पवार के पॉवर पर सुप्रिया का दावा

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    कुछ लोग हकीकत पर गौर न करते हुए सपनों में जीते हैं. जिस राजनेता की एक समय तूती बोलती थी और जो हमेशा सत्ता के केंद्र में रहा करता था उसके लिए ऐसा भी वक्त आता है जब राजनीतिक बदलाव और बढ़ती उम्र के चलते उसकी पहले जैसी पूछ नहीं रह जाती. इसके बावजूद झूठी उम्मीदें पालनेवाले उसके अनुयायी और परिजन भ्रम के घेरे में भटकते रहते हैं. एनसीपी सांसद सुप्रिया पवार ने दावा किया कि महाराष्ट्र की सत्ता में फिर से वापसी के लिए पार्टी अध्यक्ष शरद पवार को एक बार फिर प्रदेश के दौरे पर निकलने की जरूरत है. 

    विपक्ष में रहते हुए जब भी शरद पवार ने राज्य का दौरा किया, वह दौरा सत्ता पक्ष के लिए भारी साबित हुआ. सुप्रिया ने यह भी दावा किया कि जब भी पवार विपक्ष में होते हैं, उन्हें राज्य की जनता से सबसे ज्यादा प्यार मिलता है. सुप्रिया सुले की भावना समझी जा सकती है. हर बेटी को अपने पिता पर गर्व होता है परंतु जो सत्य है, उसे झुठलाया नहीं जा सकता. 55 वर्षों से राजनीति कर रहे शरद पवार की उम्र 82 वर्ष हो चुकी है. 

    विगत समय उनका आपरेशन भी हुआ था. क्या ऐसी हालत में उनसे राज्य का दौरा कराया जाना उचित रहेगा? एक जगह बैठकर बयान देना अलग बात है लेकिन राज्य का कस्टसाध्य दौरा करने में दूर-दूर तक कोई तुक नहीं है. पवार 2024 के आम चुनाव में बीजेपी को चुनौती देने के लिए विपक्षी पार्टियों को एकजुट करने की दिशा में काम कर सकते हैं.

    राजनीति व समय बदल गया, अब दम नहीं

    अतीत और वर्तमान में फर्क होता है. शरद पवार महाराष्ट्र के दिग्गज नेता रहे हैं और केंद्र की राजनीति में भी उनका महत्व था किंतु अब पहलेवाली बात नहीं रही. पवार केवल 38 वर्ष की आयु में वसंतदादा पाटिल की सरकार गिराकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बन गए थे. राजीव गांधी की हत्या के बाद प्रधानमंत्री पद के दावेदारों में पवार व अर्जुनसिंह भी शामिल थे लेकिन पीवी नरसिंहराव ने बाजी मार ली थी. 

    नरसिंहराव की सरकार में शरद पवार ने रक्षा मंत्री पद संभाला था. विदेशी मूल के मुद्दे पर सोनिया गांधी को चुनौती देने का साहस भी शरद पवार ने दिखाया था लेकिन समूची कांग्रेस पार्टी में सिर्फ पीए संगमा और तारिक अनवर ने उनका साथ दिया था. नतीजा यह हुआ कि पवार को कांग्रेस छोड़नी पड़ी. उन्होंने राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) बनाई. महाराष्ट्र की राजनीति पर उनकी मजबूत पकड़ थी. 

    इसलिए जब मुंबई में 1993 के सीरियल बम धमाकों के बाद हालात बेकाबू होने लगे तो सुधाकरराव नाईक को सीएम पद से हटना पड़ा और पवार ने दिल्ली से आकर मुख्यमंत्री पद संभाल लिया था. मनमोहन सिंह के नेतृत्ववाली यूपीए सरकार में शरद पवार 10 वर्षों तक कृषि मंत्री रहे. केंद्र में 2014 में मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार आने के बाद से राजनीति की दशा और दिशा बदल चुकी है. ऐसी स्थिति में पवार की महाराष्ट्र यात्रा से सत्ता परिवर्तन की उम्मीद लगाना मृगमरीचिका ही है. निस्संदेह पवार महाविकास आघाड़ी के शिल्पकार रहे है. 

    शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस को साथ लाकर उद्धव ठाकरे की सरकार बनवाने का श्रेय पवार को रहा है लेकिन शिवसेना में बगावत के बाद शिंदे-फडणवीस सरकार आ गई. अपने राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर पवार ने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को केंद्रीय राजनीति में भेजना उचित समझा जबकि राज्य में अपने भतीजे अजीत पवार को आगे बढ़ाया.

    खुद की उपलब्धि दिखाएं

    बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चंद्रशेखर बावनकुले ने सुप्रिया सुले के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि जब सुप्रिया को अपने पिता का नाम छोड़कर खुद की राजनीति करनी चाहिए. उन्हें अपनी उपलब्धियां दिखानी होंगी. शरद पवार ने जीवन में काफी काम किया है लेकिन वह समय बीत चुका है. जब बीजेपी को चुनौती देना कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी को भारी पड़ रहा है तो एनसीपी तो सिर्फ क्षेत्रीय पार्टी है!