विधान परिषद चुनाव में सिर्फ 1 सीट, महाराष्ट्र में कांग्रेस के बुरे दिन

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    महाराष्ट्र में कितने ही दशकों तक सत्ता में रह चुकी कांग्रेस अब पूरी तरह फिसड्डी बन चुकी है. सरकारें तो आती-जाती रहती हैं लेकिन जिस पार्टी में एकता, अनुशासन और ईमानदारी की भावना न हो, उसकी दुर्दशा होना तय है. नेतृत्व की कमजोरी से भी पार्टी में हताशा फैलती है. महाराष्ट्र में कांग्रेस के कदम कुछ ऐसे हैं मानो उसने लड़ने के पहले ही हार मान ली है और बीजेपी के सामने समर्पण करती चली जा रही है. 

    विधायकों को टिकाऊ होना चाहिए, न कि बिकाऊ! प्रलोभन में आकर पार्टी निष्ठा को दांव पर लगाना सर्वथा अनैतिक है. विधान परिषद के चुनाव में गुप्त मतदान होने से सौदेबाजी का मौका मिल गया. सत्तारूढ़ महाविकास आघाड़ी के विधायकों की जमकर खरीद-फरोख्त की गई. माना जा रहा है कि कांग्रेस और शिवसेना के विधायकों पर सबसे ज्यादा लक्ष्मी प्रसन्न हुईं. स्पष्ट है कि कांग्रेस में एनसीपी जैसा मजबूत कंट्रोल नहीं है.

    3 वोट फूटने से हार गए हंडोरे

    आघाड़ी में सब कुछ ठीक नहीं है. एनसीपी अपना वर्चस्व बनाए हुए है, शिवसेना सीएम पद पाकर संतुष्ट है, जबकि कांग्रेस आघाड़ी की गाड़ी का पिछला डिब्बा बनी हुई है. इस हालत से ऊपर उठने की इच्छा या प्रयासों का कोई ब्लू प्रिंट उसके पास नहीं है. विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस के पास जो 44 वोट थे उसमें से 3 वोट फूट गए. 

    इस वजह से चंद्रकांत हंडोरे चुनाव हार गए. हंडोरे को पहली प्राथमिकता के वोट अधिक मिले थे लेकिन दूसरी प्राथमिकता के वोटों में वह पिछड़ गए. भाई जगताप को दूसरी प्राथमिकता की गिनती के बाद 26 वोट मिलने से वे चुनाव जीतने में कामयाब रहे. बीजेपी के 5वें प्रत्याशी प्रसाद लाड को आघाड़ी की फूट का पूरा लाभ मिला. क्रॉस वोटिंग हुई और बागियों ने लाड को जिता दिया. 

    यदि कांग्रेस और शिवसेना नेतृत्व अपने वोटों को संभाल पाता तो 10वीं सीट बीजेपी की झोली में नहीं जाती. विधान परिषद चुनाव में कांग्रेस को लगे करारे झटके के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता व मंत्री बाला थोरात ने कहा कि यदि पार्टी के अपने विधायकों ने ही अपने उम्मीदवारों को वोट नहीं डाला तो इसके लिए किसी को दोष नहीं दिया जा सकता. 

    हमें आत्मनिरीक्षण करना होगा कि हम कहां गलत हुए. सिर्फ कांग्रेस ही नहीं, आघाड़ी की तीनों पार्टियों को आत्मचिंतन करना होगा. यदि हम अपनी पहली प्राथमिकता के वोट नहीं ले पाते तो किसी दूसरे को क्या दोष दें. कांग्रेस के ही संजय निरुपम ने कहा कि इस हार के पीछे अंदरूनी साजिश है. भाई जगताप को कुछ मित्रों के वोट मिले लेकिन हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि हमने अपनी पार्टी के कुछ वोट खो दिए.

    पटोले की विफलता उजागर

    कांग्रेस हाईकमांड ने तेजतर्रार नेता मानकर नाना पटोले को महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष बनाया. यह जिम्मेदारी इसलिए दी गई थी कि वह पार्टी में नई जान फूंक कर उसे सशक्त व एकजुट बनाएंगे लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हो पाया. पहले बीजेपी सांसद रह चुके पटोले क्या चुनाव जीतने की बीजेपी की चालें नहीं जानते कि वह किस तरह हार्सट्रेडिंग करती है? राज्यसभा चुनाव के बाद विधान परिषद चुनाव में भी कांग्रेस को करारा झटका लगा. 

    10 में से कुल 1 सीट जीत पाना नेतृत्व की काबिलियत पर प्रश्नचिन्ह लगा देता है. पटोले पार्टी को एकजुट नहीं रख पाए. उन्हें कांग्रेस में लेने के बाद से वरिष्ठ नेताओं का एक बड़ा गुट उनको बर्दाश्त नहीं कर पा रहा है. पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद सिर्फ बयानबाजी तक सीमित रहने वाले नाना पटोले के रवैये से कांग्रेस हाईकमांड भी संतुष्ट नहीं है.