अंतत: हंगामों के कारण संसद सत्र एक दिन पहले ही खत्म

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    क्या सरकार और विपक्ष के बीच निरंतर गतिरोध व हंगामे की वजह से हमारी संसदीय प्रणाली विफल हो रही है? संसद का शीतसत्र निर्धारित कालावधि से एक दिन पूर्व ही समाप्त हो गया. ताली दोनों हाथों से बजती है, इसलिए केवल विपक्ष को इसके लिए दोषी नहीं ठहराया जा सकता. सत्र की शुरुआत के पहले दिन ही पिछले सत्र में हंगामा करने वाले विपक्ष के 12 सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया. यह निर्णय अभूतपूर्व था क्योंकि एक सत्र में हंगामे की सजा दूसरे सत्र में दी गई.

    इसकी वजह से विपक्ष और सरकार के बीच टकराव बढ़ा. स्पीकर और सरकार की ओर से कहा जा रहा था कि निलंबित सांसद अपने को कसूरवार मानकर पश्चाताप करें और माफी मांगें तो उनका निलंबन दूर करने पर विचार किया जा सकता है. विपक्षी सदस्य झुकने को तैयार नहीं थे. उन्होंने संसद भवन परिसर में गांधी प्रतिमा के सामने लगातार धरना आंदोलन जारी रखा. इस दौरान संसद में सरकार ने 12 विधेयक पेश किए जिनमें से 10 पारित करा लिए गए. अपने बहुमत के कारण सरकार बगैर किसी बहस के ध्वनिमत से विधेयक धड़ाधड़ पास कराने में सफल रही. उसने दिखा दिया कि विपक्ष की वह कोई परवाह नहीं करती.

    विपक्ष का आरोप

    विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि सरकार पेगासस जासूसी, किसानों के मुद्दे, लद्दाख में चीनी घुसपैठ तथा निलंबित सांसदों के मुद्दे पर सवालों से बचना चाहती है. वह लखीमपुर खीरी में किसानों को गाड़ी से कुचलकर मारने की घटना को लेकर केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के मुद्दे पर भी सवालों का सामना नहीं करना चाहती. गरीबी, बेरोजगारी, महंगाई जैसे मुद्दों पर भी चर्चा के लिए सरकार अनिच्छुक थी.

    सरकार अपनी गलती मानना नहीं चाहती. उसकी रणनीति विफल रही और संवैधानिक नियमों को ताक पर रखकर एक दिन पहले ही संसद का सत्र समाप्त कर दिया गया. सरकार की उपलब्धि यही रही कि उसने विपक्ष के विरोध के बावजूद आधार से वोटर कार्ड को जोड़ने वाला चुनाव सुधार बिल पास करा लिया. इसी तरह महिलाओं की शादी की न्यूनतम उम्र 18 से बढ़ाकर 21 वर्ष करने का विधेयक भी पास किया गया.

    टेनी मुद्दा गले की फांस

    लखीमपुर खीरी मामले को लेकर विपक्ष का रवैया आक्रामक रहा. सरकार यदि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी को पद से हटाती तो यही संदेश जाता कि उसने गलती मान ली और बैकफुट पर चली गई. इसके अलावा इसका विपरीत असर यूपी चुनावों पर भी पड़ता और विपक्ष को अपनी ताकत का गुमान हो जाता. सरकार ने सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर चर्चा करने के लिए विपक्ष के प्रतिनिधियों को आमंत्रित किया था लेकिन इसमें भेदभाव का आरोप लगाते हुए कांग्रेस तथा अन्य समान विचार वाले विपक्षी दलों ने अपना कोई प्रतिनिधि नहीं भेजा.

    विपक्ष ने तय कर लिया था कि वह निजता का उल्लंघन कर आधार को वोटर कार्ड से जोड़ने तथा लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र बढ़ाने जैसे विवादास्पद बिलों का संयुक्त रूप से विरोध करेगी. केवल वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा नशीले पदार्थों से संबंधित विधेयक पर विपक्ष से केवल कांग्रेस के कमलनाथ और ‘आप’ के मनोज झा ने विचार व्यक्त किए. उन्होंने कहा कि सरकार ने यह बिल लाने में 6 वर्ष की देरी की. त्रिपुरा हाईकोर्ट ने भी इस मुद्दे पर रूलिंग दी थी, तब सरकार को अपनी गलती समझ में आई.

    विपक्ष पर कार्यवाही नहीं, चलने देने का आरोप

    राज्यसभा में सत्तापक्ष के नेता पीयूष गोयल ने आरोप लगाया कि विपक्ष सिर्फ कामकाज में व्यवधान डालने और हंगामा करने के मंत्र पर काम कर रहा है. वह सदन को चलने देना नहीं चाहता. कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने कहा कि 2000 में विपक्ष के 7 सदस्यों का निलंबन वापस ले लिया गया था. इस पर गोयल ने कहा कि निलंबन तब वापस लिया गया था जब विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने खेद व्यक्त किया था. अभी भी 12 निलंबित सदस्यों को माफी मांगनी चाहिए.

    शीत सत्र में कुल 18 बैठकें हुईं जिनमें लोकसभा की उत्पादकता 82 प्रतिशत तो राज्यसभा की उत्पादकता 47.90 प्रतिशत रही. कितने ही बिल बगैर बहस के पारित कर लिए गए. लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने कहा कि सत्र में व्यवधान की वजह से लोकसभा का 18 घंटे 12 मिनट का समय बरबाद हुआ.