From Indira to Rahul gandhi, Congress forgot Bapu in the glow of Gandhi family, now waking up

बापू का ग्राम स्वराज, कुटीर उद्योग, बुनियादी तालीम सत्ताधारियों के विचार प्रवाह में कभी नहीं रहे.

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    महात्मा गांधी की उपेक्षा तो आजादी मिलने के साथ ही शुरू हो गई थी. जिस समय जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में सरकार शपथ ले रही थी, तब बापू दिल्ली से बहुत दूर असम के नोआखाली में हिंदू-मुस्लिम दंगों की आग बुझाने में लगे थे. कांग्रेस को सत्ता मिलने के बाद गांधी और उनके विचारों की कोई कद्र नहीं रह गई. बापू का ग्राम स्वराज, कुटीर उद्योग, बुनियादी तालीम सत्ताधारियों के विचार प्रवाह में कभी नहीं रहे. महात्मा गांधी के दृष्टिकोण को ताक पर रखकर बड़े उद्योग खोले गए, गांवों के विकास के बजाय शहरीकरण को महत्व दिया गया.

    बुनियादी तालीम की बजाय महंगी उच्च शिक्षा को तरजीह दी गई. हिंदी की बजाय अंग्रेजी का वर्चस्व बढ़ाया जाता रहा. बापू देश के गांवों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते थे लेकिन स्वाधीनता के बाद आई सरकारों के दौर में ग्राम उजड़ते चले गए और शहर समृद्धि के टापू के रूप में उभरने लगे. गांधी का चरखे का अर्थशास्त्र उनके साथ ही विदा हो गया. केवल सर्वोदयी विचार के कुछ लोगों ने बापू की विरासत कायम रखने का यत्न किया. महात्मा गांधी के नेतृत्व में अहिंसक आंदोलन से देश ने आजादी पाई लेकिन इसके बाद गांधी के सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह आदि सिद्धांतों पर शायद ही कोई चला. गांधी ने तो यह भी कहा था कि स्वाधीनता मिलने के साथ कांग्रेस का मिशन पूरा हो गया, अब इसे भंग कर सर्वसेवा संघ बना दिया जाए. बापू का यह परामर्श किसी ने भी नहीं सुना.

    गांधी के नाम का जादू

    महात्मा गांधी ने परिवारवाद को नहीं बढ़ाया. वे राष्ट्रपिता थे लेकिन अपने चारों पुत्रों में से किसी को भी वे राजनीति में आगे नहीं लाए. इसके विपरीत जो ‘गांधी’ राजनीति में चमके, उनका बापू से कोई संबंध नहीं था. महात्मा गांधी ने पारसी युवक फिरोज को अपना उपनाम लगाने की अनुमति दे दी थी तो वे फिरोज गांधी कहलाने लगे. फिरोज से शादी के कारण इंदिरा ‘प्रियदर्शिनी’ से इंदिरा ‘गांधी’ कहलाने लगीं. फिर राजीव गांधी, सोनिया गांधी, राहुल गांधी, प्रियंका गांधी राजनीति के सितारे बनते चले गए.

    भारतीय जनमानस ही नहीं, विदेश में भी ‘गांधी’ शब्द का अपना असर था. इसका राजनीतिक लाभ भी हुआ. कुछ अज्ञानी विदेशी तो इसी गलतफहमी में थे कि इंदिरा गांधी बापू की वंशज हैं, जबकि ऐसी बात नहीं थी. गांधी के असली वंशज प्राय: गुमनामी में रहे. गांधी-नेहरू के नाम का सम्मोहन कांग्रेस भुनाती चल गई. इंदिरा, राजीव, सोनिया, राहुल की लोकप्रियता में गांधी सरनेम के योगदान से इनकार नहीं किया जा सकता.

    BJP से निपटने के लिए सोशल मीडिया पर 10,000 गांधी दूत

    अब कठिन समय में कांग्रेस को महात्मा गांधी की याद आ गई है, वरना उन्हें तो पुतले बनाकर या तस्वीर के फ्रेम में कैद कर तथा जयंती, पुण्यतिथि पर हार चढ़ाकर कर्तव्य की इतिश्री कर दी गई थी. महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष नाना पटोले ने घोषणा की कि सोशल मीडिया पर बीजेपी के दुष्प्रचार को रोकने के लिए कांग्रेस 10,000 गांधी दूतों को तैनात करेगी. ये दूत बीजेपी को करारा जवाब देंगे.

    पटोले ने कहा कि स्व. राजीव गांधी जब भारत को आगे ले जाने के लिए आधुनिक तकनीक लेकर आए थे तो बीजेपी ने उनका पुरजोर विरोध किया था, लेकिन अब बीजेपी उसी तकनीक का दुरुपयोग कर समाज में गलत सूचनाएं फैलाकर लोगों को गुमराह कर रही है. पटोले ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या इन 10,000 गांधी दूतों को तैयार करने के लिए उन्हें महात्मा गांधी के आदर्शों और सिद्धांतों का प्रशिक्षण दिया जाएगा? और ऐसा प्रशिक्षण देगा भी तो कौन? गांधी को जीवन में उतार पाना सहज नहीं है, फिर भी अब कांग्रेस को गाढ़े वक्त पर बापू की जरूरत आन पड़ी है.