त्योहार के वक्त एसटी हड़ताल से जनता हलाकान, मांग जायज है लेकिन समय गलत

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    ऐन त्योहार के समय महाराष्ट्र राज्य परिवहन महामंडल (एसटी) के कर्मचारियों की हड़ताल से जनता को भारी परेशानी हो रही है लेकिन दूसरी ओर कर्मचारियों की व्यथा समझना भी आवश्यक है. वेतन नहीं मिलने से कुछ एसटी कर्मचारियों ने आत्महत्या भी की है. कर्मचारियों की मांगें जायज होने पर भी उन्होंने गलत समय पर हड़ताल की है. इस तरह जनता को हलाकान करना सर्वथा अनुचित है. एसटी कर्मचारियों की अनेक मांगें बकाया है. इसके लिए शुरू में महामंडल के विभिन्न संगठनों ने एक कृति समिति बनाई जिसके 3 चरणों में आंदोलन करने का निर्णय लिया. 

    प्रथम चरण में कर्मचारियों की आर्थिक मांगें मंजूर करवा लेना, दूसरे चरण में एसटी कर्मियों को सरकारी कर्मचारियों का दर्जा दिलवाने के उद्देश्य से नागपुर विधान मंडल सत्र में मोर्चा निकालना तथा तीसरे चरण में सरकार के कोई निर्णय नहीं लेने पर काम बंद आंदोलन करना तय हुआ. इसके अनुसार 27 व 28 अक्टूबर को आंदोलन किया गया.

    महामंडल ने तुरंत इस पर ध्यान देकर महंगाई भत्ता 12 प्रतिशत से बढ़ाकर 28 प्रतिशत कर दिया. इसी प्रकार मान किराया 7 प्र.श. से बढ़ाकर 8 प्र. श. कर दिया गया. इस पर कृति समिति ने हड़ताल वापस ले ली लेकिन कनिष्ठ वेतन श्रेणी कर्मचारियों के संगठन ने पुन: हड़ताल शुरू कर दी. उनकी मांग है कि जब तक कर्मचारियों को सरकारी सेवा में शामिल नहीं कर लिया जाता तब तक काम बंद रखा जाएगा.

    कमाई से खर्च ज्यादा

    एक समय कहा जाता था कि जहां गांव वहां एसटी. अब एसटी की व्यवस्था गड़बड़ा गई है. इसकी आय 6000 करोड़ रुपए है और खर्च 7,000 करोड़ रुपए. आमदनी और खर्च में तालमेल न होने से घाटा बढ़ता ही जा रहा है. एसटी में 93,000 कर्मचारी हैं, 18,600 बसें हैं जिन्हें संभालना महामंडल को कठिन हो रहा है. एक बस के पीछे 5 कर्मचारी हैं. ईंधन मूल्यों में वृद्धि, कर्मचारियों के वेतन का भार, गाड़ियों की दुरुस्ती का खर्च, कोरोना संकट में गाड़ियां नहीं चलने से महामंडल का खर्च बढ़ता चला गया. 

    सरकार की ओर से आर्थिक सहायता नहीं मिलने से महामंडल को अपनी कमाई से ही कर्मचारियों को वेतन देने की बाध्यता है. किसी महीने डेपो को अच्छी आय होती है तो किसी महीने कम आमदनी हो पाती है इसलिए उस प्रतिशत के अनुसार कर्मचारियों को वेतन दिया जा रहा था उन्हें आश्वासन दिया जाता था कि शेष वेतन महामंडल देगा लेकिन जब चालू महीने का ही वेतन देने में दिक्कत जा रही थी तो बकाया वेतन का सवाल ही नहीं उठता था.

    सभी 250 डेपो बंद

    हड़ताल के दूसर दिन भी सैकड़ों बस स्थानकों में सूनापन देखा गया. राज्य के सभी 250 डेपो बंद हैं. अकोला-वाशिम जिले के 9 आचार बंद होने से 350 बसें खड़ी हैं और 40 लाख रुपए का नुकसान हो रहा है. इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि समूचे राज्य में कितनी क्षति हो रही होगी. निजी वाहनों की बन आई है.

    राज्य सरकार ने प्राइवेट बसों को छूट दी है लेकिन वे जनता से मनमाना किराया वसूल कर रहे हैं. जिन मार्गों पर एसटी फायदे में चल रही है वहां के मुनाफे से घाटे में चलने वाले मार्ग के कर्मियों को वेतन दिया जा सकता है. सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों के प्रति कड़ा रुख अपनाया है और सख्त निर्णय ले सकती है जीआर जारी करने के बाद भी हड़ताल शुरू रखने पर अदालत ने नाराजगी जताई है.

    निजीकरण का अंदेशा

    लोगों को आशंका है कि एसटी का बढ़ता घाटा देखकर उसका भी एयर इंडिया के समान निजीकरण न कर दिया जाए. ‘बेस्ट’ का अनुभव रखने वाली शिवसेना के पास परिवहन मंत्री पद हैं. विशेषज्ञों की राय लेकर व आर्थिक अनुशासन लागू कर हालत अब भी सुधारी जा सकती है.