Self-indulgent Bollywood learns from the South that the original idea won it an Oscar

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फार्मूला फिल्में बनानेवाले बॉलीवुड को अपना खोखलापन अच्छी तरह समझ में आ गया होगा. उसकी आत्ममुग्धता का मिथक टूट गया. पिछले वर्ष तेलुगु सिनेमा उद्योग ने 212 मिलियन डॉलर कमाए जबकि हिंदी फिल्म उद्योग की आय उससे कम 197 मिलियन डॉलर ही रही. कितनी ही हिंदी फिल्मे धड़ाधड़ पिटती चली गईं क्योंकि अब दर्शक सजग हो गया है और कुछ नया चाहता है. राजामौली की फिल्म आरआरआर (राइज, रोअर, रिथेल्ट) ओरिजिनल आइडिया को लेकर है. इसमें 2 क्रांतिकारियों अल्लुरी सीताराम राजू (रामचरण) और कोमाराम भीम (जूनियर एनटीआर) के शौर्य की कथा है जो ब्रिटिश शासन के अमानुषिक शोषण व अत्याचार का मुकाबला करते हैं. आरआरआर के गाने नाटू-नाटू को बेस्ट ओरिजिनल साँग का आस्कर अवार्ड मिला. इसके पहले गोल्ड ग्लोब्स अवार्ड और क्रीटिक्स चॉइस की ओर से भी इसे बेस्ट ओरिजिनल साँग का खिताब मिला. यह विश्व सिनेमा की ओर से मिली गौरवपूर्ण स्वीकृति है.

लम्बे समय तक दुनिया भारतीय सिनेमा उद्योग को मुख्यतः बॉलीवुड या हिंदी में बनी फिल्मों को ही समझती थी, यह अलग बात थी कि अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सवों में सत्यजीत रे व मृणाल सेन की बंग्ला फिल्मों को भी सम्मान से देखा जाता था. सत्यजीत रे को तो लाइफटाइम अचीवमेंट ऑस्कर से भी सम्मानित किया गया था. लेकिन ‘नाटू नाटू’ की सफलता एक अलग ही पटकथा लिखती है. यह तेलगु भाषा का गीत है. पिछले साल तेलगु सिनेमा उद्योग ने 212 मिलियन डॉलर कमाये, जबकि हिंदी फिल्म उद्योग की आय 197 मिलियन डॉलर थी. दक्षिण भारत की भाषाओं में बनने वाली फिल्मों की सफलता का ट्रेंड पिछले कुछ वर्षों के दौरान निरंतर बढ़ता गया है. भारत और शेष संसार अब दक्षिण भारत सिनेमा को नोटिस कर रहा है. 

फिल्म ‘आरआरआर’ के चर्चित गीत ‘नाटू नाटू’ (नाचो नाचो) और डाक्यूमेंट्री (शोर्ट) ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ ने भारत के लिए ऑस्कर जीतकर इतिहास रचा. यह पहला अवसर है जब भारत की दो फिल्मों को अलग अलग श्रेणियों में ऑस्कर से सम्मानित किया गया है.

भारत की यह दोहरी जीत इस तथ्य का सबूत है कि अपने देश में सिनेमा का विकास बॉलीवुड के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में भी हो रहा है और साथ ही नॉन-फीचर सेगमेंट में भी भारत का दबदबा बढ़ता जा रहा है. भारत के कलाकारों ने पहले भी ऑस्कर जीते हैं, लेकिन यह उपलब्धि इस लिहाज़ से विशेष है कि पहली बार इंडिया-मेड प्रोडक्शन्स ने विश्व में सिनेमा के सबसे बड़े पुरस्कार को हासिल किया है. जब डॉल्बी थिएटर में एक्टर दीपिका पादुकोण ने चार-मिनट के तेलगु गीत ‘नाटू नाटू’ का परिचय तालियों की गूंज के बीच कराया तो डांसर्स इस अति चर्चित ट्रैक के हुक स्टेप्स स्टेज पर करने लगे. एसएस राजामौली की ब्लॉकबस्टर फिल्म ‘आरआरआर’ के इस गीत की रचना चन्द्राबोस ने की है और संगीत एमएम कीरावानी ने दिया है. ओरिजिनल साँग केटेगरी में ऑस्कर हासिल करने वाला यह मात्र चौथा गैर-अंग्रेजी गीत है और ‘जय हो’ के बाद पहला विदेशी भाषा का गीत. 2009 में ‘जय हो’ (ब्रिटिश फिल्म स्लमडॉग मिलियनेयर) के लिए एआर रहमान (संगीतकार) व गुलजार (गीतकार) को ऑस्कर मिले थे.

कार्तिकी गोंसाल्विस व गुनीत मोंगा की ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ में मानव व पशु के बीच रिश्ते को समझने का प्रयास किया गया है. दो हाथी के बच्चों को तमिलनाडु के मुदुमुलाई अभ्यारण्य में लावारिस छोड़ दिया गया है, उनसे मानव प्रेम को समझने की कोशिश यह डाक्यूमेंट्री है. यह 39-मिनट की फिल्म हमें जंगल, एक देशज मानव जोड़ा, हाथी के दो लावारिस बच्चों और उनके जीवन को दिखाती है यह वास्तव में आधुनिक सभ्यता का ही आइना है. डाक्यूमेंट्री शोर्ट केटेगरी में ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ भारत की पहली जीत है. हालांकि भारत में सेट की गईं ‘स्माइल पिंकी’ व ‘पीरियड एंड ऑफ़ सेंटेंस’ ने भी इसी श्रेणी में ऑस्कर जीते थे, लेकिन वह विदेशी प्रोडक्शन्स थे, हालांकि मुंबई में रहने वाली 42-वर्षीय गुनीत मोंगा भी ‘पीरियड़ एंड ऑफ सेंटेंस’ (2018) की एक निर्माता थीं. गोंसाल्विस ने अपनी जीत को ‘भारत माता’ को समर्पित किया, मोंगा ने इन्स्टाग्राम पोस्ट में लिखा, “…यह उन सभी महिलाओं को समर्पित जो यह (पुरस्कार वितरण समारोह) देख रही हैं …हम भारत की दो महिलाएं हैं जो ग्लोबल मंच पर ऐतिहासिक जीत दर्ज कर रही हैं. भविष्य साहसी है और भविष्य यहीं है. आओ आगे बढ़ें, जय हिन्द!”

चन्द्राबोस ने सिर्फ ‘नमस्ते, नाटू नाटू’ कहा. ‘नाटू नाटू’ के लिए यह तीसरी मुख्य अंतर्राष्ट्रीय मान्यता है. इससे पहले उसे गोल्डन ग्लोब और क्रिटिक्स चॉइस अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है. इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि इस ऐतिहासिक सफलता ने ग्लोबल मंच पर भारतीय सिनेमा की शानदार शुरुआत की नींव रख दी है. 

दिलचस्प यह है कि ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ भी दक्षिण भारत में ही सेट की गई है. साथ ही ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ की जीत ने उन फिल्मों को नया जीवन दिया है जो हम पर चिल्लाती नहीं हैं, लेकिन हमारे सच को पर्दे पर ईमानदारी से उकेर देती हैं. अब इन फिल्मों के लिए भी नये फंडिंग चैनल और दर्शक प्लेटफॉम्र्स खुल जायेंगे.

यह अफ़सोस है कि भारत में दर्शक सिनेमाघरों में डाक्यूमेंट्री देखने नहीं जाते हैं. यह डाक्यूमेंट्री परम्परागत रूप से अपनी फंडिंग के लिए दूरदर्शन, फिल्मस् डिवीजन, पीएसबीटी व राज्यों के सूचना विभागों पर निर्भर करती हैं, लेकिन पिछले एक दशक के दौरान इन स्रोतों से भी फंडिंग कम हो गई है. अब देखना यह है कि क्या ‘द एलीफैंट व्हिस्परर्स’ की कामयाबी के बाद सरकारी फंडिंग में वृद्धि होगी?