जनता की मुश्किलों की अनदेखी वित्त मंत्री ने कहा देश में महंगाई नहीं!

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    केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन का यह बयान कि देश में महंगाई नहीं है, आम जनता के लिए जले पर नमक छिड़कने वाला है. सरकार जमीनी हकीकत को झुठला रही है. हर देशवासी सुरसा के समान विकराल होती जा रही महंगाई से बुरी तरह चिंतित है. महंगाई की चौतरफा मार के चलते मध्यम वर्ग और गरीबों को घर चलाना मुश्किल हो गया है. उनकी हालत ऐसी है कि क्या धोएं और क्या निचोड़ें! सरकार वास्तविकता पर पर्दा डालने में लगी हुई है जबकि पेट्रोल, डीजल, कुकिंग गैस सभी के दाम में बेहताशा वृद्धि हुई और अनाज, किराणा से लेकर तमाम वस्तुओं के दाम बढ़े हैं.

    रूस-यूक्रेन के बाद से अनाज की कीमतें 32 वर्षों में सबसे ऊंची हो गई हैं. खाद्य तेल, सब्जियां सभी की कीमत पहले की तुलना में काफी ऊपर चली गई है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने अपने अमेरिका दौरे में कहा कि भारत में महंगाई का स्तर बहुत आगे नहीं गया है. अभी देश में 6.95 प्रतिशत खुदरा महंगाई दर है. हमारा लक्ष्य 6.9 फीसदी का है और इसमें 2 फीसदी आगे-पीछे की गुंजाइश रहती है.

    वित्त मंत्री आंकड़ों की बात करती हैं लेकिन भुक्तभोगी जानते हैं कि राशन, फल, सब्जी, पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस, बिजली की दरें, कपड़े, जूते कितने महंगे हो गए हैं. सरकार इसकी अनदेखी कर रही है. आय की तुलना में खर्च बेहद बढ़ गया है. ग्रामीण इलाके में खाद्य महंगाई दर मार्च में बढ़कर दोगुनी हो गई थी. मार्च 2021 में यह दर 3.94 प्रतिशत थी जो मार्च 2022 में बढ़कर 8.04 प्रतिशत पर जा पहुंची.

    मकान बनाना भी महंगा

    एक ओर तो प्रधानमंत्री आवास योजना के जरिए घरों के निर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा था, वहीं दूसरी ओर सीमेंट के दाम में प्रति बोरी 50 रुपए का इजाफा हो गया. इससे आवास निर्माण की लागत काफी बढ़ जाएगी. पिछले 1 वर्ष में सीमेंट का भाव बढ़कर 390 रुपए प्रति बोरी पर पहुंच गया. अब इसकी कीमतें 415 से 435 रुपए प्रति बोरी तक पहुंच सकती हैं. केवल सीमेंट ही नहीं, मकान बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लोहे की छड़ें, ईंट और टाइल्स भी महंगे हो गए हैं. दिसंबर से अब तक लोहे का भाव 20,000 रुपए प्रति टन बढ़ गया है. पिलर खड़े करने व स्लैब डालने के लिए इसकी जरूरत पड़ती है.

    सरकारी कर्मचारियों पर खास असर नहीं

    सरकारी कर्मचारियों को वेतन आयोग की सिफारिशों का लाभ मिलता रहता है. 7वां पे-कमीशन लागू होने के अलावा महंगाई भत्ता भी बढ़ाया जाता है, इसलिए उन पर बढ़ती महंगाई का उतना असर नहीं पड़ता जितना कि वह निजी क्षेत्र में काम करने वाले असंगठित श्रमिकों को प्रभावित करती है. सरकार केवल कुछ लाख सरकारी कर्मचारियों को संरक्षण देती है. उसने उद्योगों को प्रोत्साहन देने के उद्देश्य से 1000 दिनों तक श्रम कानून स्थगित कर रखे हैं, इसलिए निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को कोई कानूनी संरक्षण नहीं रह गया.

    वे महंगाई की चक्की में बुरी तरह पिस रहे हैं. उपभोक्तावादी अर्थव्यवस्था में नई पीढ़ी खर्चीली हो गई है. मांग बढ़ने से महंगाई में भी इजाफा हुआ है. लोग ईएमआई में तमाम चीजें खरीद लेते हैं. भुगतान करने में उनका बजट फेल हो जाता है. जीवनस्तर ऊंचा उठाने की हर कोई ख्वाहिश रखता है. महंगाई बढ़ने की एक वजह यह भी है. इसके अलावा रूस-यूक्रेन युद्ध संकट की वजह से कंपनियों की लागत बढ़ी है. इस लागत का बोझ कंपनियां अब ग्राहकों पर डालने की तैयारी में हैं.