राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने जानकारी छिपाने पर केंद्र सरकार पर सुको की टेढ़ी नजर

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    नई दिल्ली: इजराइली साफ्टवेयर पेगासस से जासूसी करवाने के मामले में सख्त रुख अपनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार का स्टैंड साफ नहीं था. निजता के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए. प्रधान न्यायाधीश एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूयिकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को हर बार छूट नहीं दी जा सकती. राष्ट्रीय सुरक्षा का मसला कोई हौवा नहीं है कि उसका नाम लेते ही हम पीछे हट जाए. अदालत मूक दर्शक बन कर नहीं रह सकती. केंद्र सरकार ने जरा भी स्पष्ट रुख नहीं अपनाया है. 

    निजता और गोपनीयता ऐसे मुद्दे हैं जिनसे देश का हर नागरिक प्रभावित है. न्याय न केवल दिया जाना चाहिए बल्कि होते हुए भी दिखना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी इसलिए की क्योंकि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील देकर अपने शपथ पत्र में ज्यादा विवरण देने से इनकार कर दिया था. प्रौद्योगिकी लोगों के जीवनस्तर में सुधार करने के लिए उपयोगी उपकरण है लेकिन इसका उपयोग किसी व्यक्ति के निजी क्षेत्र के हनन के लिए नहीं किया जाना चाहिए. सभ्य लोकतांत्रिक समाज के सदस्य अपनी निजता की सुरक्षा की जायज अपेक्षा रखते हैं.

    जांच के लिए 3 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति

    सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार का स्वयं विशेषज्ञ समिति गठित करने का अनुरोध ठुकरा दिया और कहा कि ऐसा करना पूर्वाग्रह के खिलाफ स्थापित न्यायिक सिद्धांत का उल्लंघन होगा. पेगासस जासूसी मामले की जांच करवाने की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए 3 सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन कर दिया. सुको के पूर्व न्यायाधीश आरबी रवींद्रन की अध्यक्षता में बनी समिति में पूर्व आईपीएस अधिकारी आलोक जोशी और संदीप राय का समावेश है.

    समिति इस बात की जांच करेगी कि स्पाईवेयर पेगासस का उपयोग कर भारतीय नागरिकों के वाट्सएप खातों की हैकिंग के बारे में 2019 में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद केंद्र सरकार ने क्या कदम उठाए. क्या भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल करने के लिए भारतीय संघ, किसी राज्य सरकार, किसी भी केंद्र या राज्य की एजेंसी ने पेगासस स्पाईवेयर की खरीद की थी? यह समिति जांच के संबंध में किसी भी व्यक्ति का बयान लेने के लिए अधिकृत है.

    प्रेस की आजादी महत्वपूर्ण

    पेगासस सॉफ्टवेयर से 10 देशों में 50,000 लोगों की जासूसी की गई. भारत में 300 लोगों के नाम सामने आए हैं जिनके फोन की निगरानी की गई. इन लोगों में सरकार में शामिल मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, वकील, जज, अफसर, वैज्ञानिक, कारोबारी तथा एमिटविष्ट शामिल हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रेस की आजादी लोकतंत्र का महत्वपूर्ण स्तंभ है. अदालत का काम पत्रकारीय सूत्रों की सुरक्षा के महत्व के दृष्टिकोण से अहम है. वह सत्य का पता लगाने और आरोपों की तह तक जाने के लिए बाध्य है. हम सूचना क्रांति के युग में रहते हैं जहां लोगों की पूरी जिंदगी क्लाउड या इिजिटल फाइल में रखी है.

    कांग्रेस ने स्वागत किया

    पेगासस के दुरुपयोग की जांच के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन के फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया. राहुल गांधी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने हमारे सवालों पर मुहर लगा दी है. हमने संसद में सवाल किए थे कि पेगासस को किसने खरीदा? इसे कौन भारत लाया? क्या इसका डेटा किसी और देश के पास भी है. क्या प्रधान मंत्री को भी जासूसी का डेटा मिल रहा था? राहुल ने कहा कि गृह मंत्रालय को इसकी जानकारी है लेकिन सरकार कुछ भी बताना नहीं चाहती.

    जासूसी सरकारी एजेंसियों ने नहीं की, तो किसने की

    सुप्रीम कोर्ट की विशेषज्ञ समिति की जांच से शायद यह भी साफ हो पाएगा कि अगर भारतीयों की जासूसी सरकारी एजेंसियों ने नहीं की, तो किसने की? पेगासस तैयार करने वाली कंपनी केवल और केवल सरकारों को ही ये सॉफ्टवेयर बेचती है. इसके बाद ये तो साफ है कि जिस किसी ने इसका इस्तेमाल किया, वह कोई ना कोई देश है. अगर भारत ने इस सॉफ्टवेयर को हमारे देशवासियों के मोबाइल फोन में इंस्टॉल नहीं किया, तो वह दूसरा देश पाकिस्तान, चीन या और कौन है, यह पता लगाना और भी जरूरी हो गया है. 

    इस सूरत में यह मामला राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा भी है. पेगासस सॉफ्टवेयर इतना खतरनाक है कि इसे संचालित कर रहा व्यक्ति उस मोबाइल फोन का वर्चुअल मालिक हो जाता है. वह जब चाहे असल मालिक की तरह फोन के माइक्रोफोन, कैमरे, लाइव लोकेशन को चालू कर सकता है. उसके सारे डेटा अपने पास ले सकता है. उस फोन में डेटा डाल सकता है. एक तरह से फोन चलता-फिरता जासूस बन जाता है, जो शिकार के साथ चलता है. वह भी खामोशी से.

    इन्हें निशाना बनाया गया

    जासूसी के लिए लक्ष्य बनाए गए जिन लोगों के नामों का खुलासा हुआ है, उसमें अनिल अंबानी जैसे उद्योगपतियों के अलावा दलाई लामा के करीबी, राहुल गांधी, अभिषेक बनर्जी, सिंह पटेल, पूर्व आईएएस अश्विनी वैष्णव (अभी रेल मंत्री) जैसे नेताओं के अलावा सामाजिक कार्यकर्ता, वकील, सीबीआई से जुड़े अधिकारी और कई नेता भी शामिल है्. हालांकि बड़ा सवाल यही है कि क्या ये लोग सुप्रीम कोर्ट की समिति के साथ जांच में सहयोग करेंगे. क्योंकि  जांच के लिए इन लोगों को अपना फोन समिति को देना होगा. 

    कई लोगों ने खुलासे के पहले और उसके बाद अपने मोबाइल हैंडसेट बदल दिए हैं. इस बात की आशंका भी है कि कहीं पेगासस सॉफ्टवेयर सेल्फ डिस्ट्रिक्ट मोड वाला ना हो. इस तरह के सॉफ्टवेयर कुछ खास परिस्थितियों में खुद को डिलीट कर देते हैं. यानी फोन या किसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस में उनकी मौजूदगी का प्रमाण ढूंढना कठिन हो जाता है. क्या विशेषज्ञ इस स्थिति में डिवाइस से पेगासस की मौजूदगी को प्रमाणित कर पाएंगे.