खैराती वादों पर टिका गुजरात का चुनाव

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    गुजरात विधानसभा चुनाव लड़ रही सभी पार्टियों ने मुफ्त उपहार व सुविधाओं के वादों की झड़ी लगा दी है. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने मुफ्त बिजली, मुफ्त शिक्षा, मुफ्त स्वास्थ्य सेवा के अलावा घटी हुई दर में सिलेंडर देने, पुरानी पेंशन स्कीम लागू करने, किसानों का कर्ज माफ करने जैसी घोषणाएं की हैं. जवाब में बीजेपी ने भी अपने चुनाव घोषणा पत्र में मुफ्त शिक्षा व स्वास्थ्य सुविधा, 2 मुफ्त सिलेंडर, घटी या सब्सिडाइज्ड दर पर चना व खाद्य तेल देने का वादा किया है. इतना ही नहीं बीजेपी ने कॉलेज जानेवाली लड़कियों को मुफ्त में इले्ट्रिरक स्कूटर देने का वचन दिया है.

    यहां प्रश्न उठता है कि जब गुजरात के सरकारी अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डाक्टरों की 11 प्रतिशत कमी है तो मुफ्त स्वास्थ्य परीक्षण व इलाज के वादों का कौन सा आधार है. क्या पार्टियां मतदाताओं को सिर्फ लॉलीपाप दिखाने में लगी हैं? कांग्रेस और ‘आप’ को पीछे छोड़ने के लिए बीजेपी के चुनावी वादे काफी बढ़ चढ़कर हैं. हिंदुत्व की भावना पर जोर देते हुए समान नागरी कानून लागू करने, दंगाइयों की संपत्ति जब्त करने, पुलिस में कट्टरपंथी विरोध सेल गठित करने तथा धर्मांतरण पर कड़ा प्रतिबंद लगाने के वादे बीजेपी ने किए हैं. इसके अलावा बीजेपी का वादा गुजरात को 1 खरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने तथा 2036 के ओलंपिक गेम्स अहमदाबाद में कराने का आकर्षक वादा भी है. तीनों ही पार्टियों ने 10 से 20 लाख नौकरियां देने का वादा किया है. यह सारे वादे मतदाताओं को लुभाने के लिए हैं लेकिन क्या नेता इन्हें पूरा कर पाएंगे?

    कुछ माह पूर्व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम आदमी पार्टी के रेवड़ी कल्चर की काफी तीखी आलोचना की थी. उन्होंने कहा था कि जो संसाधन विकास कार्यों में लगाने चाहिए, वे ऐसे खैराती वादों की भेंट चढ़ जाते हैं. जनता को मुफ्तखोर और आलसी बनाना उचित नहीं है. कोई विपक्षी पार्टी चुनावी वादा करे तो वह रेवड़ी है और बीजेपी ऐसा वादा करे तो वह उसे संकल्प का नाम देती है. लड़कियों को केजी से लेकर पीजी तक मुफ्त शिक्षा तथा महाविद्यालयीन छात्राओं के लिए स्कूटर देने का वादा क्या प्रलोभन नहीं है? इसके अलावा भावनात्मक रूप से भी जनता को प्रभावित करने में कसर बाकी नहीं रखी जाती. अपनी प्रचार सभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने 2 दशक पूर्व की घटना का हवाला देते हुए कहा कि गोधरा कांड के बाद हमने दंगाइयों को अच्छा सबक सिखाया. इसके बाद से 2 दशकों से गुजरात में शांति है. कट्टरपंथी विचारधारा फैलाकर आतंकवाद को खाद पानी देनेवाले लोगों से निपटने के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ बनाया जाएगा.

    जब सरकार के पास एनआईए जैसी एजेंसी तथा अन्य गुप्तचर संगठन हैं तो एक और प्रकोष्ठ बनाने से क्या हासिल होगा? गुजरात को बीजेपी की प्रयोगशाला कहा जाता है. संभव है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद देशभर में समान नागरी कानून (यूजीसी) की दिशा में बीजेपी सक्रियता दिखाए. जहां तक 2036 में गुजरात में ओलंपिक कराने का वादा है, क्या अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक संगठन बीजेपी जैसी राजनीतिक पार्टी का आग्रह मानेगा? इतने बड़े आयोजन को कराने के लिए सरकार को प्रयास करने पड़ते हैं.

    भारत में आज तक कभी ओलंपिक नहीं हुआ है. इसके लिए अत्यंत व्यापक स्तर पर भारी बजट के साथ तैयारी करनी पड़ती है. अनेक स्टेडियम, फील्ड ट्रैक, तरणताल बनवाने, सारे विश्व से आईटीया व खिलाड़ियों के रहने-खाने व अभ्यास का इंतजाम करना पड़ता है. आयोजन के बाद इन निर्माण कार्यों का कोई उपयोग नहीं रह जाता. इसलिए यह वादा पूरी तरह हवा-हवाई है. वोटों की खातिर जनता को बहलाने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता.