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अब एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम महाराष्ट्र में अपने कदम जमाने के लिए लालायित हो उठी है.

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    महाराष्ट्र में महाविकास आघाड़ी सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा था कि धर्म को राजनीति से जोड़ना हमारी बड़ी गलती थी, जिसका नतीजा हमें भुगतना पड़ा. अब एक बार फिर असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एमआईएम महाराष्ट्र में अपने कदम जमाने के लिए लालायित हो उठी है. एमआईएम नेता इम्तियाज जलील का महाविकास आघाड़ी में शामिल होने का प्रस्ताव आघाड़ी के शिल्पकार शरद पवार और मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे दोनों ने ही ठुकरा दिया. इतने पर भी जलील ने कहा कि वे इस प्रस्ताव को लेकर मुख्यमंत्री से भेंट करेंगे. इस बात को लेकर बीजेपी ने शिवसेना की आलोचना करते हुए उसे ‘दाऊद की सरकार’ और ‘जनाब सेना’ कहकर जोरदार हमला किया. इसका कड़ा जवाब देते हुए शिवसेना नेता व सांसद संजय राऊत ने कहा कि शिवसेना का हिंदुत्व अंगार की तरह है, जबकि बाकी सब भंगार हैं. हिंदुत्व के मुद्दे पर हम न भटके हैं, न ही इसे छोड़ेंगे. जो लोग हमें ‘जनाब सेना’ कह रहे हैं, उन्हें हमारे इतिहास और अपने पिछले कर्मों को देखना चाहिए. यह भी नहीं भूलना चाहिए कि बीजेपी ने आतंकियों से मिलकर सरकार बनाई थी. वे महबूबा मुफ्ती के साथ अपनी युति भूल गए क्या? हम राज्य के कोने-कोने में जाकर लोगों को बताएंगे कि असली ‘जनाब सेना’ कौन है?

    एमआईएम को BJP की ‘बी’ टीम बताया

    उद्धव ठाकरे ने एमआईएम को बीजेपी की ‘बी’ टीम बताया और स्पष्ट कर दिया कि शिवसेना उसके साथ गठबंधन नहीं करेगी. उन्होंने एमआईएम के ऑफर को बीजेपी का षडयंत्र बताया और कहा कि इसे लेकर वह शिवसेना के हिंदुत्व के खिलाफ दुष्प्रचार करना चाहती है. बीजेपी सत्ता के लिए कुछ भी कर सकती है. एमआईएम का प्रस्ताव आते ही जितना हो सके, उतना लाभ उठाने का बीजेपी का प्रयास है. वह महाविकास आघाड़ी को बदनाम करने में लगी है. ठाकरे सरकार गिर नहीं रही और सत्ता अपने हाथ नहीं आ रही, इसलिए बीजेपी राज्य सरकार की विश्वसनीयता पर उंगली उठा रही है. वास्तव में यूपी में और इसके पहले बिहार में एमआईएम ने मुस्लिम बहुल क्षेत्र में उम्मीदवार खड़े कर बीजेपी की मदद की थी. एमआईएम का महाविकास आघाड़ी के प्रति अचानक प्रेम कैसे उमड़ पड़ा, यह भी आश्चर्य का विषय है. शिवसेना इसके पीछे बीजेपी की राजनीति देख रही है.

    कांग्रेस से पहले भी सहयोग था

    शिवसेना का कांग्रेस के साथ आघाड़ी बनाना कोई हैरत की बात नहीं है. जब शिवसेना बनी तो कांग्रेस उसके विरोध में नहीं थी. 1967 के लोकसभा में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने अपने मित्र जार्ज फर्नांडीज की बजाय कांग्रेस के उम्मीदवार एसके पाटिल का समर्थन किया था. मधु दंडवते की ‘प्रजा समाजवादी पार्टी’ और गवई की ‘रिपा’ से हाथ मिलाकर शिवसेना ने मुस्लिम लीग के नेता बनातवाला के साथ संयुक्त सभा भी की थी. इंदिरा गांधी के आपातकाल का भी बाल ठाकरे ने समर्थन किया था. एमआईएम की भूमिका मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण करने की है. उसकी वजह से यूपी के अनेक क्षेत्र में सपा के वोट कट गए और बीजेपी जीती. एमआईएम की चाल आघाड़ी के नेता भलीभांति समझते हैं. उद्धव ठाकरे ने बीजेपी को चेतावनी दी है कि शिवसेना के हिंदुत्व को बदनाम न करे और दिल्ली के नेताओं से कह दो कि महाराष्ट्र के पीछे न पड़ें. शिवसेना हिंदुत्व के साथ ही प्रादेशिक अस्मिता की रक्षा करना जानती है.