टेंसी फर्म हेनले एंड पार्टनर्स की ताजा रिपोर्ट के अनुसार 2022 में अब तक देश छोड़कर जाने के मामले में रूस और चीन के बाद भारत का नंबर आताहै. रूस से 15,000 और चीन से 10,000 अरबपति देश छोड़कर चले गए. 

    2019 और 2020 में भारत के करीब 7,000 अरबपति दूसरे देशों में बसने चले गए. एक रिपोर्ट के अनुसार 2014 से लेकर अब तक हाई नेटवर्क वाले 23,000 अमीर भारतीय विदेश जाकर बस चुके हैं. डिजिटल उद्यमियों के लिये सिंगापुर बेहद पसंदीदा जगह है. दुनिया के सबसे ज्यादा विदेशी संयुक्त अरब अमीरात (दुबई) में बसने जा रहे हैं. 

    इसके बाद आस्ट्रेलिया और सींगापुर का नंबर है. रिपोर्ट में आश्वस्त किया गया है कि भारत में कुल 3.57 लाख अरबपति हैं और विदेश जा बसनेवालों का आंकडा महज 2 प्रतिशत है. भारत मेंं धन का सृजन तेजी से हो रहा है और 2031 तक अरबपतियों की संख्या 80 प्रतिशत की वृद्घि होगी. इस दौरान यह दुनिया का सबसे तेजी से अमीर होनेवाला क्षेत्र होगा.