प्रकृति जिस तरह के तीखे तेवर दिखा रही है, उससे स्थितियां अत्यंत गंभीर और चिंताजनक हो उठी है. लगातार 2 वर्षों से मौसम के मिजाज से कृषि जगत हलाकान है. मौसम चक्र अनियंत्रित या बेकाबू हो उठा है. कभी भारी बारिश और बाढ़ आ रही है तो कभी भीषण सूखा पड़ रहा है. बेमौसम बारिश व आंधी-तूफान से फसलों को भारी नुकसान पहुंचा है. किसान बेहाल हैं और ग्रामीण अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है. मौसम चक्र इस तरह बदला है कि मानसून संबंधी मौसम विभाग की भविष्यवाणी भी बेअसर साबित होती है. किसान बीज बोते हैं लेकिन फिर बारिश न होने से ये बीज चिड़िया चुग जाती हैं. दोबारा बुआई करने की नौबत आती है. कभी वर्षा देर से होती है और जुलाई के अंत में पानी बरसता है.
आम तौर पर किसान मानकर चलते थे कि 7 जून को मृग नक्षत्र लग जाने के बाद से बारिश का सीजन शुरू हो जाएगा इसलिए वे खेतों की मशक्कत करने, निंदाई, गुड़ाई, जोहने व बुआई का काम प्रारंभ करने में लग जाते थे लेकिन अब बरसात का भरोसा नहीं रहा. कहा नहीं जा सकता कि पानी बरसेगा या सूखा पड़ेगा, मानसून वक्त पर आएगा या अपनी दिशा और समय बदल लेगा. पिछले दिनों हुई बेमौसमी बारिश ने गेहूं और चने को नुकसान पहुंचाया था.
फसलें जमीन पर लोट गई थीं. इस तरह के हालात देखते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में निर्णय लिया गया कि मानसून के अलावा किसी भी अन्य मौसम में होनेवाली लगातार बारिश से होनेवाले कृषि फसलों के नुकसान के लिए किसानों को प्राकृतिक आपदा के तहत उचित मुआवजा प्रदान किया जाएगा. इसके पहले तक नियम यह था कि 24 घंटे में 65 मिमी बारिश रिकार्ड होने या अधिक वर्षा होने पर क्षेत्र के सभी गांवों में फसल क्षति का पंचनामा किया जाता था जिसके तहत फसल की हानि 33 प्रतिशत से अधिक होने पर प्रभावित क्षेत्र के लिए निर्धारित दर पर इनपुट (लागत) सब्सिडी के रूप में किसानों को सहायता दी जाती रही है.
नए निर्णय के अनुसार राजस्व मंडल में भारी बारिश का कोई रिकार्ड नहीं है फिर भी सर्कल के गांवों में लगातार बरसात होने से फसलों का नुकसान होने पर किसानों को मदद दी जाएगी. मौसम के इस बदलाव की प्रमुख वजह ग्लोबल वार्मिंग है. दिसंबर 2022 में तिरूवनंतपुरम में विश्व बैंक ने अपनी रिपोर्ट पेश करते हुए भारत में भीषण गर्मी को लेकर चेतावनी दी थी. गत 9 मार्च को केरल के तिरूवनंतपुरम और कन्नूर जिलों में तापमान 54 डिग्री सेल्सियस को छू गया था.
इस बार फरवरी महीने का औसत तापमान 146 वर्षों में सबसे अधिक रहा. जी-21 क्लाइमेट रिस्क एटलस ने तो भविष्य का भयावह चित्र पेश करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा कि 2036 में भारत में लू चलने की समयावधि 25 गुना तक बढ़ जाएगी. विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार भीषण गर्मी की वजह से 2030 तक देश में 3 करोड़ 40 लाख लोग बेरोजगार हो जाएंगे. इनमें से लगभग 38 करोड़ लोग किसान और मजदूर के रूप में ऐसे खुले क्षेत्रों में काम करते है जहां का वातावरण गर्म है. गर्मी से उनकी उत्पादकता पर विपरीत असर पड़ेगा. ग्रीन हाउस गैसों, वृक्षों की अंधाधुंध कटाई व कार्बन उत्सर्जन से मौसम बिगड़ता चला जा रहा है.