It will be difficult to please the middle and lower class in the budget

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    पिछले पांच वर्षों से विकास दर की शिथिलता और दो साल कोविड से पीड़ित रहने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था फिलहाल भले तेजी से आगे बढ़ रही हो, लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के लिए आगामी बजट के समक्ष कई विरोधाभासी परिस्थितियां मौजूद हैं. इनमें संतुलन साधना आसान नहीं होगा. एक तरफ भारत के तेजी से बढ़ रहे विशाल मध्यवर्ग के सपने कुलांचे भर रहे हैं, तो दूसरी तरफ देश के बहुसंख्यक निम्नवर्ग की हालत दिनोंदिन खराब होती जा रही है. कुछ दिनों पहले वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वे स्वयं मध्यवर्ग से ताल्लुक रखती हैं इसलिए उन्हें इस वर्ग के हितों का भरपूर ख्याल है. वित्तमंत्री के इस बयान से इस वर्ग ने अनुमान लगा लिया कि आगामी बजट में मध्यवर्ग के अरमानों को नये पर लगेंगे. लेकिन वित्तमंत्री नने इस बाबत कोई नया अनुमान पेश करने के बजाए निवर्तमान उपायों का ही मुख्य रूप से उल्लेख किया. जैसे पांच लाख रुपये तक की आमदनी को आयकर मुक्त रखा जाना, देश में शहरीकरण खासकर 100 स्मार्ट शहरों के विकास, देश के 27 शहरों में मेट्रो नेटवर्क संस्थापन के जरिये सार्वजनिक परिवहन की संरचना विकसित करना आदि.

    मध्यवर्ग सत्तारूढ़ भाजपा का पुराना समर्थक वर्ग है और इस चुनावी वर्ष में वित्तमंत्री से पुरजोर अपेक्षा लगाए हुए है देश की विशाल किसान आबादी के लिए खेती उसकी आमदनी का मुख्य जरिया है वह भी भारत के तेजी से उभरते मध्यवर्ग का हिस्सा है. यह ग्रामीण मध्यवर्ग, मोदी सरकार के उस वादे पर टकटकी लगाए हुए है, जिसमें वर्ष 2017 में कहा गया था कि अगले पांच वर्षों के भीतर किसानों की आमदनी दोगुनी हो जायेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. मोदी सरकार द्वारा एमएसपी में यथोचित बढ़ोत्तरी किसानों की आमदनी दोगुनी करने के लिए पर्याप्त नहीं हो पाई.

    देश की 80 करोड़ निर्धन आबादी जिसका करीब 75 फीसदी हिस्सा गांवों में रहता है, उसके लिए अब एक साल और मुफ्त अनाज देने की घोषणा देश के मध्यवर्गीय किसानों को मुक्त खाद्य बाजार से मिलने वाले फायदे से वंचित कर रही है तो दूसरी तरफ यह गैर सरकारी एजेंसियों को एमएसपी दर से कृषि उत्पाद खरीदने से भी रोक रही हैं. भारत में असमानता की बढ़ रही खाई और गहरी होती जा रही है. ऑक्सफैम की हाल में आई रिपोर्ट में यह कहा गया है कि भारत की उच्च 10 फीसदी आबादी का देश की 77 फीसदी दौलत पर कब्जा है. इसी तरह वर्ष 2017 में देश की महज एक फीसदी आबादी के पास देश की 70 फीसदी दालत इकठ्ठी हुई जबकि देश की 67 फीसदी आबादी की दौलत में महज एक फीसदी का इजाफा हुआ. देश में खरबपतियों की बात करें तो वर्ष 2000 में इनकी संख्या महज 9 थी जिसकी संख्या वर्श 2020 में 119 हो गई. वर्ष 2018 से 2022 के बीच देश में औसतन 70 करोड़पति रोज बन रहे हैं. गौरतलब है कि भारत में हर अरबपति एक दशक में अपनी दौलत दस गुना बढ़ा ले रहा है. लेकिन सबसे चिंताजनक तथ्य ये है कि भारत का एक औसत कामगार यदि एक वस्त्र उद्योग में कार्यरत एक हायसैलरीड एक्सक्यूटिव के बराबर आमदनी प्राप्त करना चाहता है तो इसके लिए उसे 941 साल यानी उसकी पचास पीढि़यां लग जाएगी.

    भारत में मुक्त बाजार व उद्यमशीलता का अनुकूल वातावरण यदि बिना किसी अनियमितता के भारत में खरबपतियों की संख्या में इजाफा कर रहा है तो वह हमारी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी खबर ही मानी जाएगी. पर देश के बहुसंख्यक कामगार, निर्धन और देहाती आबादी की आमदनी व दौलत में पर्याप्त बढ़ोत्तरी नहीं होना बेहद चिंता की बात है. ये परिस्थितियां वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण को आगामी बजट में राजकोषीय नीतियों के बजट प्रोत्साहनों में बिल्कुल नये तरह के समायोजन लाने की चुनौती प्रदान कर रही हैं. इसके तहत उच्च वर्गीयों को व्यापक रूप से गैर लाभकारी सामाजिक निवेश शिक्षा, स्वास्थ्य, सफाई, पर्यावरण संरक्षण तथा सामाजिक सुरक्षा के लिए निवेश को प्रोत्साहित करे या इन मदों के लिए सरकारी कोष में इनके अनुदान को बाध्यकारी बनाये. दूसरा ये चुनौती देश के गरीब व निर्धन वर्ग के लिए लोकलुभावन व सब्सिडी जनित उपायों में निवेश करने के बजाए देश की सभी कामगार आबादी को गेनफुल एंप्लायमेंट यानी उत्पादक रोजगार की गारंटी प्रदान करने की नयी योजना की मांग वित्तमंत्री से आगामी बजट में कर रही है. क्योंकि इस मामले में सभी अर्थचिंतक एकमत है कि समुचित रोजगार प्रदान करने से बड़ा गरीबी निवारण का और कोई अस्त्र नहीं है. दूसरी तरफ देश में गैरबरबारी सम्पत्ति करने के लिए एक समान शिक्षा, स्वास्थ्य, श्रम और रोजगार कानून तथा एक सामान्य सामाजिक सुरक्षा की उपलब्धता से बड़ा कोई शस्त्र नहीं. क्योंकि जन्म के आधार पर या पुश्तैनी संपत्ति के आधार आिीरक असमानता में कमी या बेसी करना सरकारों के हाथ में नहीं है पर असमान किस्म की शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व श्रम परिस्थितियां व कल्याण तथा सामाजिक सरक्षा की नीतियां व परिस्थितियों से जो देश में असमानता पैदा हो रही है उन्हें ठीक करना जरूरी सरकार के हाथ में हैं.

    उपरोक्त पांच क्षेत्र ऐसे हें जिनमें सरकार एक समान व एक समग्र नीति के तहत देश की सभी निर्धन आबादी का एक ऐसा अवसर प्रदान कर सकती है, जिससे व्यवस्था जनित असमानता पर एक तगड़ी नकेल कसी जा सके. अगर एक समान शिक्षा स्वास्ीय वेतन व श्रम कल्याण तथा सामाजिक सुरक्षा नीति सरकार अमल में लाएगी तो इन पांचों मामलों में भारतीय समाज में जो विभेद दिखता है, वह शनै: शनै: मिटता चला जाएगा और अंतर लोगों की सिर्फ योग्यता व परिश्रम का रह जायेगा. गौरतलब है कि वित्तमंत्री के लिए बजट एक तरफ तमाम नये कर छूटों प्रोत्साहनों घोषणाओं और सौगात का अवसर प्रदान करता है तो दूसरी तरफ यह वित्तमंत्री के लिए देश की अर्थव्यवस्ीाा के कई हलकों के लिए कई नीतिगत व विचारगत दस्तावेजों की पेशगी का भी एक अवसर देता है. ऐसे में देश में आर्थिक विकास दर के सभी कारकों को एक त्वरित व बूस्टर डोज देने के अलावा बजट में देश की अर्थव्यवस्था में भारतीय समाज के सभी कमजोर तबकों के लिए अवसर की समानता सुनिश्चित करने के कई उपायों को लाना होगा.

    अभी देश में बुनियादी क्षेत्र का सुदृढ़ व सुदीर्घ रोडमैप तथा मुद्रास्फीति का नियंत्रित स्वरूप तथा रियल इस्टेट उद्योग का पुनउर्भार ये ऐसे कुछ आशावादी कारक हैं जिनके जरिये वित्तमंत्री आगामी बजट को निवेशोन्मुखी, उत्पादोन्मुखी और रोजगारोन्मुखी बनाने का स्वरूप जरूर अख्तियार कर सकती हैं. लेकिन सरकार के लिए सबसे बड़ा सवाल मौजूदा साल में होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल महा लोकसभा चुनाव है, जिसे वह अपने ध्यान से विलग रखना कतई नहीं चाहेगी.