दोनों कम्युनिस्ट दलों के लिए पहले अपनी पार्टी फिर देश

Loading

अत्यंत शर्मनाक है कि भारत की 23,000 वर्गमील जमीन हड़पनेवाले, विस्तारवादी चीन के आक्रामक रवैये के बावजूद केरल के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनाई विजयन ने चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तीसरी बार इस पद पर निर्वाचित होने पर बधाई दी. विजयन ने ट्वीट कर कहा- ‘यह वास्तव में सराहनीय है कि चीन वैश्विक राजनीति में एक प्रमुख आवाज के रूप में उभरा है. चीन को और समृद्ध बनाने के निरंतर प्रयासों के लिए शुभकामनाएं!’ भारत के सबसे बड़े शत्रु देश के राष्ट्रपति के साथ हमारे देश के एक राज्य के मुख्यमंत्री का इतना अपनापन जताना न केवल आश्चर्यजनक बल्कि अत्यंत निंदनीय है.

यह हमेशा से देखा गया कि कम्युनिस्ट कभी देशभक्त नहीं रहे. ब्रिटिश शासन के दौरान वे स्वाधीनता आंदोलन से दूर रहे और उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत का साथ दिया था तथा मुखबिरी की. इसी प्रकार जब 1962 में चीन ने भारत पर हमला किया था तब भी कम्युनिस्टों का झुकाव चीन की ओर ही रहा. कम्युनिस्टों के बारे में तब कहा जाता रहा कि यदि रूस या चीन में बारिश हो तो भारत के कम्युनिस्ट तुरंत अपना छाता खोल लेते है. दोनों कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए पहले पार्टी अहमियत रखती है, फिर देश! उनकी इतनी अधिक देश बाह्य निष्ठा है. क्लासलेस, स्टेटलेस सोसायटी (वर्गविहीन राज्यविहीन समाज) की सोच रखनेवाले कम्युनिस्टों से देश भक्ति की उम्मीद की भी नहीं जा सकती. अपने स्वार्थ के लिए वे सत्ता में भी घुसपैठ करते हैं.

उन्होंने कभी भी चीन के हमले या भारतीय क्षेत्र पर अतिक्रमण करने की निंदा नहीं की. जिसे वे अपना आका समझते हैं, उसकी भर्त्सना करने का सवाल ही नहीं उठता. ये कम्युनिस्ट युद्धोन्मादी व दगाबाज चीन को मुक्तिदाता या लिबरेटर मानते हैं जो दूसरे देशों की जमीन हथियाने और उनके संसाधनों पर कब्जा करने की ताक में रहता है. 1962 में भारत पर चीन के हमले के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी माकपा और भाकपा में विभाजित हो गई. बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ज्योति बसु, पंजाब के हरकिसन सिंह सुरजीत आदि चीन समर्थक नेता माकपा में रहे जबकि श्रीपाद अमृत डांगे गुट सीपीआई में रहा.

इंदिरा गांधी की सरकार में डीपी धर और मोहन कुमार मंगलम जैसे कम्युनिस्ट नेता शामिल हुए. मनमोहन सरकार के समय मार्क्सवादी सोमनाथ चटर्जी लोकसभा अध्यक्ष रहे लेकिन भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते की वजह से जब लेफ्ट पार्टियां नाराज हो गई तब पार्टी के दबाव की वजह से सोमनाथ को इस्तीफा देना पड़ा था. नक्सलवादी भी कम्युनिस्ट हैं जो पशुपति (नेपाल) से तिरूपति (आंध्रप्रदेश) तक अपना प्रभाव क्षेत्र बनाने का लक्ष्य रखते थे. नक्सली हिंसा ने अनेक निर्दोषों की जान ली. वे अराजकता व संविधान, सरकार, चुनाव के पूरी तरह खिलाफ हैं. जिनपिंग के आजीवन राष्ट्रपति बनने से चीन और अधिक खूंखार और आक्रामक हो जाएगा. चीनी सेना को लोहे की दीवार की तरह मजबूत बनाने की जिनपिंग ने घोषणा की है. ऐसे तानाशाह को बधाई देनेवालों की दिमागी गुलामी साफ नजर आती है.