नेताओं को लोकलुभावन वादों से बचना होगा

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    इस अमृत वर्ष में जब हम देश के अब  तक के सफर पर नजर डालते हैंतो उसमें एक गहरी विभाजन रेखा दिखाई पड़ती है. 1991 के पूर्व का आर्थिक सफर जहां साम्यवादी व समाजवादी नीतियों विचारधाराओं और कार्यक्रमों से प्रभावित व संचालित था, वहीं 1991 के बाद का काल बाजारीकरण, उदारीकरण, निजीकरण व भूमंडलीकरण की नीतियों से प्रभावित है.

    1950 के दशक में भारत में भारी उद्योगों की स्थापना व नदी घाटी परियोजनाओं का श्रीगणेश प्रमुख था. 1960 के दशक में खाद्यान्न की आत्मनिर्भरता हासिल करने की छटपटाहट ने देश में हरित क्रांति की पटकथा लिखी. 1970 के दशक में देश समाजवादी विचारधारा के चरमोत्कर्ष पर पहुंचकर कर बैंकों का राष्ट्रीयकरण, रजवाड़ों व प्रिवी पर्स को समाप्त करना. आर्थिक गतिविधियों में सरकार के एकाधिकार को और मजबूत कर निजी आर्थिक गतिविधियों को अनेकानेक लाइसेंस परमिट व कोटा प्रणाली में जकड़ने जैसे कदम उठाये गए.

    साल 1980 के बाद देश की आर्थिक नीति व निर्णय प्रक्रिया में थोड़ी उदारवादी डोज मिलनी शुरू हुई. इसी दौर में सूचना प्रौद्योगिकी युग की शुरुआत हुई. 1990 के दशक तक देश अनेकानेक आर्थिक संकटों के दुश्चक्र में फंस जाता है, जिस कारण देश अर्थव्यवस्था एक बिल्कुल एक नए दौर में प्रवेश करती है.

    1991 के बाद देश की अर्थव्यवस्था में बदला पूंजीगत व वित्तीय निवेश का माहौल अर्थव्यवस्था में तीन दशक तक 5 फीसदी से उपर विकास दर सुनिश्चित करता रहा है. इस दौरान सरकार का राजस्व कम से कम दस गुना बढ़ता है और फिर गरीबी निवारण व सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों तथा सर्वप्रमुख आर्थिक बुनियादी संरचना व मानव विकास के बजट आवंदन में व्यापक बढ़ोत्तरी का भी प्रतीक बनता है. नई आर्थिक नीति की नरसिंह राव-मनमोहन सिंह की जोड़ी ने शुरुआत की. वाजपेयी सरकार उसे उत्कृष्टता की ओर ले गई. नरेन्द्र मोदी ने अपने शुरुआती काल में इसे फिर संभाला.

    कोविड महामारी के उपरांत हमारी अर्थव्यवस्था समूची दुनिया में अब सबसे ज्यादा विकासमान हालात में पहुंच गयी है. इस अमृतकाल के अवसर पर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी खबर यही है कि ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था पर अपनी बढ़त लेकर यह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है. हमारे सामने टेलीकाम, आईटी, राजमार्ग और यहां तक कि उर्जा सुरक्षा व उपलब्धता के क्षेत्र में मिली सफलता मील के पत्थर की तरह है. एक विशुद्ध व वैज्ञानिक तरीके से निजी व सरकारी दोनों क्षेत्रों की साझेदारी को संभालना होगा.