बड़ी-बड़ी घोषणाओं के बावजूद निर्णय नहीं अधर में यूक्रेन से लौटे मेडिकल छात्र

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    जिस मामले में तत्परता बरतनी चाहिए, उसमें सरकार सुस्त क्यों हो जाती है? रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध की वजह से वहां फंसे भारतीय मेडिकल छात्रों को ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत सकुशल स्वदेश लाना प्रशंसनीय था परंतु उसके बाद इन छात्रों की कोई खोज-खबर नहीं ली गई, जिससे उनका भविष्य अंधेरे में है. उन्हें भारत लौटे 3 माह से भी अधिक बीत गए लेकिन इन छात्रों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश देने की अब तक कोई व्यवस्था नहीं किया जाना खेदजनक है. आखिर स्वास्थ्य मंत्रालय तथा सरकारी मशीनरी इस मुद्दे को लेकर क्या कर रहे हैं? इन छात्रों के करिअर और भविष्य का सवाल है, जिसे लेकर शीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए.

    तारीख पर तारीख!

    पहले यूक्रेन से आए इन छात्रों की मांग पर विचार करने के लिए 8 जुलाई का समय दिया गया था, और अब 15 जुलाई का समय दे दिया गया. यह छात्र अब तक कई ज्ञापन सौंप चुके हैं लेकिन अभी तक उनके भविष्य को लेकर फैसला नहीं हुआ है. ‘यूक्रेन रिटर्न्ड एमबीबीएस स्टुडेंट्स’ के बैनर तले विभिन्न राज्यों के मेडिकल छात्रों और उनके परिजनों ने गत 5 जुलाई को भी दिल्ली में नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) के सामने प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में गुजरात, यूपी, बिहार, असम, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक, पंजाब व हिमाचल प्रदेश के इन छात्रों ने अपनी मांगें रखी थीं. उनकी सबसे प्रमुख मांग थी कि यूक्रेन से लौटे मेडिकल विद्यार्थियों को भारत के मेडिकल कॉलेजों में एडजस्ट किया जाए. दो बार प्रदर्शन के बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला.

    कहां के कितने छात्र

    देश भर में 16,000 ऐसे विद्यार्थी हैं जो युद्ध की वजह से यूक्रेन से भारत लाए गए. इनकी राज्यवार तादाद इस प्रकार है- हरियाणा 1400, हिमाचल प्रदेश 482, ओडिशा 570, केरल 3697, महाराष्ट्र 1200, कर्नाटक 760, यूपी 2400, बिहार 1050, गुजरात 1300, पंजाब 549, झारखंड 184 और बंगाल 392 छात्र. विगत अनेक वर्षों से भारत में एडमिशन नहीं मिल पाने से या सीटें फुल हो जाने की वजह से भारतीय छात्र मेडिकल शिक्षा के लिए यूक्रेन, रूस, बेलारूस या चीन जाते रहे हैं. वहां कम खर्च में इनकी पढ़ाई, निवास, भोजन का इंतजाम हो जाता है. इन छात्रों को वहां की भाषा भी सिखाई जाती है क्योंकि उन्हें पढ़ाई के दौरान अनेक वर्ष तक विदेश में रहना पड़ता है. इन्हें भारत लाते समय आश्वस्त किया गया था कि उनका वर्ष बर्बाद नहीं होने दिया जाएगा और भारत के मेडिकल कॉलेजों में ये छात्र अपनी बची हुई पढ़ाई पूरी कर सकेंगे. ये छात्र यूक्रेन में रुकते तो उस युद्धरत देश में जान को खतरा था. स्वदेश लौटने से जान तो बच गई लेकिन करिअर अधर में लटक गया.

    भारत में एफएमजी परीक्षा देनी पड़ती है

    यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई 6 वर्ष में पूर्ण होती है. इसके बाद छात्र को 1 वर्ष इंटर्नशिप करनी पड़ती है. फिर भारत लौटकर लाइसेंस प्राप्त करने व प्रैक्टिस शुरू करने के लिए एफएमजीई (फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जाम) पास करने और एक वर्ष की सुपरवाइज्ड इंटरर्नशिप करनी पड़ती है. देश में पहले ही मरीजों की संख्या के अनुपात में डॉक्टरों की कमी है. ग्रामीण और आदिवासी इलाकों में डॉक्टरों का अभाव है. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भी खाली पड़े रहते हैं. इसे देखते हुए यूक्रेन से स्वदेश लाए गए मेडिकल छात्रों का मेडिकल कॉलेजों में यथाशीघ्र समायोजन कर लिया जाए ताकि पर्याप्त संख्या में डॉक्टर उपलब्ध हो सकें. इन युवाओं के भविष्य से खिलवाड़ कदापि नहीं होना चाहिए.