वैलेंटाइन डे पर सत्ता संघर्ष! मन की मौज

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    कहते हैं प्रेम और युद्ध में सब कुछ जायज होता है. इसीलिए 14 फरवरी को वैलेंटाइन डे या प्रेम दिवस पर महाराष्ट्र में चल रहे सत्ता संघर्ष की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होगी. वैसे भी कहा गया है- ‘प्यार करनेवाले कभी डरते नहीं, जो डरते हैं वो प्यार करते नहीं.’ सत्ता सुंदरी से प्रेम करनेवालों में टकराव होना स्वाभाविक है. फिर भी शिवसेना नेता संजय राऊत ने पहले ही कह दिया कि 14 फरवरी वैलेंटाइन डे होने से सब कुछ प्रेम से होगा. हमें संविधान से प्रेम है और अदालत की तरफ से लिया गया निर्णय हमें मान्य होगा.

    सबसे बड़ी अदालत में तारीख पर तारीख मिल रही है. प्यार भी डेटिंग के जरिए परवान चढ़ता है. डेट पर जाने से प्रेमी युगल में एक दूसरे के प्रति समझ बढ़ती है. ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल को 5 जजों की पीठ से संतोष नहीं है. उनकी मांग है कि 7 जजों की संविधान पीठ के सम्मुख मामला भेजा जाए. पौराणिक काल की बात अलग थी.

    सीता स्वयंवर में जब राम ने धनुष तोड़ा तो परशुराम को तुरंत पता चल गया कि वह शिव का धनुष था. अब यह तय करना अदालत की जिम्मेदारी है कि धनुष-बाण आखिर किसका है? शिंदे का या उद्धव का? दोनों को सचमुच का धनुष बाण देकर परख लिया जाए कि कौन अर्जुन के समान लक्ष्य वेध कर सकता है.

    फिल्मों में भी बाण का जिक्र आता है. ‘सन आफ सरदार’ का गीत है- चलाओ ना नैनों के बाण रे, जान ले लो न जान रे! वकील का काम दलील देना है. शिंदे गुट के वकील मनिंदर सिंह ने कहा कि चुनाव चिन्ह के बारे में जल्दी से निर्णय होना चाहिए क्योंकि गरीब अशिक्षित मतदाता के लिए चुनाव चिन्ह महत्व रखता है.

    ठाकरे गुट के वकील कपिल सिब्बल का तर्क है कि यदि सुप्रीम कोर्ट ने विधायकों को अपात्र ठहराया तो चुनाव आयोग का निर्णय हास्यास्पद हो जाएगा. पार्टी प्रमुख आज भी उद्धव ठाकरे ही हैं. उन्हें इस पद से अभी तक नहीं हटाया गया. इसलिए शिंदे द्वारा नियुक्त सभी पदाधिकारी गैरकानूनी हैं. शिंदे गुट के वकील महेश जेठमलानी ने दलील दी कि शिवसेना का पुराना संविधान बाल ठाकरे केंद्रित था. उद्धव ठाकरे ने इसे बदलकर पार्टी प्रमुख पद अपने लिए तैयार किया. ऐसा करने से वे शिवसेना प्रमुख नहीं हो जाते.