शिवसेना बागियों का उद्धव को पत्र सभी पार्टी प्रमुखों के लिए चेतावनी

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    कहा जाता है कि नेपोलियन बोनापार्ट को अपनी फौज के हर सैनिक का नाम याद था और वह उनकी बराबर फिक्र करता था. वह भली भांति जानता था कि सेनापति की असली ताकत उसके वफादार सिपाही हैं. आज लोकतंत्र के बावजूद पार्टी प्रमुखों की ऐसी सामंतशाही या अभिजात्य मानसिकता बन चुकी है कि वे अपने दल के विधायकों व कार्यकर्ताओं की जानबूझकर उपेक्षा करते हैं. ऐसे पार्टी सुप्रीमो यह नहीं समझते कि इस तरह का घमंडी मिजाज स्वयं उनके लिए आत्मघाती और अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने वाला है. पार्टी की जड़ें मजबूत करने वालों के साथ जब अवहेलनापूर्ण बर्ताव किया जाएगा तो वे कभी न कभी इसका मजा जरूर चखाएंगे. शिवसेना में यही बात हुई तथा अन्य पार्टियों में भी कुछ ऐसा ही हो सकता है. यदि इसे टालना हो तो सभी पार्टी प्रमुख अपना रवैया सुधारें.

    शिवसेना के बागी विधायक संजय शिरसाट ने मुख्यमंत्री व पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे को पत्र लिखकर सभी बागी विधायकों की नाराजगी की वजह बताई है. उन्होंने लिखा कि पार्टी के अंदर ज्यादातर विधायकों को अपमान का सामना करना पड़ रहा था. यहां तक कि मुख्यमंत्री के निवास ‘वर्षा’ से भी उन्हें बैरंग वापस भेज दिया जाता था. राज्य में शिवसेना के सत्ता में होने और अपना मुख्यमंत्री होने के बावजूद ठाकरे के आसपास एक खास मंडली का पहरा रहता था.

    इस मंडली ने उन्हें कभी भी सीएम निवास तक पहुंचने नहीं दिया. मंत्रालय में मुख्यमंत्री से मिलने का सवाल ही नहीं था क्योंकि वहां मुख्यमंत्री कभी आए ही नहीं. विधायकों का स्पष्ट इशारा उद्धव ठाकरे के करीबी नेता व सांसद संजय राऊत के अलावा सीएम के सहायकों की ओर था. कभी यह भी चर्चा होती थी कि रश्मि ठाकरे की मर्जी के बगैर कोई सीएम से मिल नहीं सकता था. शिवसेना विधायकों को उनके निर्वाचन क्षेत्रों में विकास कार्यों के लिए एनसीपी और कांग्रेस विधायकों से भी कम फंड दिए जाने की शिकायत है.

    विधायक संजय शिरसाट के इस पत्र को बागी विधायकों के नेता एकनाथ शिंदे ने ट्वीट किया है. इसके जरिए शिंदे ने बताने की कोशिश की है कि बगावत का फैसला विधायकों की नाराजगी को ध्यान में रखकर लिया गया. शिंदे ने दावा किया कि पार्टी विधायकों की सीएम तक पहुंच नहीं थी. उन्हें आदित्य ठाकरे के साथ अयोध्या जाने की अनुमति नहीं दी गई थी. चेक-इन किए जाने पर भी विधायकों को एयरपोर्ट से वापस भेजकर अपमानित किया गया.

    अन्य पार्टियों में भी यही हाल

    कांग्रेस 8 वर्षों से केंद्र की सत्ता से दूर है लेकिन पार्टी हाईकमांड की अकड़ इस तरह कायम है मानो अभी भी उसकी हुकूमत चल रही है. इस रवैये से पार्टी को काफी नुकसान उठाना पड़ा. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मध्यप्रदेश में कांग्रेस को जिताने में बड़ी भूमिका निभाई थी लेकिन तब पार्टी ने कमलनाथ को सीएम बनाकर सिंधिया की उपेक्षा की. उन्हें पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद तक नहीं दिया गया. ऐसे व्यवहार से खिन्न होकर सिंधिया कांग्रेस छोड़ बीजेपी में चले गए और आज केंद्रीय उड्डयन मंत्री हैं. राजस्थान में सचिन पायलट ने विधानसभा चुनाव में जीत दिलाई थी. उनकी कड़ी मेहनत व जनाधार के बावजूद हाईकमांड ने अशोक गहलोत को सीएम बना दिया. पायलट ने उपेक्षापूर्ण बर्ताव के बाद भी अब तक धैर्य बनाए रखा.

    राहुल कुत्ते को बिस्किट खिलाते रहे, असम हाथ से निकल गया

    असम के प्रभावशाली कांग्रेस नेता रहे हिमंत बिस्वा सरमा को पहले तो 2 दिनों तक मिलने का समय ही नहीं दिया गया, जब तीसरे दिन वे राहुल गांधी से मिलने पहुंचे और अपनी बातें कहने लगे तो राहुल ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया और अपने कुत्ते पीडी को बिस्किट खिलाते रहे. इस उपेक्षा से अपमानित हिमंत बिस्वा सरमा ने तत्काल बीजेपी ज्वाइन कर ली और आज असम के मुख्यमंत्री हैं.

    बीजेपी भी अपवाद नहीं

    बीजेपी में सिर्फ मोदी और शाह की तूती बोलती है. संसदीय दल की बैठक में यही दोनों नेता बोलते हैं और सांसद चुपचाप सुनते हैं. जब नाना पटोले बीजेपी सांसद थे तो उन्होंने ऐसी बैठक में अपने चुनाव क्षेत्र भंडारा के किसानों की समस्या उठानी चाही तो उन्हें तुरंत चुप करा दिया गया. इसके बाद पटोले ने बीजेपी छोड़ दी. अभी वे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं. इसी तरह अन्य सांसदों की शिकायतें या मांगें भी नहीं सुनी जातीं. उन्हें अहसास करा दिया जाता है कि मोदी ही सर्वेसर्वा हैं. ऐसी ही स्थिति ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी में है. आम आदमी पार्टी से भी केजरीवाल के स्वभाव की वजह से योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास जैसे नेता अलग हुए. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बागियों का उद्धव को पत्र सभी पार्टी प्रमुखों के लिए चेतावनी है कि वे अपना व्यवहार सुधारें और सभी को साथ लेकर चलें.