इन्फोसिस पर संघ का दोहरा रवैया, पत्रिका में खिंचाई के बाद पुचकारा

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    क्या आरएसएस इन्फोसिस की पहले तीखी आलोचना करने और फिर उसे पुचकारने का दोहरा खेल कर रहा है? यह कितनी अजीब व अविश्वसनीय बात है कि आरएसएस से जुड़ी पत्रिका ‘पाञ्चजन्य’ ने स्वदेशी सॉफ्टवेयर निर्माता कंपनी इन्फोसिस को नक्सलियों की मददगार बताया है. पत्रिका के मुखपृष्ठ पर इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति की तस्वीर छपी है तथा उनकी कंपनी को ‘ऊंची दुकान, फीका पकवान’ बताया गया है.

    ‘साख और आघात’ शीर्षक से लिखे गए 4 पृष्ठों के लेख में कहा गया कि इन्फोसिस ने जो जीएसटी और आयकर रिटर्न पोर्टलों को डेवलप किया है, उन दोनों में गड़बड़ियों के कारण देश की अर्थव्यवस्था में करदाताओं के भरोसे को आघात पहुंचा है. लेख में यह आशंका व्यक्त की गई कि कहीं इन्फोसिस के माध्यम से देशद्रोही ताकतें भारत की इकोनॉमी को नुकसान तो नहीं पहुंचा रही हैं? लेख में कहा गया कि इन्फोसिस पर आज तक अनेक बार माओवादी, वामपंथी तथा टुकड़े-टुकड़े गैंग की मदद करने का आरोप लगा है.

    मुखपत्र होने से इनकार

    इस लेख के प्रकाशन के बाद आरएसएस ने इससे अपनी दूरी बना ली. संघ के प्रवक्ता सुनील आंबेकर ने सफाई देते हुए कहा कि पाञ्चजन्य आरएसएस का मुखपत्र नहीं है तथा संबंधित लेख व उसमें व्यक्त विचारों को संघ से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हो सकते हैं. आंबेकर ने यह भी कहा कि भारतीय कंपनी होने के नाते इन्फोसिस का भारत की तरक्की में महत्वपूर्ण योगदान है. उल्लेखनीय है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने गत माह इन्फोसिस के सीईओ सलिल पारेख को अपने सामने तलब किया था और कंपनी को अपने सिस्टम में सुधार करने के लिए 15 सितंबर तक का समय दिया था. इन्फोसिस को ई-फाइलिंग पोर्टल बनाने के लिए मोदी सरकार ने 2019 में ठेका दिया था.

    अपनी रिपोर्ट पर कायम

    आंबेकर के बयान के बाद पाञ्चजन्य के संपादक हितेश शंकर ने कहा कि पाञ्चजन्य अपनी रिपोर्ट पर दृढ़ है. यदि इन्फोसिस को कोई आपत्ति हो तो वह अपना पक्ष पेश कर सकता है तथा देशहित में इन बातों की और जांच का आग्रह कर सकता है. शंकर ने कहा कि इन्फोसिस के कामकाज की गुणवत्ता उसकी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं है. इससे न केवल इस कंपनी की साख घटी है, बल्कि करोड़ों लोगों को भारी असुविधा हुई है जो ई-रिटर्न दाखिल करना चाहते थे. यदि इन्फोसिस का संबंध दुष्प्रचार से जुड़ी फंडिंग से नहीं है तो वह तथ्यों सहित सामने आए. इन्फोसिस को बताना चाहिए कि वह एक सॉफ्टवेयर कंपनी है या सामाजिक आक्रोश को बढ़ाने वाला उपकरण! शंकर ने कहा कि हमारी रिपोर्ट संघ से नहीं जुड़ी है, बल्कि इसमें इन्फोसिस कंपनी की अक्षमता से जुड़े तथ्यों के बारे में बताया गया है. इसके पहले भी इन्फोसिस ने वस्तु एवं सेवा कर तथा कारपोरेट मामलों के मंत्रालय के लिए जो वेबसाइट विकसित की थी, उनमें भी समस्याएं थीं.

    अधिकृत दृष्टिकोण नहीं है

    संघ के पदाधिकारी ने कहा कि आईटी पोर्टल में कुछ दिक्कतें हो सकती हैं लेकिन संघ ऐसा फोरम नहीं है जहां इन बातों पर चर्चा की जाए. जहां तक पाञ्चजन्य की बात है, वह संघ की विचारधारा से जुड़ा है लेकिन संघ का मुखपत्र या माउथपीस नहीं है. आरएसएस अपने औपचारिक चैनल्स से जो कुछ कहता है, उसे संघ का अधिकृत दृष्टिकोण माना जाना चाहिए. संघ ने चाहे जो भी सफाई दी हो लेकिन लोग मानकर चलते हैं कि हमेशा से पाञ्चजन्य व ऑर्गनाइजर पत्रिकाएं संघ का मुखपत्र रही हैं.