नाना पटोले का ऑफर ठुकराया, गडकरी का संघ व BJP से नाता अटूट

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    महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष नाना पटोले ने यह सोच भी कैसे लिया कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आ जाएंगे? गडकरी आरएसएस के निष्ठावान स्वयंसेवक और बीजेपी के जाने-माने नेता व पार्टी के पूर्व अध्यक्ष हैं. उन्हें मोदी सरकार के सर्वाधिक कर्मठ मंत्रियों में से एक माना जाता है. बीजेपी के लिए उनकी प्रतिबद्धता को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती. 

    पटोले के कांग्रेस में शामिल होने के न्यौते का जवाब देते हुए गडकरी ने साफ शब्दों में कहा कि मैं अपनी विचारधारा के साथ राजनीति में आया हूं, इसलिए विचारधारा के साथ धोखा करने का कोई सवाल ही नहीं है. अब कोई मुझे बुलाए या कोई क्या कहे, यह उनका प्रश्न है लेकिन जब तक मैं हूं, मैं अपने संगठन, अपनी पार्टी और अपनी विचारधारा के लिए प्रतिबद्ध हूं. मैं जीवन भर अपने सिद्धांतों और विचारों के अनुसार काम करता रहा हूं.

    संघ स्वयंसेवक किसी दूसरी पार्टी में नहीं जाता

    जो लोग संघ के संगठन और वैचारिक अधिष्ठान से अवगत हैं, वे जानते हैं कि संघ का स्वयंसेवक किसी भी परिस्थिति में किसी अन्य पार्टी में नहीं जाता. बीजेपी के केवल वही नेता दलबदल करते पाए गए हैं जिनका आरएसएस से कभी कोई रिश्ता-नाता नहीं था. मिसाल के तौर पर यशवंत सिन्हा या शत्रुघ्न सिन्हा. संघ का बैकग्राउंड रखनेवाले नेता-कार्यकर्ता अनुशासन को सर्वोपरि मानते हैं तथा पहले राष्ट्र, फिर पार्टी और फिर व्यक्ति का विचार करते हैं. 

    आरएसएस की इस सीख को स्वयंसेवक आजीवन निभाते हैं. संघ दीर्घकाल तक स्वयं को राजनीति से अलिप्त बताता रहा लेकिन उसके स्वयंसेवकों को उसने छूट दी थी कि वे अपने अभिरुचि के क्षेत्र में कार्य कर सकते हैं. इसलिए वे अभा विद्यार्थी परिषद, भारतीय मजदूर संघ, भारतीय किसान संघ, शिक्षा भारती, उद्योग भारती, वनवासी कल्याण आश्रम, विहिप, बजरंग दल जैसे संघ परिवार के आनुषंगिक संगठनों में स्वेच्छा से शामिल हुए. 

    जिन स्वयंसेवकों की राजनीति में दिलचस्पी थी, वे पहले जनसंघ में शामिल हुआ करते थे. बाद में वे आपातकाल के दौरान बनी जनता पार्टी में शामिल हुए. लेकिन जब जनता पार्टी में राजनारायण और मधु लिमये जैसे समाजवादियों ने जनसंघ से जुड़े नेताओं की दोहरी सदस्यता का सवाल उठाया तो अटलबिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी ने तुरंत जनता पार्टी से इस्तीफा देकर संघ के प्रति अपनी निष्ठा जताई. इसके बाद इन नेताओं ने 1980 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) बनाई.

    संघ कार्यकर्ताओं को तपाकर देखता है

    संघ शुरू से स्वयंसेवकों को सिखाता है कि वे राष्ट्रप्रेम और जनसेवा को प्रमुखता दें और पद के लोभ में न पड़ें. पद को सेवा माध्यम समझें. अनावश्यक महत्वाकांक्षा न पालें. बड़े से बड़ा नेता जानता है कि संघ की वजह से ही उसका महत्व व पहचान है, अन्यथा उसके एक इशारे पर वह नेता महत्वहीन होकर रह जाता है. भाषाविद डा. रघुवीर और मौलिचंद्र शर्मा जैसे जनसंघ के अध्यक्ष भी जब प्रवाह से अलग जाने लगे तो संघ ने उन्हें तुरंत हटा दिया. बलराज मधोक का भी यही हाल हुआ. 

    आडवाणी तो संघ के अत्यंत निकटवर्ती और विश्वसनीय माने जाते थे लेकिन जब आडवाणी ने कराची जाकर देश विभाजन के लिए जिम्मेदार पाकिस्तान के निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की तारीफ की तो संघ ने आडवाणी की ओर से मुंह फेर लिया. वे अर्श से फर्श पर आ गए. गडकरी हों या देवेंद्र फडणवीस अथवा अन्य नेता, वे सभी जानते हैं कि संघ अपने कार्यकर्ताओं को सोने की तरह तपाकर देखता है. 

    देवेंद्र पहले युति सरकार में मुख्यमंत्री थे, लेकिन अब वे उपमुख्यमंत्री हैं. संघ व बीजेपी जानते हैं कि देवेंद्र फडणवीस ने राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में बीजेपी को अतिरिक्त सफलता दिलाई, शिंदे सरकार बनवाने में उनकी उल्लेखनीय भूमिका रही इसलिए उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया. गडकरी की कर्मठता व वरिष्ठता भी किसी से छिपी नहीं है. बीजेपी और संघ से उनका नाता अटूट है.